बड़े ही हर्ष का विषय है कि मेरे आलेख " पुस्तक प्रचार -प्रसार :- एक विचार " को प्रतिष्टित न्यूज़ मैगज़ीन 'होराइजन हिन्द ' के कलमकार पृष्ठ में स्थान दिया गया है। मैं इस न्यूज़ मैगज़ीन के संस्थापक और संपादक श्री नरेश राघानी जी को इस पोस्ट के माध्य्म से अपना आभार व्यक्त करता हूँ। It feels great to have one
of your articles in hindi ‘ Pustak prachaar-prasaar :- ek vichaar ‘ getting
published in prestigious news magazine ‘Horiszon Hind’ in kalamkaar page.
Thanks Shri Naresh Raghani ji./Tribhawan Kaul/24-08-2016
पुस्तक का प्रचार- प्रसार :- एक विचार
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मुझे थोड़ा सीधी बात कहने का शौक है I अगर रचनाकार यह समझतें हैं कि केवल उनकी रचनाएँ पुस्तक में छपने मात्र से ही वह उस मुकाम को पा लेंगें जो मुकाम आज के प्रबुद्ध
और प्रसिद्ध साहित्य मनीषियों को हासिल है तो यह उनकी सरासर गलतफमी होगी I
रचना या रचनाएँ चाहे कितनी भी काव्य सौन्दर्य से परिपूर्ण और भावात्मक रूप से लुभाने वाली क्यों ना हो, बड़े से बड़े प्रकाशक उस पुस्तक का प्रकाशक क्यों ना हो , जब तक उन रचनाओं को/ काव्य संकलनो को काव्य पाठकों की/ प्रेमियों की, काव्य साहित्य में अपनी पैठ रखने वालों की , विद्वतजनों की और समीक्षकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया की प्राप्ति नहीं होती,
तब तक ना तो कोई रचनाकार सफलता की पायदान पर
चढ़ सकता है और ना ही वह काव्यसंकलन बिक्री का आकर्षक माध्यम बन सकता है I
काव्यसंकलन में अपनी कविताओं को प्रकाशित देख केवल अपनी आत्म संतुष्टि का समाधान ढूंढने वाले रचनाकर अपने जानकारों की, मित्रों
की वाही वाही तो लूट सकतें हैं पर कभी भी काव्य साहित्य संसार के कर्णधारों और प्रबुद्ध पाठकों के
दिलों पर राज नहीं कर सकते i इसका कारण एक ही है :- पुस्तकों का /काव्य संकलनो का निजी अलमारियों तक सिमिट कर रह जाना और पुस्तक का भरपूर प्रचार और प्रसार की कमी i
पाठक आपको तभी मिल सकतें हैं जब तक साहित्य संसार से जुड़े नामी गिरामी , नामचीन साहित्य मनीषियों तक, अपने आस पास के पुस्तकालयों तक, स्कूलों में, कालिजो में , समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में आपकी पुस्तक पहुंचे और स्वीकार्य हो 1 समालोचकों की/ साहित्य मनिष्यों की /वरिष्ठ रचनाकारों की / काव्य पठन में रुचि रखने वालों की सकारत्मक प्रीतिक्रियाओं भी एक पुस्तक को सफल बनाने में सहयोग देती हैं।
उनकी स्वीकारिता यदि प्राप्त हो जाए तो आपको कोई भी काव्य साहित्य में अपना नाम बनाने से कोई नहीं रोक सकता , मेरा यही मानना है ! इसकेलिए आप सब को सतत प्रयत्न करना होगा।
धन राशि ले कर या बिना कोई अग्रिम राशि लिए यदि कोई प्रकाशक
आपकी रचनाओं का प्रकाशन करता है तो यकीन मानिये उस प्रकाशित पुस्तक का प्रचार, प्रसार का सम्पूर्ण दायित्व रचनाकारों पर ही आता है और पुस्तक की सफलता का श्रेय भी उन्ही को जाता है।
आपका निजी प्रकाशन है तो प्रकाशक आपको
आपके कोटे की पुस्तकें दे कर निश्चिन्त हो जाता है। यदि रचनाकारों का समहू है तो प्रकाशक या तो अग्रिम राशि तलब
करता है या उतनी ही पुस्तकें प्रकाशित करता है जितने उस प्रकाशन में रचनाकार सम्मिलित हो और प्रतियां लेने को बाध्य हों। ध्यान रहे कोई भी प्रकाशक क्यों ना हो अपना नुकसार उठा कर कोई भी रचना प्रकाशित नहीं करेगा। प्रकाशक उस पुस्तक का प्रचार प्रसार तभी करेगा अगर रचनाकार /लेखक चाहेगा।
