Saturday 9 May 2015

एक चाँद बहुत दूर है, एक है हमारे पास


एक चाँद बहुत दूर है, एक है हमारे पास
एक है बदली से घिरा, एक बहुत है उदास

एक सावन है वेदना, एक है हर्ष उल्लास
विरह अगन कोई जली, कोई प्रियतम पास

एक सौंदर्ये दिखावटी , एक का भीतर वास
एक जीवन क्षणभंगुर, एक फले ज्यों कपास

एक बंदा बहु ख़ास है,  एक जीये ज्यों आम
एक है बस शाने ख़ुदा, एक भरोसे राम

धरती के दो रूप हैं, एक मात एक संसार
एक प्यारी ममतामयी , एक पोषण का आधार

मीरा का समर्पण एक , एक राधा का प्यार
क्यों न हों  संपूर्ण जब, कृष्ण जीवन सार
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सर्वाधिकार सुरक्षित/ त्रिभवन कौल


3 comments:

  1. मित्रवर!
    झूठी तारीफ नहीं करूँगा।
    आपकी ये दो लाइनों की रचनाएँ दोहा नहीं हैं।
    --
    दोहा मात्रिक छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) चरण में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।
    उदाहरण -
    मन में जब तक आपके, होगा शब्द-अभाव।
    दोहे में तब तक नहीं, होंगे पुलकित भाव।१।
    --
    गति-यति, सुर-लय-ताल सब, हैं दोहे के अंग।
    कविता रचने के लिए, इनको रखना संग।२।
    --
    दोहा वाचन में अगर, आता हो व्यवधान।
    कम-ज्यादा है मात्रा, गिन लेना श्रीमान।३।
    --
    लघु में लगता है समय, एक-गुना श्रीमान।
    अगर दो-गुना लग रहा, गुरू उसे लो जान।४।
    --
    दोहे में तो गणों का, होता बहुत महत्व।
    गण ही तो इस छन्द के, हैं आवश्यक तत्व।५।
    --
    तेरह ग्यारह से बना, दोहा छन्द प्रसिद्ध।
    विषम चरण के अन्त में, होता जगण निषिद्ध।६।
    --
    कठिन नहीं है दोस्तों, दोहे का विन्यास।
    इसको रचने के लिए, करो सतत् अभ्यास।७।

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    1. आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री मयंक . बहुत आभार आपका. आपका कथन सत्य है. अधिकतर मुक्तछंदों में ही लिखता रहा हूँ. ज्ञान कभी भी प्राप्त किया जा सकता है. सच मानिये दोहे लिखने का यह मेरा प्रथम प्रयास है. इसीलिए आपसे आवेदन किया था. इस रचना को में अब दोहे नहीं कहूँगा. पर दोहे लिखने का प्रयास छोड़ूंगा भी नहीं. इसी रचना को संशोदित कर पुन: आपके समक्ष रखूंगा. आशा है आपको निराश नहीं करूंगा.
      सप्रेम
      त्रिभवन कौल

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    2. आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी रचना को संशोदित कर आपके अवलोकनार्थ प्रेषित है. कृपया अपनी राय दें की यह रचना आप दोहों के समकक्ष आती है या नही. आभारी रहूंगा. सप्रेम त्रिभवन कौल :-

      इक चाँद बहुत दूर है, इक है हमरे पास
      इक बदली में है घिरा, इक है बहुत उदास

      इक सावन है वेदना, इक है हर्ष विकास
      विरह अगन कोई जली, कोई प्रियतम पास

      इक सौंदर्य दिखावटी ,इक का भीतर वास
      इक क्षणभंगुर होत है , अरु इक फले कपास

      इक बंदा बहु ख़ास है, इक का जीवन आम
      इक है बस शाने ख़ुदा, इक ले हरि का नाम

      धरती के दो रूप हैं, इक माँ इक संसार
      इक प्यारी ममतामयी,इक पोषण आधार

      मीरा का समर्पण इक , इक राधा का प्यार
      क्यों ना हों संपूर्ण जब, कृष्ण भये आधार
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