मनुष्य इतना गिर सकता है !
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जुलाई २०१६ अंत में बुल्लन्दशहर (यूपी) एन एच १९ हुई माँ- बेटी के साथ हुए दर्दनाक़ और अमानवीय बलात्कार की घटना ने एक बार फिर याद दिल दिया कि निर्भया काण्ड की (१६ दिसम्बर २०१२) की याद तो दिलI ही दी साथ में यह भी भास करा दिया कि तब से अब तक कुछ भी नहीं बदला है।
मनुष्य इतना गिर सकता है कभी कल्पना भी नहीं की थी...लचर क़ानून और मानव अधिकार वाले (जिसमे स्त्रियां भी सम्मिलित हैं ) तो आड़े आते ही हैं , २१वी शताब्दी का मनुष्य अमानुष होता जा रहा है.. समस्या यह है की कोई ठोस कदम उठाने को कोई तैयार ही नहीं है... जन आंदोलन चाहिए जन आंदोलन.. एक ऐसी व् व्यवस्था जो स्त्रियों के प्रति अमानवीय व्यवहार के लिए पकडे जाने पर सीधा सीधा मृत्यु दंड दे दिया जाना चाहिए।
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जुलाई २०१६ अंत में बुल्लन्दशहर (यूपी) एन एच १९ हुई माँ- बेटी के साथ हुए दर्दनाक़ और अमानवीय बलात्कार की घटना ने एक बार फिर याद दिल दिया कि निर्भया काण्ड की (१६ दिसम्बर २०१२) की याद तो दिलI ही दी साथ में यह भी भास करा दिया कि तब से अब तक कुछ भी नहीं बदला है।
मनुष्य इतना गिर सकता है कभी कल्पना भी नहीं की थी...लचर क़ानून और मानव अधिकार वाले (जिसमे स्त्रियां भी सम्मिलित हैं ) तो आड़े आते ही हैं , २१वी शताब्दी का मनुष्य अमानुष होता जा रहा है.. समस्या यह है की कोई ठोस कदम उठाने को कोई तैयार ही नहीं है... जन आंदोलन चाहिए जन आंदोलन.. एक ऐसी व् व्यवस्था जो स्त्रियों के प्रति अमानवीय व्यवहार के लिए पकडे जाने पर सीधा सीधा मृत्यु दंड दे दिया जाना चाहिए।
नारी की दशा २१वीं शताब्दी में दलितों से भी गयी
गुज़री है। इस देश में , अल्पसंख्कों की , दलितों
की, चलिए , वोटों की खातिर ही सही, कम से कम राजनीति के गलियारों से ,मीडिया के आलमदारों
से आवाज़ तो उठती है। पर नारी जाती पर दिन पर दिन हो रहे अनाचार, अत्याचार पर बहस और
सिर्फ बहस का ही विषय है। एक कामी के सामने
नारी जाती का ना कोई धर्म है, ना जाती,ना भाषा
,ना आयु , ना देश, ना ही भेष। बस नारी उसके
सामने तो उसका शिकार है।देवी नहीं।
नारी सशक्तीकरण ने अज्ञान, प्रताडित और लाचार जीवन जीने को मजबूर नारी जाती को केवल वास्तुस्तिथि से बस अवगत कराया
है ना कि उनका वास्तविक सशक्तीकरण। नारी सशक्तिकरण के मामूली प्रतिशत को अगर हम सम्पूर्ण नारी उद्धार
गाथा मान लें तो हम बहुत बड़ी भूल कर रहें हैं। और आप ही बताये की नारी सशक्तिकरण कहाँ
तक नारी जाती को इस बर्बरता से , दुराचारों
से , अत्याचारों से बचा पा रही है। एक दोषी
के लिए, एक अपराधी के लिए नारी नारी ही है
चाहे वः अशक्त है या सशक्त , एक कामुक चाह
को पूर्ण करने का जरिया। अब नारी चाहे राजा जो या रंक। नारी से संग अमानवीय ढंग से व्यवहार करने वालों में जहाँ एक तरफ बड़े घरों के लोग शामिल हैं तो दूसरी तरफ
दुसरे तबके के लोग। चाहे कारण राजनितिक हों या सामजिक। अंततः भुगतना तो नारी को ही पड़ रहा है।
====================================त्रिभवन कौल
Picture curtsy Google images via http://www.gettyimages.in/
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ReplyDelete--------------------------------
वसुधा कनुप्रिया
August 3 at 2:25pm
Well said, Sir.
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Fatima Afshan
August 3 at 2:53pm
True
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Om Prakash Shukla
August 3 at 2:47pm
सब नोट बटोरने मे लगे हैं सर बहुत बुरा समय आने वाला है
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Prince Mandawra
August 3 at 3:50pm
सत्य
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निशि शर्मा 'जिज्ञासु'
August 3 at 4:38pm
सहमत
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Nirmala Joshi
August 3 at 8:36pm
सारे कानून सारी व्यवस्थाएं केवक कागज पर और सारा विकास टेलीविजन के पर्दे पर।
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Ramkishore Upadhyay
August 3 at 11:25pm
स्त्री आज दलित सेबदतर स्थिति में है ,,कोई आवाज नही ,,कोई आन्दोलन नही ,,,,,,,,,क्या घर में बहन,बेटी ,पत्नी या माँ नही ..........क्यों आत्मा मर रही है ,,यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ..कहने वाले भारत की ,,क्या यह बस एक जुमला है ?
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Sadhana Pradhan
August 4 at 6:19am
जी सर बहुत सही कहा आपने..... अति प्रसंशनीय प्रस्ताव !
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Bidhu Bhushan Trivedi
August 4 at 10:07am
नारी सशक्तीकरण से आज भारतीय नारियों की स्थिति बहुत बेहतर है। हमें मूल सामाजिक और गिरते राजनैतिक कारणों की समीक्षा करनी होगी ।
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Sangeeta Yadav
August 4 at 11:54am
Right
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