इसलिए एक रचनाकार को जन जन तक पहुंचाने के लिए स्वयं भी कार्यरत होना पड़ेगा. पत्र -पत्रिकाएं, समाचार पत्र, टीवी , विभिन्न काव्य समारोह द्वारा एक रचनाकार अपनी पुस्तक /संकलन के प्रसार प्रचार का माध्यम का प्रयोग कर सकता है।
एक छोटा सा उदहारण देता हूँ।1959 में
तेरह साल का था जब सरस्वती प्रकाशन , दिल्ली से मेरे बच्चोँ के लिए एक पुस्तिका ' नन्हे मुन्नों के रूपक ' नाम से प्रकाशित हुई। प्रथम संस्करण में ही 2000 प्रतियां छापी गयी।
मूल्य मात्र एक रुपया। तब यह मूल्य भी बहुत था। प्रचार -प्रसार की माध्यम तो ना के बराबर थे। मैं अपने आदरणीय पिताजी के साथ साथ दिल्ली और जम्मू कश्मीर के सभी स्कूलों में जाता था। पुस्तिका में लिखे रूपकों को एकल मंचन (mono acting) द्वारा मंचित कर बच्चो का दिल लुभाता था और अपनी पुस्तिका की बिक्री करता था. ६ महीने के अंदर अंदर 2000 प्रतिया बिक गयीं।
मतलब यह कि जब तक आप खुद को अपनी पुस्तक के प्रसार प्रचार में नहीं झोंकेंगे तब तक आपकी पुस्तक गुमनामी का ही गम झेलती रहेगी।
हिंदी साहित्य
के प्रकाशन क्षेत्र में एक सुखद बदलाव आ रहा है। फेस बुक या अन्य आभासी दुनिया के वेब साइट पर पर अनगिनित हिंदी में
रचनाओं का प्रकाशित होना इस बात का द्योतक है कि हिंदी पड़ने और लिखने वाले असंख्य हैं। अब
कुछ प्रकाशक हिंदी भाषा के संवर्धन , संरक्षण और प्रचार -प्रसार के लिए लेखकों को , रचनाकारों को अपनी और से भरपूर सहयोग, प्रोत्साहन दे रहे है।
पुस्तकों का लोकार्पण करवाया जा रहा है। जहाँ तक संभव हो सकता है पत्रकारों को पुस्तक के बारे में सूचना दी जाती है। फिर भी रचनाकार पर ही अपनी पुस्तक का / संकलन का
जन जन में लाने का दायित्व है। अच्छी , सुंदर
रचनाएँ गुमनामी के परदे में चली जाएँ किसे अच्छा लगेगा। आप अपना समाचार पत्र आप ही बनिए तो आप ज़रूर सफल होंगे।
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Ramkishore Upadhyay
ReplyDeleteजो दिखेगा वही तो बिकेगा
August 7 at 5:17pm
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Lata Yadav
जी सही कहा
August 7 at 5:25pm
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गोप कुमार मिश्र
बिल्कुल सही आँकलन ,,, कौल साहब
August 7 at 5:29pm
========================via fb/TL
Basant Sharma
ReplyDeleteAugust 7 at 5:35pm
सत्य वचन
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Nirdesh Sharma
August 7 at 5:49pm
बहुत ही सत्य व सटीक लेख जय हो
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Suresh Pal Verma Jasala
August 7 at 5:44pm
वाहहहहह उपयोगी सत्य दर्शन,, नमन आपको
----------------------------------via fb/TL
अंकिता कुलश्रेष्ठ
ReplyDeleteAugust 7 at 5:44pm
सर बहुत अच्छा आर्टिकल लिखा। हमे ऐसा सुलभ मार्गदर्शन ही चाहिए धन्यवाद पिछले वर्ष एक साझा संकलन में मेरी रचनाएं भी थीं तब मैंने पापा के साथ जाकर उसकी प्रतियां शहर के कॉलेज युनिवर्सिटीज़ के हिंदी विभागों में भेंट की थीं। अच्छा रेस्पांस मिला । इतना तो हुआ शहर में जानी जाने लगी थोङा ही सही
---------------------------------via fb/TL
Vijayshree Tanveer
ReplyDeleteAugust 7 at 7:03pm
मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूँ त्रिभुवन जी !
