Sunday 30 October 2016

सुहागिन की अभिलाषा


एक हिंदुस्तानी वीर सैनिक की पत्नी अपने पति को क्या  सन्देश भेज सकती है इसकी थोड़ी सी कल्पना की है मैंने इस रचना में।  सादर।  


सुहागिन की अभिलाषा
-------------------------
तुम गए जब से सनम
यूँ बिना मुझसे मिले
चाँद तब से ओझल सा
रात ने भी किये गिले.

लाम पर तुम क्या गए 
मुझको सनम भूल कर
मुझको कोई शिकवा नहीं 
बस आना शत्रु खदेड़ कर.

हैं राह पर बिछाई  मैंने
सुहाग की सब चूड़ियाँ
विजयी बन जब आओगे 
अंगी करूं यह चूड़ियाँ .

क्यूँ लिखा था मौत पर
आंसू बहाना तक  नहीं ?
ऐसी भी कमज़ोर नहीं
तुमने मुझे जाना नहीं

प्यार मेरा, कवच तेरा
गोलियों से टकराएगा
बनी होगी गोली ऐसी
जो वक्ष भेद लग जायेगा.

प्रार्थना  मेरी तुमसे यही
पीठ दिखाना तुम नहीं
दुश्मनों के लिए तुम प्रिये
मौत बन जाना तुम वंही

तुम गए जब से सनम
यूँ बिना मुझसे मिले
चाँद तब से ओझल सा
रात ने भी किये गिले.
----------------------------------

सर्वाधिकार सुरिक्षित त्रिभवन कौल 

Monday 24 October 2016

मंथन (Manthan )


मंथन  (Manthan )
------------------

आयु के अंतिम पड़ाव पर …………………….Aayu ke atim padaaw pr
एक छोर पर खड़ी ………………………………ek chor pr khadi
एक ज़िन्दगी…………………………………….ek zindgi  
इतिहास बनने को उत्सुक……………………itihaas ban-ne ko utsuk
दुविधा में पड़ी ……………………………………dwida mein padi
मंथन कर रही है ………………………………..manthan kr rahi hai
क्या  दिया है उसने संसार को  …………… kya diya hai usne sansaar ko
उसके ज़िंदा होने का उपहार ?………………uske zinda hoone kaa uphaar ?

तीसरे महायुद्ध की आशंका …………………teesre mahayudh kee anshanka
परमाणु युद्ध की विभीषिका …………………parmanu yudh kee vibhishika
क्षत विक्षित ओज़ोन की चेतावनी…………..ksht vikshit ozon kee chetaavani
श्वेत श्याम की कहानी………………………..shwet shyam kee kahaani
खोखले मूल्यों पर खोखले भाषण ………….khokle mulyon pr khokhle bhaashan
पर्यावरण की ज़ुबानी……………………………paryaavran kee zubhaani
या फिर ऐसा इंसान……………………………..yaa phir aisa insaan
जो विवेक खो चुका हो………………………..jo vivek kho cuhuka ho  
आतंक, उग्र , अलगाववाद के……………... aatank, ugr, algaav-vaad ke  
दलदल में धंसा …………………………………..daldal mein dhasan
कैंसर एड्स और नशे में फंसा………………cancer, AIDs aur nashe mein phansa
इंसानियत का मुखोटा पहने ………………….insaaniyat kaa mukhota pahne
इंसानियत को ही रो रहा हो।…………………insssniyat ko hee ro raha ho.
---------------------------------------------------------------------------------------------

सर्वाधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल

Friday 21 October 2016

Ways of Love and Peace ( Translated into French )

Dear friends
Some of my poems have been translated into French by none other than  Honourable Athanase Vantchev de Thracy, World President of Poetas del Mundo , undoubtedly one of the greatest poets of contemporary French.
Shall  post  these poems on this page now and then


Ways of Love and Peace
 --------------------------------

 Descending darkness breathing down the living

Shadows of silence becoming monstrous

None dares to challenge rogue elements

Breeze of love seeks passage through everyone’s heart

Wading through the waves of emotions and actions

An aura of tranquillity and serenity lift up spirits

Bringing much needed solace and comfort

Trying  to cement the path glimmering with sunrays

Leading to ultimate calmness and happiness

Wonderful are the ways of love and peace
---------------------------------------------------------
All rights reserved/Tribhawan Kaul

 Les chemins de l'amour et de la paix
En descendant, les ténèbres pèsent de leur souffle sur les ombres
Vivantes du silence qui deviennent peu à peu monstrueuses.
Personne n’ose affronter les éléments scélérats,
La brise de l’amour cherche à se frayer un passage dans le cœur de chacun
Avançant à grande peine au milieu des vagues d’émotions et d’actions,
Une aura de tranquillité et de sérénité élèvent les esprits
Apportant un grand désir de consolation et de réconfort,
Essayant de cimenter la route qui miroite sous les rayons du soleil 
Et mène vers le calme et la béatitude ultime –
Merveilleuses sont les voies de l’amour et de la paix.

