Tuesday 30 October 2018

Threnody of The Truth


 Threnody of The Truth
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The moon
I want to pull
Out of jaws of clouds
To dispel the darkness
Shadowing over the human psyche of intolerance.

The truth
I want to reveal
With the churning of thoughts
Injustice meted out long ago
Sure, will be marginalised by so and so.

The  plough
I want to plough
Deeper and deeper to sow the seeds
To grow plants of love ignoring  power of sleaze
Bullshit ! None cares when a rapist gets his release.

The  victim
I want to see
Brave enough to come out of closet
To tell also story of partnering the crime
Doesn’t it take two words up-down to rhyme ?

The poem
I want to write
Pour my heart and cleanse my soul
May be booed as truth is a bitter pill
So is digging the grave and beans to spill.
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All rights reserved/Tribhawan Kaul

Saturday 27 October 2018

औकात



वह पढ़ा लिखा बेकार था। नौकरी का जुगाड़ कहीं भी नहीं हो पा रहा था। जगह जगह मज़दूरी भी की पर हार नहीं मानी । एक कंपनी में साक्षात्कार दे कर निकला था। आशा थी कि इस कंपनी में नौकरी लग जायेगी। भूख लग रही थी। सामने एक रेहड़ी पर मूंगफली भुनती  देख वह उस ओर अग्रसर हुआ। पटरी पर बैठे एक हट्टे कट्टे  भिखारी ने हाथ फैला दिए। अच्छा तो नहीं लगा उसे उस नौजवान को भीख मांगते देख पर " हाथ फैलाने वाले पर हमेशा दया भाव रखना चाहिए ' के संस्कारों ने मजबूर कर दिया।
" मज़दूरी क्यों नहीं करते ? भीख मांगने से तो अच्छा है। " उसने बटुआ निकलते हुए कहा।
" जब हज़ारों भीख मांग कर कमा लेते हैं तो मज़दूरी करने की क्या ज़रूरत। " भिखारी हंस कर बोला मानो उसकी पढ़ाई का मज़ाक उड़ा रहा हो।
 छोटी पॉकेट में  दो का सिक्का था। बड़ी पॉकेट में केवल एक बीस  का नोट था, जो मूंगफली के लिए और उसके घर वापसी के लिए पर्याप्त था। ना चाहते हुए भी उसने दो का सिक्का निकाला और उस नौजवान  भिखारी  को पकड़ा दिया। भिखारी  ने बड़ी ही हिकारत से उसे देखा और कहा।
" बस इतनी ही औकात है ?"
" तुमसे तो अच्छी है " उसने उत्तर दिया और अपनी मंजिल की और चल पड़ा। 
 त्रिभवन कौल  
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Friday 26 October 2018

दोहा दोहा नर्मदा '

विभिन्न संस्थानों द्वारा प्रकाशित , २०१८ में  दिल्लीवाली (अंग्रेजी/हिंदी ), काठी का घोडा , भाव कलश  काव्य संकलनो के उपरांत  आज 'दोहा दोहा नर्मदा ' की  प्रतियाँ डाक द्वारा प्राप्त हुई।   आदरणीय आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ' एवं प्रो (डॉ )साधना वर्मा जी द्वारा संपादित विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर की प्रस्तुति ' दोहा दोहा नर्मदा ' संकलन में मेरे द्वारा रचित १०० दोहे सम्मलित किये गए हैं।  दोहे लेखन के लिए आदरणीय आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ' जी ने मुझको दोहा लेखन की बारीकियां समझाते  हुए प्रोत्साहित किया जिसके लिए मैं उनका बहुत आभारी हूँ।


Wednesday 24 October 2018

मुक्तछंद काव्य का शिल्प विधान


 मुक्तछंद काव्य का शिल्प विधान
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मुक्त छंद का समर्थक उसका प्रवाह ही है। वही उसे छंद सिद्ध करता है और उसका  नियमारहित्य  उसकी 'मुक्ति"।
............................................................. सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'/ 'परिमल' #

महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने मुक्त छंद को हिन्दी काव्य में संस्थापित किया।  उनका उपरोक्त कथन मुक्तछंदीय कविता को छन्दयुक्त कृतियों के मध्य एक सार्थकता प्रधान करता है
हमेशा जब मुझसे पूछा जाता है कि  मुक्तछंद/ स्वच्छंद छंद/ अतुकांत कविता में आप कवितायेँ क्यों लिखतें हैं तो अनायास ही मुख से निकल पड़ता है भावों के तीव्र वेग मुझे भावों को छंदों में  बांधने का अवसर ही नहीं देते।  जैसे ही भाव आतें हैं , लिख देता हूँ या यूँ कहूं को लिख लिख जाते हैं। मन कहता है, मस्तिष्क समझता है और उँगलियाँ  थिरक उठती हैं कागज़ पर, टंकण मशीन या फिर लैपटॉप के की बोर्ड पर।  यह नहीं कि मैं छंदबंध कविता नहीं लिख सकता, लिख सकता हूँ और लिखी भी हैं  पर जब बात मुक्तछंद की आती है तो मैं कहता हूँ :-  

"रचनायें न तोलो छंद मापनी की तराज़ू में
मेरी भावनाओं को खुला आसमान चाहिए।"
............................................(बस एक  निर्झरणी भावनाओं की/त्रिभवन कौल )

मुझसे फिर पूछा जाता है कि मुक्तछंद की क्या कोई अपनी विधा है ? इसका विधान/ शिल्प  क्या है , जैसे कि दोहों, मुक्तक ,चौपाई,रोला, कुंडलिनी इत्यादि में होता है ?  जवाब तो वैसे होना चाहिए कि छंदमुक्त का अर्थ ही जब छंदों से मुक्त रचना से है तो इसमें छंद विधि -विधान का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता पर मैं समझता हूँ की बेशक छंदमुक्त रचना में वार्णिक छंदों या मात्रिक छंदों की तरह वर्णो की या मात्राओं की गणना नहीं होती पर एक अच्छी  छंदमुक्त रचना का  निम्नलिखित मापदंडों पर आंकलन करना आवश्यक हो जाता है। यही मापदंड मुक्तछंद कविताओं की विधा को दर्शाते और सार्थक करतें हैं। 

1) कहन में संवेदनशीलता :- विषय में विषय के प्रति कवि कीं पूर्ण ईमानदारी और संवेदनशीलता होना आवश्यक है। कवि का अपनी बात रखने के एक ढंग होता है कविता किसी भी प्रकार की क्यूँ न हो, किसी भी विचारधारा को प्रकट क्यूँ न करती हो, असत्य नहीं होती. हाँ उस सत्य को दर्शाने के लिए कल्पना का सहारा एक आवश्यक साधन बन जाता है. चूँकि सत्य हमेशा से कटु रहा है तो विषय के प्रति संवदेनशीलता बरतना कवि का कर्तव्य हो जाता है।

2) प्रभावात्मकता :- जब तक एक छंदमुक्त कविता में सशक्त भाव , सशक्त विचार और सशक्त बिम्ब नहीं होंगे, रचना की प्रभावात्मकता ना तो तीक्ष्ण होगी ना ही प्रभावशाली     कविता अगर केवल भावनात्मक हो या केवल वैचारिक तो पाठक शायद उतना आकर्षित न हो जितना की उस प्रस्तुति में जंहाँ दोनों का समावेश हो. कोरी भावनात्मकता  या कोरी वैचारिकता कविता के प्रभाव को  क्षीण ही करतें हैं।

3) भाव प्रवाह :- छंदमुक्त कविता में भावों का निरंतर प्रवाह होना आवश्यक है अर्थात किसी भी बंद में भावों की शृंखला ना टूटे और पाठक को कविता पड़ने पर मजबूर करदे।

4) भाषा शैली :- मुक्तछंद कविता की भाषा शैली अत्यंत ही सहज, सरल और सर्वग्राही होनी चाहिए।  यदि कंही कंही तुकांत भी हो जाए तो कविता का काव्य सौंदर्य निखर उठेगा।  कहने का  तात्पर्य है  कि मुक्तछंदीय कविता गद्य स्वरूप नहीं लगनी चाहिए।

फेसबुक जैसी सोशल मीडिया पर कई बार पाया गया है कि किसी भी गद्य को टुकड़ों में बाँट कर उसको मुक्तछंद कविता के नाम से प्रकाशित किया जाता है। ऐसे  दुष्प्रयासों से रचना एक अर्थहीन गद्य ही बन कर रह जाती है ना की कविता।  मुक्तछंद या छंदमुक्त कविता में कविता के वह सारे गुण होने ज़रूरी हैं जो अपने प्रवाह से, कभी कभी गेयता से, तुकांत से मापनी रहित काव्य को एक ऐसा रूप दें जो मनोरंजन के साथ साथ एक गहन विचार को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर सके। यथा :-

तुम्हें खोजता था मैं,
पा नहीं सका,
हवा बन बहीं तुम, जब
मैं थका, रुका ।

मुझे भर लिया तुमने गोद में,
कितने चुम्बन दिये,
मेरे मानव-मनोविनोद में
नैसर्गिकता लिये;

सूखे श्रम-सीकर वे
छबि के निर्झर झरे नयनों से,
शक्त शिराएँ हुईं रक्त-वाह ले,
मिलीं - तुम मिलीं, अन्तर कह उठा
जब थका, रुका ।...................................सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की कविता/प्राप्ति

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की कविता प्राप्ति में कंही भी गद्य का आभास नहीं होता। पर एक प्रवाह है , एक मधुरिम से गेयता का आभास होता है और एक विचार है जो मन को झंकृत करने में समर्थ है।  मुक्तछंद /छंदमुक्त/अतुकांत रचना का स्वरूप भी 'रसात्मक वाक्यम इति काव्यम'* को चरितार्थ करना ही होना चाहिये ।

 मुक्तछंदीय कविताओं में कोई नियमबद्धता नहीं है फिर भी उपरोक्त तत्व एक कविता को काव्य सौंदर्य प्रधान करने में और पाठकों के मन में अपनी छाप छोड़ने मंन सफलता प्राप्त करती है।
उर्दू के मशहूर शायरे आज़म मिर्ज़ा ग़ालिब उस काल में भी भविष्य के  निराला जी के शीर्ष कथन का अनुमोदन करते नज़र आते हैं जब  ग़ालिब कहते हैं  :-
 बकर्दे-शौक नहीं जर्फे-तंगनाए ग़ज़ल,
कुछ और चाहिये वुसअत मेरे बयाँ के लिये”.............(गालिब)#
(बकर्दे-शौक: इच्छानुसार, ज़र्फे-तंगनाए ग़ज़ल: ग़ज़ल का तंग ढांचा, वुसअत: विस्तार ।)
मिर्ज़ा ग़ालिब का यह शेर उनकी उस मज़बूरी को बयान करता है जिसमे वे अपनी इच्छानुसार अपनी बात को ग़ज़ल के तंग ढांचे में/ बंदिशों में रह कर नहीं सकते थे और उनको अपनी बात रखने के लिए उन्हें अधिक विस्तार की आवश्यकता प्रतीत होती थी । मुक्तछंद में रचना करने का साहस अगर पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के उपरांत किसी कवि-शायर ने मुझे दिया है तो वह उर्दू के महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के इस शेर ने दिया जिसका भाव यह है की कवि बंदिशों में रह कर/ छंदों के विधि विधान में रह कर अपनी भावनाओं को थोड़े विस्तार के साथ या मुक्त हो कर नहीं कह सकता है ।
लेकिन यहाँ विस्तार का मतलब काव्य को गद्य रूप देना कतई नहीं है अपितु काव्य रस की व्यवस्था को ध्यान में रख कर मुक्तछंद के रचनाकार अपनी छंदमुक्त/स्वच्छंद छंद रचना  को वैचारिक, भावपूर्ण  कथ्य को प्रवाह और यति (जो अधिकतर अदृश्य रहता है )द्वारा सार्थकता प्रदान करता है। पंक्तियों के अंत  तुकांत हो तो सोने पर सुहागा पर  आवश्यक  नहीं। 

