Saturday 27 December 2014

My review of ' Drawing Room Ke Kone' a hindi poetry book authored by Sh. Ramkishore Upadhyay.


श्री रामकिशोर उपाध्याय द्वारा रचित काव्य संकलन ' ड्राइंग रूम के कोने' पाठकों के मन के हर कोने को बड़ी ही सहजता और सलरता से छू लेता है. हर कविता कवि के हृदय की भावनाओं, गहरी सोच और संवेंदनशीलता की अति सुन्दर प्रस्तुति है. हर प्रकार की भावनाओं की अभिव्यक्ति को सटीक एवम सार्थक ढंग से भिन्न भिन्न प्रतीकों के सहारे शब्दों में पिरो कर, श्री रामकिशोर उपाध्याय ने अपनी इस काव्यधारा को एक इंद्रधनुषी आकार प्रधान किया है.

मेरे प्राणों में
हो रहा जो स्पंदन
वह तेरा ही तो है ऊर्जा कण....... मेरी माँ

इस काव्य संकलन की पहली कविता ही पाठक के मन में एक ऐसे ऊर्जा भर देती है  कि  श्री रामकिशोर उपाध्याय की अन्य सभी कविताओं का पठन करने की उत्सुकता होती है.

कवि ने सामाजिक विसंगतियों तथा विघटन की ओर तो पाठक का ध्यान तो खींचा ही है साथ ही दुःख-हताशा, प्रेम, प्राकर्तिक सौंदर्य, देशप्रेम और आस्था के  सतरंगी मिश्रण को अपनी सशक्त लेखनी में ढाल कर पाठकों का दिल जीतने का एक बहुत सुदृढ़ प्रयास किया है.

" जीवन के पन्नो में, वही तो जीवन कहानी कही जाएगी
जिए जो ज़िंदादिली से, वही तो ज़िंदगी कही जाएगी "..........

 ‘उम्र तो मुठ्ठी का रेत हैनामक कविता से उदरित यह पंक्तियाँ कवि के जीवन के फलसफे को दर्शाती है.

इसी फलसफे को कवि ने बड़ी ही ज़िंदादिली से और बेकाकी से अपनी कविताओं में परोस कर पाठको का मन मोह लेने की चेष्टा की है. कविताओं में भिन्न भिन्न विधाओं का प्रयोग किया गया हैकवि की व्यंग-कटाक्ष (बुद्ध और बुद्धू, आज का महाभारत , गणतंत्र दिवस), सामाजिक कुरीतियां और विसंगतियों (दिवास्वप्न. यह धरती भी कुछ मांग रही है), दर्शन ,चिंतन,प्रार्थना ( जीना है तो मेरे साथ चलना सीखो, शत शत नमन ही काशी. तो यह जीवन उधार ले ले ) इत्यादि प्रतिनिधि कवितायेँ जहाँ यथार्त से रूबरू कराती हैं, वंही पर कवि अपने मन के दर्द और व्यथा को. अपनी अपेक्षित आशाओं को, तेज़ और पैनी कलम की धार से और अपने अनुभवों के माध्यम से' ड्राइंग रूम के कोने' जैसा  एक ऐसा दस्तावेज़ हमारे समक्ष प्रस्तुत करने में सफल रहें है जो श्री रामकिशोर उपाध्याय की  काव्य प्रतिभा का और उनकी प्रतिबद्धता का एक सुन्दर उदहारण प्रस्तुत करता है. मेरा मानना कि श्री रामकिशोर उपाध्याय की सफलता का राज़  सत्यवादिता एवं स्पष्टवादिता है. मुझको इसमें कोई संदेह नहीं कि ' ड्राइंग रूम के कोने' '  पाठकों को तरह तरह के  जज्बातों से रूबरू करा उनको दिलों में एक पैठ बनाने में कामयाब होगी.
मेरी शुभकामनायें और हार्दिक बधाई श्री रामकिशोर उपाध्याय जी.      

त्रिभवन कौल
स्वतंत्र लेखक-कवि
११-०८-२०१४
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On the birth anniversary of Ghalib._/\_  on 27th December 
2014

ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर
या वह जग़ह बता जहाँ ख़ुदा न हो .............................(ग़ालिब )

मस्जिद ख़ुदा का घर है पीने की जग़ह नहीं
काफ़िर के दिल में जा वहां ख़ुदा नहीं .........................(इक़बाल)

काफ़िर के दिल से आया हूँ में यह देख कर फ़राज़
खुदा मौजूद है वहां पर उसे पता नहीं........................ ( फ़राज़)
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शराब पीनी है तो सिर्फ जांयें मयखाने में ही क्यों

जब ईश हर जग़ह, फिर घर में क्यों नहीं ...................(त्रिभवन कौल).
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