            Translated into French by Athanase Vantchev de Thracy
=================================================

Vantchev Athanase de Thracy is undoubtedly one of the greatest poets of contemporary French. Born on January 3, 1940, in Haskovo, Bulgaria, the extraordinary polyglot culture studied for seventeen years in some of the most popular universities in Europe, where he gained deep knowledge of world literature and poetry.


Athanase Vantchev de Thracy is the author of 32 collections of poetry (written in classic range and free), where he uses the whole spectrum of prosody: epic, chamber, sonnet, bukoliket, idyll, pastoral, ballads, elegies, rondon, satire, agement, epigramin, etc. epitaph. He has also published a number of monographs and doctoral thesis, The symbolism of light in the poetry of Paul Verlaine's. In Bulgarian, he wrote a study of epicurean Petroni writer, surnamed elegantiaru Petronius Arbiter, the favorite of Emperor Nero, author of the classic novel Satirikoni, and a study in Russian titled Poetics and metaphysics in the work of Dostoyevsky.

एक और आभार

मित्रों , मेरे काव्यसंग्रह 'बस एक निर्झरणी भावनाओं की ' में सर्वश्री सुधाकर पाठक जी, रामकिशोर उपाध्याय जी , सुरेश पाल वर्मा जसाला जी, और डॉ. पवन विजय जी जैसे साहित्य मनीषियों ने काव्यसंग्रह में अपने  अभिमत , दो शब्द ..., प्रसंगों की पावनता और   अनुभूतियों से अनुप्रमाणित  जैसे समीक्षात्मक आलेखों द्वारा इस काव्यसंग्रह की समस्त रचनाओं को एक संभल प्रधान किया है जिसके लिए में उनका नमन करता हूँ। 

इनके अतिरिक्त मैं विनर्मतापूर्वक एक और जानी पहचानी हिंदी साहित्य में पैठ रखने वाली प्रबुद्ध कवित्रयी एवं संपादिका (भाषा भारती)  डॉ.किरण मिश्रा जी का आभार प्रकट करना चाहूंगा जिन्होंने इस काव्यसंग्रह की पाण्डुलिपि पढ़ कर अपनी व्यक्तिगत राय  के रूप में काव्यसंग्रह को कश्मीरियत को समर्पित, सामयिक जवलंत विषयों पर रचित, ललित शैली से भरपूर, उत्कंठा को प्रेरित करनेवाला आधुनिक साहित्य सरिता में एक निर्मल निर्झरणी करार दिया था।  डॉ.किरण मिश्रा जी, आपकी प्रतिक्रिया को नमन करते हुए आशा करता हूँ की पाठकगण इस काव्यसंग्रह को आपकी कसौटी पर खरा उतरता पाएंगे। सस्नेह आभार। 
================================================
http://www.amazon.in/dp/8193272102
_/\_दोस्तों 'बस एक निर्झरणी भावनाओं की' अब अमेज़न पर भी उपलब्ध है।

============================================

Thursday 20 October 2016

वर्ण पिरामिड 35-36 (कठपुतली)

वर्ण पिरामिड 35-36 (कठपुतली)
-------------------------------

चै
नृत्य
मोहिनी
मेला-ठेला
कठपुतली
सकल संसार
अदृश्य करतार।।
--------------------
है 
कला
संस्कृति
सम्प्रेषण
कठपुतली
समसामयिक
पौराणिक साहित्य।।
------------------------------
 सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल

Saturday 15 October 2016

अनुभूतियों से अनुप्रमाणित:- डॉ पवन विजय


अनुभूतियों से अनुप्रमाणित
-------------------------

 प्राचीन काल से ही काव्य रचनाएं मानव कल्याण एवं मानव ज्ञान को बढाने के लिए होती रही है। जब हम हिन्दी साहित्य के इतिहास को देखते है तो पाते है कि आदि काल से ही हिन्दी  साहित्य मानवता का उन्नायक रहा है ।  आदिकालीन साहित्य से लेकर वर्तमान साहित्य तक जन जीवन की अनुभूतियों से अनुप्राणित रहा है। इसी कड़ी में एक नाम जो जुड़ता है वो है त्रिभवन कौल का जिन्होंने ' बस एक निर्झरणी भावनाओं की' लिख कर युगनुरूप लेखन को जन अनुभूतियों से न सिर्फ जोड़ा है बल्कि यथार्थ के धरातल पर लाकर जनमानस को चेतावनी भी दी है यथा-

खंजर सीने में खुद भोंक चुके है
जंगलों को कंक्रीट बना चुके हैं
भू-ताप वृदि के कारण भी हम हैं
इस ताप में अब झुलस चुके है

कवि न सिर्फ जनमानस को चेतावनी देता है बल्कि उसे सोचने पर भी मजबूर करता है कि उसने प्रकृति के साथ क्या किया माँ प्रकृति का आरोप यह होगा..