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Uddhav Deoli
August 7 at 7:11pm
आप सही कह रहे हैं माननीय||||
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Pramila Pandey
August 7 at 8:26pm
सटीक सुझाव
------------------via fb/TL
Ankit Tiwari
August 7 at 7:39pm
Very Informative,thank you sir.
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Laxman Ramanuj Ladiwala
August 7 at 8:52pm
बिलकुल सही विश्लेषण किया है आपने ।
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Sheikh Shahzad Usmani
August 7 at 9:12pm
बहुत बढ़िया सार्थक सटीक विचारोत्तेजक आलेख।
---------------------------------------via fb/TL
Deepti Nischol Kaul
ReplyDeleteAugust 7 at 10:22pm
So true
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Fatima Afshan
August 7 at 10:54pm
Very true!
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SoulNectar Swansh
August 7 at 11:52pm
Very practical post
-----------------------via fb/TL
Anjana Mishra
ReplyDeleteAugust 8 at 7:23am
v true said __
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Vandaana Goyal
August 8 at 10:22am
मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूँ त्रिभुवन सर
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Rajeshwer Sharma
August 8 at 2:40pm
जी सत्य लिखा आपने।आपके अनुभव से अवश्य ही लाभान्वित होंगे।
-----------------------------------------via fb/TL
Manjula Verma Thakur
ReplyDeleteAugust 8 at 9:17am
बहुत ही सार्थक लेख।आप जैसे अनुभवी व्यक्तित्व से जुड़ कर हम बहुत कुछ हासिल कर पाएँगे।इस सारगर्भित लेख share करने के लिए शुक्रिया आदरणीय आपका।
--------------------------------------------via fb/TL
Sankari P Sarkar
ReplyDeleteAugust 8 at 9:35am
त्रिभवनजी, आप पुस्तक प्रकाशन जगत का कड़वा सच उजागर किये हैं ।लेकिन एक सच छोड़ दिए। वह है : Many a flower is born to blush unseen. बुद्ध के पहले कोई बुद्ध पैदा हुए हैं। उसका कोई इतिहास नहीं है। इसके सठिक मूल्यायन करना मुश्किल है। आपने कारगर होने का जो रास्ता बतलाए है उसे लेखक अजमॉ सकते है ।
-------------------------------------------via fb/TL
Hari Lakhera
ReplyDeleteAugust 8 at 12:10pm
बहुत समय से कोई पुस्तक नही ख़रीदी। लास्ट बच्चन जी की मधुशाला ख़रीदी थी । शायद वो एक सुप्रसिद्ध कृति है। शायद उसे कई मंचों पर बाँचा गया । शायद word of mouth से प्रचार हूवा। जो दिखता है वो बिकता है । प्रचार ज़रूरी है और इसका भार लेखक पर ही जाता है जब तक सो प्रसिद्ध ना हो जाए और नाम से ना बिकने लगे। कुछ प्रकाशक हैं जिनके प्रकाशन उनके नाम से बिकते हैं । उसने middle men भी हैं जिन्हें literary एजेंट कहते हैं।