प्यार
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प्यार न वासना है न तृष्णा है
न है किसी चाहत का नाम
प्यार एक कशिश है
भावनाओं का महल है
जिसमे एहसास की इटें हों
विश्वास की नीव हो
संवेदना का गारा हो
गरिमा का जाला हो
तब प्यार की बेल
आकाश को छूती
पनपती है
यही सृजन है और सृजन
सृष्टि का जन्मदाता है.
---------------------त्रिभवन कौल    

त्रिभवन कौल 
स्वतंत्र लेखक -कवि
e-mail : kaultribhawan@yahoo.co.in
blog : www.kaultribhawan.blogspot.in 

*आचार्य विश्वनाथ (पूरा नाम आचार्य विश्वनाथ महापात्र) संस्कृत काव्य शास्त्र के मर्मज्ञ और आचार्य थे। वे साहित्य दर्पण सहित अनेक साहित्यसम्बन्धी संस्कृत ग्रन्थों के रचयिता हैं। उन्होंने आचार्य मम्मट के ग्रंथ काव्य प्रकाश की टीका भी की है जिसका नाम "काव्यप्रकाश दर्पण" है

Sunday 14 October 2018

कुंडलियां # Me Too vs # We Too

हैश टैग मी टू कहे, कैसा यह व्यापार
लांछित तो सब हो गये, सत्य या निराधार
सत्य या निराधार, पुरुषो सावधान रहो       
मिलती कोई नार, बस कदम भर दूर रहो
कहता त्रिभवन कौल, बदनाम कल होगा तू
छेड़ो तुम भी राग, कहो हैश टैग वी टू

Haish tag mee too kahe, kaisa yah vyapaar
Laanchit to sab ho gaye, sty yaa niradhaar
Sty yaa niradhaar, prusho saawdhan raho
Milti koyi naar , bus kdam bhar door raho
Kahta tribhawan kaul, badnaam kal hoga too
Chedo tum bhi raag, kaho haish tag wee too.
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सर्वाधिकार सुरक्षित/ त्रिभवन कौल

Thursday 11 October 2018

Title of Honour


Kumarmani Mahakul <kumarmanimahakul3@gmail.com>
Oct 5, 2018, 8:05 AM
to me

To
Tribhawan Kaul
Birth Date: 01 January 1946 
Birth Place: Srinagar, Jammu and Kashmir, India
(As per information in profile of the poet in Poem Hunter)
E mail: kaultribhawan@gmail.com

Dear Sir
On behalf of all fellow poets, PH Family and our Mahakul family we have offered you a title of honour as, "Literarure Galaxy," due to your long time perseverance and contribution to the world literature on date 03 October 2018. The information is posted in your Poem Hunter Poet's Page on date 03 October 2018, Time 10:55:00PM.  You can visit URL https://www.poemhunter.com/tribhawan-kaul/

Regarding this title of honour a poem of notification is published in my poet's page in Poem Hunter titled as, "Attention to Titles of Honour (Part-8)." You can visit the URL https://www.poemhunter.com/poem/attention-to-titles-of-honour-part-8/

On behalf of all family members I congratulate you and wish you all the best. May God's grace fall on you and your family in abundance!

Yours sincerely,
Kumarmani Mahakul
(Freelance Poet & Philosopher)


नया युग, नयी औरत




दिनांक 08 अक्टूबर 2018को राष्ट्रीय जंक्शन में प्रकाशित मेरी कविता जो # मी टू के संदर्भ में आज भी प्रासंगिक है। सप्रेम।

नया युग, नयी औरत
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क्रोध भरी नज़रों से न देखो मुझे
दोष का भागीदार न बनाओ मुझे
तुमने प्यार को समझा सौदा या क़रार
भावनाहीन व्यक्ति को कभी हुआ है प्यार.

