Saturday 27 October 2018

औकात



वह पढ़ा लिखा बेकार था। नौकरी का जुगाड़ कहीं भी नहीं हो पा रहा था। जगह जगह मज़दूरी भी की पर हार नहीं मानी । एक कंपनी में साक्षात्कार दे कर निकला था। आशा थी कि इस कंपनी में नौकरी लग जायेगी। भूख लग रही थी। सामने एक रेहड़ी पर मूंगफली भुनती  देख वह उस ओर अग्रसर हुआ। पटरी पर बैठे एक हट्टे कट्टे  भिखारी ने हाथ फैला दिए। अच्छा तो नहीं लगा उसे उस नौजवान को भीख मांगते देख पर " हाथ फैलाने वाले पर हमेशा दया भाव रखना चाहिए ' के संस्कारों ने मजबूर कर दिया।
" मज़दूरी क्यों नहीं करते ? भीख मांगने से तो अच्छा है। " उसने बटुआ निकलते हुए कहा।
" जब हज़ारों भीख मांग कर कमा लेते हैं तो मज़दूरी करने की क्या ज़रूरत। " भिखारी हंस कर बोला मानो उसकी पढ़ाई का मज़ाक उड़ा रहा हो।
 छोटी पॉकेट में  दो का सिक्का था। बड़ी पॉकेट में केवल एक बीस  का नोट था, जो मूंगफली के लिए और उसके घर वापसी के लिए पर्याप्त था। ना चाहते हुए भी उसने दो का सिक्का निकाला और उस नौजवान  भिखारी  को पकड़ा दिया। भिखारी  ने बड़ी ही हिकारत से उसे देखा और कहा।
" बस इतनी ही औकात है ?"
" तुमसे तो अच्छी है " उसने उत्तर दिया और अपनी मंजिल की और चल पड़ा। 
 त्रिभवन कौल  
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3 comments:

  1. Comments via fb/ युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (न्यास).
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    Sanjay Kumar Giri 11:20am Oct 28
    वाह- 'तुमसे तो अच्छी है 'बहुत सुंदर कहानी आदरणीय
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    Kviytri Pramila Pandey 9:34pm Oct 28
    वाहहहहह ,,अति सुन्दर ,समाज में वेरोजगारी में भीख मांगना एक व्यवसाय है
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    Mahatam Mishra 9:35pm Oct 28
    अब यह भी एक सशक्त व्यवसाय है आदरणीय, संघर्ष किसे कब कहाँ लाकर खड़ा कर दे कौन जानता है, सुंदर लेखन बधाई हो
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    Deo Narain Sharma 9:34pm Oct 28
    भीख मांगना एक सामाजिक अपराध की.श्रेणी में रक्खा गया है।सरकार सभी वेसहारा लोगों को आर्थिक सहायता.दे.रही.है।
    सृजन.में.भिखारी.और.दान.देने.वाले.दोनो की.मनःस्थिति का.मार्मिक ढ़ग.से.विवेचन करके इसके.बीच पनपने.वाली.समस्याओं को.भी.उजागर.किया.है।एक.सुन्दर.सोच.सृजन और.दिशानिर्देश. प्रशंसनीय सराहनीय.हैः
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    Raj Kishor Pandey 9:35pm Oct 28
    बहुत सुंदर लघुकथा आदरणीय

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  2. via fb/कथागार (युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (न्यास)द्वारा संचालित).
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    DrAtiraj Singh 12:09pm Oct 28
    बहुत सुंदर लघु कथा.... अनुपम !
    आज के जीवन की यही सच्चाई है। अवश्य ही वह भीख मांगने वाला अनपढ़ नहीं होगा। भीख मांगकर वह डिग्री का मज़ाक उड़ा रहा था। मानों कह रहा हो - मैं सड़क पर भीख मांग रहा हूँ और तुम दफ्तर में नौकरी की। दोनों एक जैसे ही है।
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    Tribhawan Kaul 10:40pm Oct 28
    रचना को अपना स्नेह देने के लिए आपका हार्दिक आभार। बहुत सही है आप सभी मित्रों की प्रतिक्रियायें। लेकिन कथा का मर्म में स्वाभिमान निहित है। स्वाभिमान दोनों में है। भिखारी में भी और युवक में भी। लेकिन जहाँ तक औकात की बात आती है , शास्त्रों अनुसार देने वाले की औकात लेने वाले की औकात से कंही अधिक होती है चाहे देने वाला कितना ही निर्धन क्यों ना हो और लेने वाला कितना ही अमीर। सप्रेम।
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    Ramkishore Upadhyay 12:09pm Oct 28
    भिक्षा वृति को हतोत्साहित करती सुंदर लघुकथा ।
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    Vishwambhar Shukla 12:09pm Oct 28
    वाह अनुपम प्रस्तुति
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    वसुधा कनुप्रिया 10:47pm Oct 28
    एक प्रेरक रचना

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  3. comments via fb/Purple Pen
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    वसुधा कनुप्रिया 1:09pm Oct 28
    अच्छी रचना पर बधाई
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    Vishal Narayan 1:09pm Oct 28
    बहुत खूब आदरणीय
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    Rita Thakur 5:27pm Oct 28
    बूढ़ों को अपाहिजों को , लाचार को दान देना उचित है जवान आदमी को भीख देना गलत है ।
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    Tribhawan Kaul
    रचना को अपना स्नेह देने के लिए आपका हार्दिक आभार। बहुत सही है आप सभी मित्रों की प्रतिक्रियायें। लेकिन कथा का मर्म में स्वाभिमान निहित है। स्वाभिमान दोनों में है। भिखारी में भी और युवक में भी। लेकिन जहाँ तक औकात की बात आती है , शास्त्रों अनुसार देने वाले की औकात लेने वाले की औकात से कंही अधिक होती है चाहे देने वाला कितना ही निर्धन क्यों ना हो और लेने वाला कितना ही अमीर। सप्रेम।
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    Karunanidhi Tiwari 1:09pm Oct 28
    सारगर्भित लेखन

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