चतुष्पदी (Quatrain)-32
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आशियाना बनाते, पुश्तें बदल गई
एक आंधी क्या आई, सब कुछ निगल गई
उम्मीद वापसी की अब टूट गयी यारो
हुक्मरान सोते रहे कायनात मचल गयी
Aashiyaana banaate, pushten badal gayin
ek aandhi kya aayi , sab kuch nigal gayin
ummeed vaapsi kee ab toot gayi yaaro
hukmaraan sote rahe kaaynaat machal gayi.
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मुरारि पचलंगिया वाह बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteAugust 10 at 5:38pm
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Deo Narain Sharma
वाहहहहह सुन्दर भावाभिव्यक्ति और सृजन
August 10 at 5:45pm
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राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी
ReplyDeleteआशियाना बनाते, पुश्तें बदल गई bahut badhiya yathart
एक आंधी क्या आई, सब कुछ निगल गई kya kahana hai ?
उम्मीद वापसी की अब टूट गयी यारो sundar mimaansha
हुक्मरान सोते रहे कायनात मचल गयी nahale pe dahala bahut hee lajvab poorak chaturth pankti =============ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्या कहना है आदरणीय शब्द नहीं साहब की मै समीक्षा कर सकूँ ------------- कुछ आता नहीं कि परीक्षा दे सकूँ -----------
August 10 at 5:49pm
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Om Prakash Shukla
ReplyDeleteमार्मिक कृति
कश्मीरी पंडित के अंतर्मन की आवाज़ आप की कृति मे सुनाई दी है
अभिनन्दन एवम नमन है आपको
August 10 at 8:00pm
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Ramkishore Upadhyay
ReplyDeleteकश्मीर के विस्थापित के दर्द ,,को कोई नही समझ रहा ..सत्ता की भूख ऐसी ही होती है ,,,,,,,,,,,,,
August 10 at 8:33pm
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Chanchala Inchulkar Soni
ReplyDeleteयथार्थ भावाभिव्यक्ति
August 10 at 9:01pm
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Ghanshyam Maithil Amrit
वाह वाह
August 10 at 10:06pm
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गुप्ता कुमार सुशील
वाह शब्दानुकूल उत्तम प्रस्तुति, आदरणीय |
August 11 at 1:46am
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