तुम शरीर के कायल, मैं प्रेम की मस्तानी
तुम दुष्शासन के प्रतीक, मैं कृष्ण की दीवानी
तुम्हे है पसंद अँधेरा, मुझे चाहिए प्रकाश
कभी तो मेरी कसौटी पर खरे उतरते, काश !

औरत कभी बाजारू नहीं, न वस्तु, ना ही बिकाऊ
मर्दों की इजाद यह सब, जब आये ना वह काबू
माँ, बेटी, पत्नी फिर माँ, हैं जीवन आधार; ज्ञान होना चाहिए
शक्ति के सवरूप भी यह सब, यह ज्ञात होना चाहिए.

प्यार सबमे में निहित है, पर अलग अलग अंदाज़ है
यह हैं तो है यह जीवन, और यह संसार है.
औरत को कभी भी कम नहीं आंकना
भविष्य रहा है और रहेगा हमी से , अतीत में न झांकना
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सर्वाधिकार सुरक्षित / बस एक निर्झरणी भावनाओं की /२०१६/त्रिभवन कौल

Wednesday 10 October 2018

Poetry is in a mess ? ? ?


The twitter tweets again
Though in jest yet circumspect of pain
Paradise has been lost and how to regain
Surfer only knows to negotiate dangerous waves
And getting the kicks which one craves
Controversies are always there to court
Alas ! Poetry is no more an adventure sport.

The thrill is gone and gone is mystery
Not to be found is touch of mastery
Copy paste delete and copy paste again
Universities are registering insane, some sane
Circumventing  maze to get declared the winner
Trophies, certificates do not bring cheer
Yet everything is not fake. Oh ! My dear
Real poets are in for support
Alas ! Poetry is no more an adventure sport.

Ideas reveal anytime midway
Path is clear not like a zig-zag day
Eyes , brain and heart have its say
Universities do not pave the way
Manufacturing robots for a poetic sorjourn
A poet seems pathetic & intellectually torn
Actual poets seldom take the fort

Alas ! Poetry is no more an adventure sport.
So my dear ! Don’t lose heart
Good purchasers are too in a Haat
Best are selected and the best are selectors
Showing the way to mediocre  quitters
Tweets are understandable
Questions are expendable
Let us help poetry not to abort
Alas ! Poetry is no more an adventure sport.
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All rights reserved/Tribhawan Kaul

