Thursday 11 October 2018

नया युग, नयी औरत




दिनांक 08 अक्टूबर 2018को राष्ट्रीय जंक्शन में प्रकाशित मेरी कविता जो # मी टू के संदर्भ में आज भी प्रासंगिक है। सप्रेम।

नया युग, नयी औरत
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क्रोध भरी नज़रों से न देखो मुझे
दोष का भागीदार न बनाओ मुझे
तुमने प्यार को समझा सौदा या क़रार
भावनाहीन व्यक्ति को कभी हुआ है प्यार.

तुम शरीर के कायल, मैं प्रेम की मस्तानी
तुम दुष्शासन के प्रतीक, मैं कृष्ण की दीवानी
तुम्हे है पसंद अँधेरा, मुझे चाहिए प्रकाश
कभी तो मेरी कसौटी पर खरे उतरते, काश !

औरत कभी बाजारू नहीं, न वस्तु, ना ही बिकाऊ
मर्दों की इजाद यह सब, जब आये ना वह काबू
माँ, बेटी, पत्नी फिर माँ, हैं जीवन आधार; ज्ञान होना चाहिए
शक्ति के सवरूप भी यह सब, यह ज्ञात होना चाहिए.

प्यार सबमे में निहित है, पर अलग अलग अंदाज़ है
यह हैं तो है यह जीवन, और यह संसार है.
औरत को कभी भी कम नहीं आंकना
भविष्य रहा है और रहेगा हमी से , अतीत में न झांकना
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सर्वाधिकार सुरक्षित / बस एक निर्झरणी भावनाओं की /२०१६/त्रिभवन कौल

3 comments:

  1. All comments via fb/TL
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    Vandaana Goyal
    October 11 at 4:41 PM
    सब कुछ बयां करती हुई वाह
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    Umesh Mishra
    October 11 at 5:20 PM
    सुंदर रचना
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    Snhasushma Rani
    October 11 at 5:53 PM
    बहुत ही सुन्दर कृति है ।मन को छू गयी ।
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    निशि शर्मा 'जिज्ञासु'
    October 11 at 7:01 PM
    विचारणीय रचना
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    Babli Kumari
    October 11 at 7:07 PM
    बेहद सुन्दर! लेकिन आजकल औरतों में भी अपवाद बहुत हैं।
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    Sunita Sharma
    October 11 at 7:37 PM
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति


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  2. Meenakshi Sukumaran
    October 11 at 5:56 PM
    Beautiful Creation
    ---------------via fb/TL

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  3. Comments via fb/ मुक्तक-लोक
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    Kviytri Pramila Pandey 12:57pm Oct 12
    आपको बहुत बहुत बधाई
    अतिसुंदर रचना
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    Yogesh Kumar 12:57pm Oct 12
    सुपर कथा
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    कालीपद प्रसाद मण्डल 12:57pm Oct 12
    बहुत सुन्दर सृजन
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    सुषमा शैली 2:56pm Oct 12
    बहुत सुंदर आदरणीय
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    कैलाश नाथ श्रीवास्तव 2:56pm Oct 12
    नारी अस्मिता के गौरव की अभिव्यक्ति कराती बहुत सुन्द रचना आदरणीय .
    वाहहह
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    Subhash Singh 7:22pm Oct 12
    लाजवाब अभिव्यक्ति



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