मंथन (Manthan )
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आयु के अंतिम पड़ाव पर …………………….Aayu ke
atim padaaw pr
एक छोर पर खड़ी ………………………………ek
chor pr khadi
एक ज़िन्दगी…………………………………….ek
zindgi
इतिहास बनने को उत्सुक……………………itihaas
ban-ne ko utsuk
दुविधा में पड़ी ……………………………………dwida
mein padi
मंथन कर रही है ………………………………..manthan
kr rahi hai
क्या दिया है उसने संसार को
…………… kya diya hai usne sansaar ko
उसके ज़िंदा होने का उपहार ?………………uske
zinda hoone kaa uphaar ?
तीसरे महायुद्ध की आशंका …………………teesre
mahayudh kee anshanka
परमाणु युद्ध की विभीषिका …………………parmanu
yudh kee vibhishika
क्षत विक्षित ओज़ोन की चेतावनी…………..ksht
vikshit ozon kee chetaavani
श्वेत श्याम की कहानी………………………..shwet
shyam kee kahaani
खोखले मूल्यों पर खोखले भाषण ………….khokle
mulyon pr khokhle bhaashan
पर्यावरण की ज़ुबानी……………………………paryaavran
kee zubhaani
या फिर ऐसा इंसान……………………………..yaa
phir aisa insaan
जो विवेक खो चुका हो………………………..jo
vivek kho cuhuka ho
आतंक, उग्र , अलगाववाद के……………...
aatank, ugr, algaav-vaad ke
दलदल में धंसा …………………………………..daldal
mein dhasan
कैंसर एड्स और नशे में फंसा………………cancer, AIDs aur nashe
mein phansa
इंसानियत का मुखोटा पहने ………………….insaaniyat
kaa mukhota pahne
इंसानियत को ही रो रहा हो।…………………insssniyat
ko hee ro raha ho.
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सर्वाधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल
डॉ किरण मिश्रा
ReplyDeleteइतिहास से लेकर वर्तमान तक सर्वाधिकार सुरक्षित नहीं। उम्दा लेखनी।
October 24 at 11:09pm
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Manjula Verma Thakur Wah
वाह lajwaab लाजवाब sir सर
October 24 at 11:14pm
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Jai Krishna
"आयु के अंतिम.........उपहार ?"
------------------------------ इस कविता का यह प्रथम अंश मुझे अत्यन्त प्रिय लगा . कवि का आत्म यहॉ जिस बेवाकी से मुखर हुआ है, मेरे विचार से यही वह साहित्यिक ऊँचाई है, जिसकी दुनियॉ पूजा करती है .
साहित्य में छद्म का कोई स्थान नहीं . कवि का निश्छल हृदय और प्रशान्त वाणी पाठक का मर्म भेद जाती-सी !
October 24 at 11:30pm
--------------------- fb/TL
Sanjay Kumar Giri
ReplyDeleteतीसरे महायुद्ध की आशंका
परमाणु युद्ध की विभीषिका
क्षत विक्षित ओज़ोन की चेतावनी
श्वेत श्याम की कहानी
खोखले मूल्यों पर खोखले भाषण
पर्यावरण की ज़ुबानी --वाह्ह्हह्ह वाह्ह्ह्ह सुन्दर रचना के माध्यम से एक चिंतन करती हुई कविता का सृजन किया है आपने
October 24 at 10:17pm
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Sharda Madra
अनुपम सृजन आदरणीय ।सटीक सोच।नमन आपको।
October 24 at 10:20pm
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कवयित्री प्रज्ञा श्रीवास्तव प्रज्ञाञ्जलि
अनुपम
October 24 at 11:04pm
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अशोक 'अश्क़'
वाह उम्दा अनुपम रचना सर
October 24 at 11:15pm
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Chanchala Inchulkar Soni
वाहह्ह्ह् सटीक चिंतन आदरणीय _/\_
October 24
--------------------------------via/युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच
Amit Dahiyabadshah
ReplyDeleteWah Trib Sahib
October 26 at 11:07am
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Disha Bafna
Really nice
October 26 at 12:07pm
==================== via fb/Delhi Poetree
Kailash Nath Shrivastava
ReplyDeleteवर्तमान के मानव समुदाय की दुर्दशा पर बहुत उम्दा चिन्तन एवं चेतावनी .. सुन्दर रचना
October 26 at 12:05pm
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प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
वर्तमान के हालात का जीवित दस्तावेज।
बेहतरीन भाव ।
October 26 at 12:18pm
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वसुधा कनुप्रिया
अत्यंत भावपूर्ण, सार्थक और सामयिक सृजन, आदरणीय । समाज का सच बयान करती सुन्दर रचना ।
October 26 at 11:59pm
========================via fb/purple pen
Hardeep Sabharwal
ReplyDeleteatti uttam
October 26 at 11:04am
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Manjula Verma Thakur
इंसानो की इस बस्ती में
अब इन्सान कहाँ बसते हैं
मरती है रोज़ इंसानियत
ज़िंदा हैवानीयत रहती है
October 26 at 12:00pm
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Jai Krishna
मानव जीवन की चुभती सी समीक्षा ! पर मानवता की उम्मींद जगाती सी !
October 26 at 1:41pm
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Sushma Kochhar
Ati sunder abhivaykti
October 26 at 8:31pm
========================via fb/Poetry Society of India