Wednesday 3 October 2018

"जश्न ए अलफ़ाज़" पर्पल पेन सम्मान समारोह एवं काव्य गोष्ठी।


https://www.youtube.com/watch?v=GnV8XKMkxRo

दिनांक 29  सितम्बर  2018  हिंदी भवन, दिल्ली में  पर्पल पेन युवा द्वारा आयोजित तृतीय वार्षिकी के उपलक्ष्य में सम्मान समारोह एवं काव्य गोष्ठी का एक भव्य कार्यक्रम "जश्न ए अलफ़ाज़" संम्पन्न हुआ। समारोह के विशिष्ठ अतिथिगण राष्ट्रिय और अंतराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त कवि /ग़ज़लकार आदरणीय बाल स्वरूप राही जी, जनाब  सीमाब सुल्तानपुरी जी , आदरणीय लक्ष्मी शंकर बाजपेयी जी और जनाब मलिकज़ादा जावेद जी रहे।  इस कार्यक्रम की शुरुआत पर्पल पेन की संस्थापिका एवं निर्देशिका सुश्री वसुधा कनुप्रिया  ने पर्पल पेन के उद्देश्यों और साहित्यक कार्यकलापों से सभागार में बैठे आमंत्रित रचनाकारों को अवगत कराया। इसके उपरांत संचालक श्री त्रिभवन कौल ने आदरणीय बाल स्वरुप राही जी को समारोह के अध्यक्ष के रूप में और अन्य विशिष्ठ अतिथियों को मंचासीन होने का निवेदन किया। विशिष्ठ अतिथियों के मंचासीन के बाद  सुश्री वसुधा कनुप्रिया ने सभी विशिष्ठ अतिथियों  का स्वागत अंगवस्त्र और उपहार दे  कर किया। श्रीमती पुष्पा राही जी और श्रीमती फौज़िया जावेद जी जावेद जी को सम्मानपूर्वक पौधों के गुलदस्ते भेंट किये गए।
सम्मान समारोह में  पर्पल पेन द्वारा कला, मीडिया, साहित्यिक संस्थाओं आदि के माध्यम से साहित्य की सेवा करने वाले गुणीजनों सर्वश्री  डॉ. बृजपाल सिंह संत जी , डॉ. देव नारायण शर्मा जी , विजय पंडित जी , सुरेशपाल वर्मा जसाला जी और और कालीचरण सौम्य जी  को "साहित्य साधक सम्मान " से सम्मानित  किया गया।  पर्पल पेन पटल पर सक्रिय सहभागिता एवं संचालन व उत्कृष्ट रचनाधर्मिता निभाने वाले सदस्यों  श्री त्रिभवन कौल जी  और सुश्री रजनी रामदेव जी को और उनकी विशिष्ट साहित्यिक सेवा के लिए  पर्पल पेन द्वारा  'साहित्य सेवी सम्मान'  से सम्मानित किया गया। सभी सम्मानित गुणीजनों को अंगवस्त्र , पर्पल पेन ट्रॉफी और प्रशस्ति पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह में आमंत्रित कवियों का भी स्वागत किया गया जिनमे सर्वश्री / सुश्री  रामकिशोर उप्पध्याय जी , डॉ. चंदरमणि ब्रह्मदत्त जी , पुष्पा सिंह विसन जी ,   प्रेम बिहारी मिश्र जी , बबली वशिष्ठ जी , अशोक कश्यप जी , असलम बेताब जी , अहमद अली बर्की आज़मी जी , ओमप्रकाश प्रजापति जी , ओमप्रकश शुक्ल जी  और काज़ी तनवीर जी प्रमुख रहे।

सम्मान समारोह के उपरांत एक अविस्मरणीय काव्यसंध्या का आगाज़ हुआ जिसका अंत विशिष्ठ अतिथियों के द्वारा अपने बेहतरीन  काव्य पाठ से, ग़ज़लों से तो हुआ ही , उत्तर प्रदेश, हरियाणा , दिल्ली क्षेत्रों से आये ४८ कवियों- कवित्रियों - ग़ज़लकारों ने सारे समारोह को जैसे हाईजैक कर लिया । एक के बाद एक रचनाकार और ग़ज़लकार आते गए और सभागार में उपस्थित सभी श्रोताजनों को काव्य की सतरंगी होली से सराबोर कर दिया। सुश्री /सर्वश्री  डॉ. बृजपाल सिंह संत , डॉ देव नारायण शर्मा , सुरेश पाल वर्मा जसाला , काली शंकर सौम्य , रामकिशोर उपाध्याय , डॉ चंद्रमणि दत्त , विवेक आस्तिक , इब्राहम अल्वी , ओमप्रकाश शुक्ल , निवेदिता मिश्रा झा , अहमद अली बर्की आज़मी , सुनील कुमार , जगदीश मीणा , मनोज कामदेव , डॉ सुषमा गुप्ता , सुनील कुमार सुमन , रवि शर्मा , आशीष सिन्हा कासिद , जगदीश भारद्वाज , जावेद अब्बासी , अशोक कश्यप , ए एस  अली खान , प्रेम बिहारी मिश्र , त्रिलोक कौशिक , डॉ मिलन सिंह , चश्मा फारूकी ,काज़ी तनवीर , राम लोचन , रविंदर जुगरान , बबली वशिष्ठ ,रवि ऋषि , विवेक चौहान , अभिषेक अम्बर , डॉ. इंदिरा शर्मा , रेखा जोशी , वंदना गोयल , पंकज शर्मा , मीनाक्षी भटनागर , सूक्ष्म लता महाजन , निशि शर्मा , नीलोफर नीलू , अरविन्द कर्न , रजनी रामदेव, प्रवीण अग्रहरि के साथ साथ विशिष्ठ अतिथियों आदरणीय  सर्वश्री बाल स्वरुप राही जी ,  सीमाब सुल्तानपुरी जी , लक्ष्मी शंकर बाजपेयी जी, मालिकज़ादा जावेद जी और श्रीमती  पुष्पा राही जी  की  ग़ज़ल का कोई शेर , गीत की कोई पंक्ति , छन्द - मुक्तछंद   की गहराई जब भी श्रोताओं के दिल को छु जाती तो सभागार तालियों से गूँज उठता। कुछ उपलब्ध अशआर/ काव्यांश  पेश हैं :-