जिसको जनम दिया था मैंने
उसका ही संहार किया है
अब मुझसे क्या आशा रखते
खुद तुमने अपना नाश किया है।

कवि की कविताओं में रचनात्मकता है जिसके कारण उनकी रचनाएं समर्थ हो नई चुनौतियों और जरूरतों के अनरूप विस्तृत और विकसित हुई है।
त्रिभवन कौल अपनी रचनाओं में मानवतावादी दृष्टिकोण लेकर आए है वो सामान्य मानव की आशा, निराशा उसके सपनो की बात करते है । वे मध्यमवर्गीय व्यक्ति के मन में सत्यों का उदघाटन करते है। यथा-

मंहगाई की मार, घोटालों की चमक
गिरते मूल्यों के बीच नोटों की चमक
रोष भरपूर है पर दोष किसे दूं
आम आदमी हूं मन की किससे कहूं।

उनकी रचनाओं में अनुभूतियों का मार्मिक चित्रण है । कवि भोगे हुए सत्य को जीता है इसलिए बेबाकी से अपनी बात कहता है वो कही-कही व्यक्तिगत पीड़ा का अंकन करता है तो कही विषमता का विद्रोह का आक्रोश भी उनकी रचना में दृष्टिगोचर होता है यथा-

रात्रि का अंधकार
मूक, बधिर, अपेक्षित
जीवन के आधारभूत मूल्यों को टटोलता
इंसानों के अंतर्मन को समझने की कोशिश करता
आँखे फाड़े गहन वेदना के साथ।

त्रिभवन कौल की कविता जन-जीवन की अनुभूतियों से अनुप्राणित है । यह भीड़ का साहित्य नहीं है । ये संत काव्य की तरह है जिसकी रचनाएं सामान्य मानव के हित की बात करती है उनके सुख और दुःख की बात करती है । त्रिभवन कौल को 'बस एक निर्झरणी भावनाओं की' के लिए अनंत शुभकामना अच्छाइयों को गहराई से महसूस कराने  में कलम की सफलता का अभिनंदन है।  आम जन का साहित्य आम जन मानस के लिए उपलब्ध कराना सही मायने में साहित्यिक लोकतंत्र का निर्माण और उसको संपुष्ट करना है।  'एक निर्झरणी भावनाओं' की इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगी हमारा विश्वास है।

डॉ पवन विजय

Dr. Pawan K. Mishra
Associate Professor of Sociology
Delhi  Institute of Rural Development
New Delhi.

===============================================
http://www.amazon.in/dp/8193272102
_/\_दोस्तों 'बस एक निर्झरणी भावनाओं की' अब अमेज़न पर भी उपलब्ध है।

===============================================


Friday 14 October 2016

प्रसंगों की पावनता :-सुरेशपाल वर्मा जसाला

प्रसंगों की पावनता
-------------------
यूँ तो मानव जीवन लेना ही प्रभु कृपा का मधुर प्रसाद है किन्तु वे लोग जो माँ शारदे के पावन आशीष की समृद्ध छाँव में पलकर , साहित्य के माध्यम से माँ वीणापाणी की सेवा का आनंद पा रहें हैं , निश्चय ही भाग्यशाली हैं. माँ शारदे की असीम अनुकम्पा से ही आदरणीय त्रिभवन कौल जी भावनाओं के अगाध समुन्द्र का चिंतन-मंथन कर साहित्य सृजना में निरन्तर श्रम-परिश्रम, श्रद्धा लगन से नए नए आयाम गढ़ रहें हैं.

