चतुष्पदी
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दिन दहाड़े अत्याचार -क्यों ज़ुबाँ नहीं खुलती
सरे आम हो अनाचार -क्यों ज़ुबाँ नहीं खुलती
बलि मानवता की चढ़े बेगैरत शब्दों पर
स्त्री सहती दुराचार -क्यों ज़ुबाँ नहीं खुलती.
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सर्वधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल
din dhaade atyachaar- kyun zuban nahi khulti
sare aam ho anachaar-kyun zuban nahi khulti
bali manavta kee chade begairat shabdon par
stree sahti doorachaar-kyun zuban nahi khulti
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दिन दहाड़े अत्याचार -क्यों ज़ुबाँ नहीं खुलती
सरे आम हो अनाचार -क्यों ज़ुबाँ नहीं खुलती
बलि मानवता की चढ़े बेगैरत शब्दों पर
स्त्री सहती दुराचार -क्यों ज़ुबाँ नहीं खुलती.
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सर्वधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल
din dhaade atyachaar- kyun zuban nahi khulti
sare aam ho anachaar-kyun zuban nahi khulti
bali manavta kee chade begairat shabdon par
stree sahti doorachaar-kyun zuban nahi khulti
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Balram Nigam 12:08am May 22
वाह क्या बात क्या बात क्या बात।
Sunil Tripathi
Sunil Tripathi 12:07am May 22
वाह्ह्ह्ह्ह्ह सटीक प्रश्न!!!!!
Awanish Tripathi
Awanish Tripathi 12:05am May 22
क्यों ज़ुबाँ नहीं खुलती???
बहुत ही सार्थक प्रश्न सर।
नमन।
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हज
via fb/Kavitalok
Pawan Batra 9:51am May 22
ReplyDeleteआदरणीय बहुत सुन्दर
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बृजेश 'ब्रज' 8:16am May 22
बहुत ही उचित भावाव्यक्ति
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Kailash Chand 12:11am May 22
वाह्ह्ह्ह्ह्ह आदरणीय
बहुत खूब ,,,,,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति
क्यों जुबां नहीं खुलती- वाह्ह्ह्ह्ह
via fb/Kavitalok
Kailash Chand 12:11am May 22
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह्ह आदरणीय
बहुत खूब ,,,,,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति
क्यों जुबां नहीं खुलती- वाह्ह्ह्ह्ह
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Balram Nigam 12:08am May 22
वाह क्या बात क्या बात क्या बात।
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Sunil Tripathi 12:07am May 22
वाह्ह्ह्ह्ह्ह सटीक प्रश्न!!!!!
via fb/Kavitalok
DrHemlata Suman 10:16am May 22
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह बहुत खूब आदरणीय !!!!
क्यों ज़ुबाँ नहीं खुलती???
बहुत ही सार्थक प्रश्न सर।
नमन।
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Pawan Batra 9:51am May 22
आदरणीय बहुत सुन्दर
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बृजेश 'ब्रज' 8:16am May 22
बहुत ही उचित भावाव्यक्ति
via fb/Kavitalok
Satish Gupta
ReplyDeleteपल पल अन्याय का सामना करों तुम
लमहों मे अहिसा को किनारे करो तुम.......
इन भावों से तराशी बेमिशाल रचना
मेरे भाई बधाई
via fb.Kavitalok
Arun Sharma वाह्ह्ह्ह्ह् बहुत सही प्रश्न आदरणीय श्री ।
ReplyDeleteसादर नमन ।
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Pradyumna Chaturvedi वाह_वाहहहहहह_
बहुत ही सुन्दर_सार्थक_लाजवाब_
सादर नमन।
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Yamuna Prasad Dubey Pankaj बहुत सुन्दर और सार्थक भावाभिव्यक्ति,वाह
via fb/kavitalok
Sajal Prasad सुंदर सृजन
ReplyDelete-------------------------------------------
Laxmanprasad Raamaanuj Ladiwala बहुत सुंदर
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भारती जैन दिव्यांशी बहुत सुंदर सृजन आदरणीय
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Vijay Mishr Daanish बहुत उम्दा
via fb/kavitalok
Uddhav Deoli दिन दहाड़े अत्याचार -क्यों ज़ुबाँ नहीं खुलती
ReplyDeleteसरे आम हो अनाचार -क्यों ज़ुबाँ नहीं खुलती
बलि मानवता की चढ़े बेगैरत शब्दों परस्त्री सहती दुराचार -क्यों ज़ुबाँ नहीं खुलती.|\वाह्ह्ह्ह समाज में पनप रही बिकृत समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट कराती सुन्दर सार्थक सृजन हेतु बधाई माननीय||
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Ramesh Govind Ram Sharma बहुत सुन्दर वाहवाह
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Satish Verma अति सुन्दर और भावपूर्ण रचना।
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via fb/kavitalok
Laxmanprasad Raamaanuj Ladiwala बहुत सुंदर
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Tadala SN Murthy Zuban is too busy with other things-may be
via fb
Om Prakash Shukla यथार्थ है
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
सादर अभिनन्दन ,, नमन
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Ramkishore Upadhyay अति सुंदर चतुष्पदी ,,बधाई
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जितेन्र्द कुमार 'राजन' बहुत सुंदर चतुष्पदी
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Prince Mandawra यथार्थ चित्रण
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Ajay Bhojpuri सुंदर प्रेरक सिद्ध मुक्तक ।भाव-शिल्प का संगम ।बधाई बन्धु ।
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DrHemlata Suman Bahut khub....sir
via YUSM/FB-24-05-2015
Gupta Kumar Sushil सार्थक चित्रण है समसामयिक भाव सहित आदरणीय
ReplyDeletevia fb
प्रो. विश्वम्भर शुक्ल
ReplyDeleteसुन्दर ,अनुपम अभिव्यक्ति-
बलि मानवता की चढ़े बेगैरत शब्दों पर
स्त्री सहती दुराचार -क्यों ज़ुबाँ नहीं खुलती
via fb/YUSM on 25 May 2015
Jeetesh Vaishya
ReplyDeleteMay 25 at 8:49pm
Bahut hi achche.....khoob umda
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