कौल साहब घर आये तो लगा कश्मीर घर आ गया।
त्रिभवन कौल जी की कविता जन-जीवन की अनुभूतियों से अनुप्राणित है । यह भीड़ का साहित्य नहीं है । ये संत काव्य की तरह है जिसकी रचनाएं सामान्य मानव के हित की बात करती है उनके सुख और दुःख की बात करती है । कौल साहब को 'बस एक निर्झरणी भावनाओं की' के लिए अनंत शुभकामना अच्छाइयों को गहराई से महसूस कराने में कलम की सफलता का अभिनंदन है। आम जन का साहित्य आम जन मानस के लिए उपलब्ध कराना सही मायने में साहित्यिक लोकतंत्र का निर्माण और उसको संपुष्ट करना है। 'एक निर्झरणी भावनाओं' की इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगी हमारा विश्वास है।
पुस्तक अमेज़न पर उपलब्ध है । पढिये और कश्मीरियत से रूबरू ।
डॉ पवन विजय
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त्रिभवन कौल जी की कविता जन-जीवन की अनुभूतियों से अनुप्राणित है । यह भीड़ का साहित्य नहीं है । ये संत काव्य की तरह है जिसकी रचनाएं सामान्य मानव के हित की बात करती है उनके सुख और दुःख की बात करती है । कौल साहब को 'बस एक निर्झरणी भावनाओं की' के लिए अनंत शुभकामना अच्छाइयों को गहराई से महसूस कराने में कलम की सफलता का अभिनंदन है। आम जन का साहित्य आम जन मानस के लिए उपलब्ध कराना सही मायने में साहित्यिक लोकतंत्र का निर्माण और उसको संपुष्ट करना है। 'एक निर्झरणी भावनाओं' की इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगी हमारा विश्वास है।
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डॉ पवन विजय
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http://www.amazon.in/dp/8193272102
Saroj Sharma
ReplyDeleteNaman.
October 12 at 10:16pm
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डॉ. पुष्पा जोशी
बहुत खूब.....बधाई आप दोनों को
October 13 at 5:50am
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Ramkishore Upadhyay
आपकी भूमिका से सज्जित यह पुस्तक कविता की झेलम ,तवी और सिंधु है...
October 13 at 8:13am
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ReplyDeleteडॉ. पवन विजय जी का हार्दिक आभारी हूँ जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय निकाल कर मेरी पुस्तक में काव्यसंकलन के सम्बन्ध में एक समीक्षात्मक लेख लिखा। उनको भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं :)