खुद से तू अनजान है
रब की, तू पहचान है।
खिल कर फूल यही कहे ,
ना तोड़ो, अपमान है।
सूरज चमके सांझ तक
झुकता, वह बलवान है।
श्रम में रत जय श्रमिक तू
मन से तू धनवान है।
पथ्थर चाक करे धारा
बनु,, मेरा अरमान है।
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल
Om Narayan Saxena
ReplyDeleteवाह वाह बहुत ही सुंदर
May 22 at 8:35pm
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Raj Kishor Pandey
सुंदर गजल
May 22 at 9:14pm
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शब्द मसीहा बहुत सुन्दर भाई साहब ...वाह
May 22 at 9:16pm
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Indira Sharma
सुन्दर
May 22 at 9:30pm
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रतन राठौड़ वाहः
बहुत खूब
May 22 at 10:29pm
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Milan Singh
वाह वाह बहुत सुंदर गजल
May 22 at 10:38pm
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Rekha Joshi
उम्दा ग़ज़ल आदरणीय
May 22 at 10:39pm
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Ramesh Vinodee
बहुत खूब
May 23 at 5:28am
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Sanjay Kumar Giri
बहुत सुंदर
May 23 at 8:16am
---------------------via fb/YUSM
हरीश चन्द्र लोहुमी 8:37pm May 23
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति !
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Sharda Madra 8:29pm May 23
वाह अति सुंदर
--------------------------via fb/YUSM
चंद्रकांता सिवाल
ReplyDeleteबहुत सुंदर सादर
May 22 at 10:30pm
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वसुधा कनुप्रिया
सुन्दर व भावपूर्ण गीतिका । सादर नमस्कार
May 23 at 9:30am
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Shailesh Gupta
बहुत सुंदर... !
May 23 at 9:11pm
------------------via fb/Purple Pen