-----------------via fb/TL
via fb/'निर्झरणी भावनाओं की'
ReplyDeleteAsha Singh
August 8 at 5:57pm
सार ही सार है रचनाकारों के लिए । बहुत ही सटीक आकलन आपका ।
Manoj Kamdev Sharma
ReplyDeleteAugust 8 at 10:04pm
एकदम सटीक कहा सर
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Vinod Dokania
August 8 at 11:01pm
पहली बात तो इस बात का जुगाड़ बने कि पुस्तक/रचना पाठक के हाथों में पहुंचे। दूसरे शैली में ताजगी और सहजग्राह्यता हो- कथ्य ऐसा हो जो अधिकांश पाठकों को अपने ही बीजरूपी धारणाओं का पूर्ण प्रस्फुटित रूप परिलक्षित हो।
--------------------------------------------via fb/TL
Vijay Tanna
ReplyDeleteBahut Umdaa Jaankaari dene ke liye aapka bahut bahut Shukreeya Sir.
August 8 at 8:00pm
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Milan Singh
आदरणीय बात सौ टके सही है। सभी रचनाकारों को प्रयास करना चाहिए।
August 8 at 10:03pm
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Kavita Bisht
सादर नमन आदरणीय जी,आपने दिल को छूने वाली बात कही हैं.... आप अपना समाचार पत्र आप ही बनिए तो आप ज़रूर सफल होंगे।वाह्ह्ह्ह् बहुत उम्दा
August 8 at 10:24pm
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वसुधा कनुप्रिया
आदरणीय कौल सर, आपने जो भी कहा बिल्कुल सच है । सभी लेखकों को आपने दिशा दिखाई है । सार्थक सृजन पर बधाई स्वीकार करें । सादर नमन ।
August 8 at 10:25pm
=======================================via fb/purple pen
Kailash Nath Shrivastava
ReplyDeleteबकौल त्रिभवन कौल . बात खरी खरी ..पर ज्ञान से भरी भरी.. सत्य है चार लाइन की
कविता लिखन्ं में भी रचनाकार को बहुत माथापच्ची करनी पड़ती है. किन्तु प्रतिसाद में
अवसाद ही पाता है. उसकी अच्छी रचना २०-२५ मित्र ही पढ़कर वाह वाही जरूर पा
जाती है और फिर कहीं गुमनामी का दंश झेलती है ...आपकी डायरी में पड़ी रहती है.
कारण वही जो आदर. कौल साहब ने बताया .. हम स्वयं ही अपनी रचना की देखभाल
नहीं करते..
August 11 at 12:07pm
---------------------via fb/Purple Pen
Pramila Pandey
ReplyDeleteअति सुंदर सुझावत्मक संदेश
August 7 at 5:59pm
--------------------via fb/YUSM
बड़े ही हर्ष का विषय है कि मेरे आलेख " पुस्तक प्रचार -प्रसार :- एक विचार " को प्रतिष्टित न्यूज़ मैगज़ीन 'होराइजन हिन्द ' के कलमकार पृष्ठ में स्थान दिया गया है। मैं इस न्यूज़ मैगज़ीन के संस्थापक और संपादक श्री नरेश राघानी जी को इस पोस्ट के माध्य्म से अपना आभार व्यक्त करता हूँ। It feels great to have one of your articles in hindi ‘ Pustak prachaar-prasaar :- ek vichaar ‘ getting published in prestigious news magazine ‘Horiszon Hind’ in kalamkaar page. Thanks Shri Naresh Raghani ji.
ReplyDeletehttp://www.horizonhind.com/guest-writer/2376/