क्या करना बारीक बात कर , हलके फुलके स्वर में गा
इस कमरे से उस कमरे तक , साथ घूमती लेकर चाबी का गुच्छा।  ( पुष्पा राही )
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बनाते सभी आये हैं हैवान को इंसान
मैं इंसान को इंसान बनाने चला हूँ।   ( बाल स्वरूप राही  )
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तौह्फे में जो कटे शीश बेटे के जो पेश किये
कहा आप  दोनों को यह एक एक फूल है
चौंके तो ज़रूर किन्तु शांत होके बोले ज़फर
हरकत आपकी यह बिलकुल फ़िज़ूल है
देश के लिए हुए हैं कुर्बान बेटे मेरे
और कुर्बान होना मेरे असूल है
जंग यह रहेगी जारी कह दो लंदन से
हमें आपका यह तोहफा कबूल है।   (लक्ष्मी शंकर बाजपेयी )           
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बेहतर था सीख लेते कोई  हाथ का हुनर
पढ़ लिख कर मेरे बच्चे भी बेकार हो गए।  (मलिकज़ादा जावेद )
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ग़ज़ल में कोई फ़नकारी नहीं
अगर लहज़े में कोई चिंगारी नहीं।  (मलिकज़ादा जावेद )
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खो गयी कहीं , मेरी नज़र का क्या है
इसने ख्वाबों के अलावा देखा क्या है।  (सीमाब सुलतानपुरी )
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स्वर भी नये हैं कुछ पुराने भी
और उसी के साथ सजे हैं
बहुत से साज
आज इस महफ़िल में हो रहा है
जश्ने अलफ़ाज़।   (रामकिशोर उपाध्याय )
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घृणा का पर्याय बने जो , क्यों खौफ नहीं है भारत में
ठोको कीलें उन छाती में , जो खून बहाये भारत में।  (सुरेश पाल वर्मा जसाला )
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इस शहर में बस दो ही किरदार मिले हमको
कुछ लोग तमाशा हैं कुछ लोग तमाशाई।  ( रवि ऋषि )
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कि ग़ज़लगोई इबादत सी लगे है
ग़ज़ल रब की इनायत सी लगे है। (जगदीश भारद्वाज )
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प्यार का जब इज़हार हुआ है
प्यार तभी से प्यार हुआ है।   ( जावेद अब्बासी )
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जिन लोगों ने बस जय बोली
पुरुस्कार पर उनका काबिज़ होना ही था।  ( त्रिलोक कौशिक )
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ग़मो को दिखाने की कोशिश न करना
ख़ुशी को छुपाने की कोशिश न करना।  (चश्मा फारूखी )
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ऐसे वैसों की बात मत करना , अपने पैसों के बात मत करना
हमने पैसे बहुत कमाये हैं , हमसे पैसों की बात मत करना।  (असलम बेताब )
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सभी कवियों को , ग़ज़लकारों को  इस अवसर पर काव्य पाठ करने हेतु 'शब्द शिल्पी ' सम्मान  से सम्मानित किया गया। 
इस शानदार समारोह का  अंत विशिष्ठ अतिथियों द्वारा केक काट कर और  पर्पल पेन की संस्थापिका सुश्री वसुधा कनुप्रिया  द्वारा  धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। पूरे समारोह का संचालन  त्रिभवन कौल और अरविन्द कर्न ने किया जिसकी सभी ने भूरि भूरि प्रशंसा की।
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 by Tribhawan Kaul