Monday 22 May 2017

गीतिका-6


खुद से तू अनजान है 
रब की, तू पहचान है। 

खिल कर फूल यही कहे ,
ना तोड़ो, अपमान है।

सूरज चमके सांझ तक 
झुकता, वह बलवान है।  

श्रम में रत जय श्रमिक तू 
मन से तू धनवान है।

पथ्थर चाक करे धारा 
बनु,,  मेरा अरमान है।
-----------------------
सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल  

3 comments:

  1. Om Narayan Saxena
    वाह वाह बहुत ही सुंदर
    May 22 at 8:35pm
    -----------------------
    Raj Kishor Pandey
    सुंदर गजल
    May 22 at 9:14pm
    ------------------------
    शब्द मसीहा बहुत सुन्दर भाई साहब ...वाह
    May 22 at 9:16pm
    ------------------------
    Indira Sharma
    सुन्दर
    May 22 at 9:30pm
    ------------------------
    रतन राठौड़ वाहः
    बहुत खूब
    May 22 at 10:29pm
    -----------------------
    Milan Singh
    वाह वाह बहुत सुंदर गजल
    May 22 at 10:38pm
    -----------------------
    Rekha Joshi
    उम्दा ग़ज़ल आदरणीय
    May 22 at 10:39pm
    ------------------------
    Ramesh Vinodee
    बहुत खूब
    May 23 at 5:28am
    -------------------------
    Sanjay Kumar Giri
    बहुत सुंदर
    May 23 at 8:16am
    ---------------------via fb/YUSM

    ReplyDelete
  2. हरीश चन्द्र लोहुमी 8:37pm May 23
    भावपूर्ण प्रस्तुति !
    -----------------------------
    Sharda Madra 8:29pm May 23
    वाह अति सुंदर
    --------------------------via fb/YUSM

    ReplyDelete
  3. चंद्रकांता सिवाल
    बहुत सुंदर सादर
    May 22 at 10:30pm
    ----------------------------
    वसुधा कनुप्रिया
    सुन्दर व भावपूर्ण गीतिका । सादर नमस्कार
    May 23 at 9:30am
    ----------------------------------------------
    Shailesh Gupta
    बहुत सुंदर... !
    May 23 at 9:11pm
    ------------------via fb/Purple Pen

    ReplyDelete