वास्तविकता के पटल पर इनकी सार्थक, संदेशप्रद, प्रेरणाप्रद एवं ज्ञानप्रद भावनाओं के इंद्रधनुषी रंगों में रंगी कवितायेँ सीधी दिलों को छूतीजी नज़र आती है. गांधी जी के तीन बंदरों की याद दिलाती इनकी रचना, आम आदमी की विवशता का साक्ष्य है :-
गाँधी जी के तीन बंदर
तीनो मेरे अन्दर
कुलबुलाते हैं
बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो
पर देखता हूँ, सुनता हूँ, कहता हूँ. क्यों ?
क्यूंकि मैं एक आम आदमी हूँ
स्वतंत्र होते हुए भी मैं पराधीन हूँ

वर्तमान में मंहगाई, घोटालों, गिरते मूल्यों को देख कर कवि हृदय मचल उठता है और उनकी सशक्त लेखनी आकुल हो लिख देती है:-
मंहगाई की मार, घोटालों की धमक
गिरते मूल्यों के बीच नोटों की चमक
रोष भरपूर है पर दोष किसे दूं
आम आदमी हूँ, मन की किसे कहूं

कवि की दार्शनिक दृष्टि तुच्छता में विस्तृत स्वरूप का आंकलन करती है और उनका व्यथित मन स्वयं से ही प्रश्न पूछता प्रतीत होता है:-
काम, क्रोध, लोभ और मोह
मेरे दिलो- दिमांग रुपी घर में बसा कबाड़
बाहर क्यों नहीं निकाल सकता
कब मैं खुद कबाड़ीवाला बन गया
मझे पता ही चला

" बस एक निर्झरणी भावनाओं की" पुस्तक में भावनाओं को उलटफेर है जो भिन्न भिन्न परिपेक्ष में विभिन्न आयामों का दर्शन कराती है. लक्ष्य के प्रति सजगता का निरूपण करते हुए कवि की स्पष्टवादिता का दर्शन देखते ही बनता है:-
अर्जुन की तरह तुम ध्यान धरो
मछली की आँख, तीर पार करो
लक्ष्य तक का सफ़र, सहज तो नहीं
भटकायेंगे तुमको चोराहैं सभी
जो बीत गयी, कल बीत गयी.

कवि का हृदय ' उदरीपन के प्रति प्रतिक्रिया' के सिद्धांत का अनुपालन करते हुए बिगड़े सामजिक ताने बाने को देख कर तड़प उठता है. वह चंचल मन की अस्थिरता का शब्द चित्रण प्रस्तुत करते हुए, सहजता से अनूठेपन की और ले जाता है:-
मन
कभी चंचल, कभी स्थिर
कल्पनाजनित भ्रमजाल उत्पन करता
आशा,निराशा,अपेक्षाओं और व्याकुलताओं का
मायाजाल बुनता हुआ, कभी
सत्य को मिथ्या और मिथ्या को सत्य में
परिवर्तित करता
यह मन

आवाहन की शब्द मणिकाओं को कितने सुन्दर सुव्यस्थित ढंग से पिरो कर अप्रतिम पंक्तिमाला तैयार की है यह उनकी बेजोड़ साहित्यक कलाकारी है:-

किसी कमल को कीचड़ से निकालो तो कुछ बात  बने
किसी के ज़ख्मों पर मरहम लगाओ तो कुछ बात बने
ज़हर बाँटने वाले तो बसे हैं संसार के कोने कोने में
तुम समुंद्र मंथन कर अमृत निकालो तो कुछ बात बने

कविता की निम्न पंक्तियों में सागर की गहनता एवं हिमालय की उच्चता के दर्शन एक साथ होते हैं जो मन के भावों को तृप्त करती प्रतीत होती हैं:-

पत्थर जो हाथ आया तेरे, फितरत तेरी सरे आम हो गयी
मारक बना तो रावण बने, पूजा तो ज़िंदगी राम हो गयी.

सार रूप में कहूँ तो पुस्तक ' बस एक निर्झरणी भावनाओं की' में कवितायेँ जीवन की यथार्त एवं अनुभव के रंगों का श्रृंगार हैयह कवितायेँ कुंठा, त्रासदी, भय, निराशा ,दुःख, बिछोह आदि की पृष्टभूमि का पटाक्षेप करती हैं तो वहीँ सत्य, प्रेम ,आस, विशवास, सुख, आनंद के अलंकरणों से सुशोभित है जो जीवन दर्शन का समूह स्वरूप प्रदर्शित करती हैं . पुस्तक में प्रसंगों की पावनता के लिए आदरणीय कौल साहब अभिनंदनीय  हैं. प्रेरक तत्वों से पूर्ण यह पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है.
अशेष शुभकामनाओं सहित
सुरेशपाल वर्मा जसाला
(कवि एवं साहित्यकार)
1/4332 श्रीराम भवन
रामनगर विस्तार, शाहदरा -दिल्ली -110032
==================================================
http://www.amazon.in/dp/8193272102
_/\_दोस्तों 'बस एक निर्झरणी भावनाओं की' अब अमेज़न पर भी उपलब्ध है।
==================================================