शोषित
या शसक्त
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मनुष्य
इतना गिर सकता है ! निर्भया
के साथ हुए दर्दनाक़ और अमानवीय बलात्कार
की घटना के अदालत के
फैसले ने (सब अपराधियों को
मृत्यु ढंड ) एक बार फिर
मानव अधिकारों की दुहाई देने
वालों के सामने एक
बड़ा प्रश्न खड़ा कर दिया होगा।
पर एक बात तो
तय है कि
तब से अब तक
कुछ भी नहीं बदला
है।
मनुष्य
इतना गिर सकता है कभी कल्पना
भी नहीं की थी...लचर
क़ानून और मानव अधिकार
वाले (जिसमे स्त्रियां भी सम्मिलित हैं
) तो आड़े आते ही हैं , २१वी
शताब्दी का मनुष्य अमानुष
होता जा रहा है..
समस्या यह है की
कोई ठोस कदम उठाने को कोई तैयार
ही नहीं है... जन आंदोलन चाहिए
जन आंदोलन.. एक ऐसी व्
व्यवस्था जो स्त्रियों के
प्रति अमानवीय व्यवहार के लिए पकडे
जाने पर सीधा सीधा
मृत्यु दंड दे दिया जाना
चाहिए, मानव अधिकारों के हिमायतों को
नज़रअंदाज़ करके।
नारी
की दशा २१वीं शताब्दी में दलितों से भी गयी
गुज़री है। इस
देश में , अल्पसंख्कों की , दलितों की, चलिए , वोटों की खातिर ही
सही, कम से कम
राजनीति के गलियारों से
,मीडिया के आलमदारों से
आवाज़ तो उठती है।
पर नारी जाती पर दिन पर
दिन हो रहे अनाचार,
अत्याचार पर बहस और
सिर्फ बहस का ही विषय
है। एक
कामी के सामने नारी
जाती का ना कोई
धर्म है, ना जाती,ना भाषा
,ना आयु , ना देश, ना
ही भेष। बस नारी
उसके सामने तो उसका शिकार
है।देवी नहीं।
नारी
सशक्तीकरण ने
अज्ञान, प्रताडित और
लाचार जीवन जीने को मजबूर नारी जाती को केवल वास्तुस्तिथि
से बस अवगत कराया
है ना कि उनका वास्तविक सशक्तीकरण। नारी
सशक्तिकरण के मामूली
प्रतिशत को अगर हम
सम्पूर्ण नारी उद्धार गाथा मान लें तो हम बहुत
बड़ी भूल कर रहें हैं।
और आप ही बताये
की नारी सशक्तिकरण कहाँ तक नारी जाती
को इस
बर्बरता से , दुराचारों से , अत्याचारों से बचा पा
रही है। एक
दोषी के लिए, एक
अपराधी के लिए नारी नारी ही है चाहे
वः अशक्त है या सशक्त
, एक कामुक
चाह को पूर्ण करने
का जरिया। अब नारी चाहे
राजा जो या रंक।
नारी से संग अमानवीय
ढंग से
व्यवहार करने वालों में जहाँ एक
तरफ बड़े घरों के लोग शामिल
हैं तो दूसरी तरफ
दुसरे तबके के लोग। चाहे
कारण राजनितिक हों या सामजिक। अंततः भुगतना
तो नारी को ही पड़
रहा है।
इसलिए
समय की ज़रुरत हैं
एक ऐसे दंडविधान की जो कम
से कम समय में
अपराधी को एक उदाहरणात्मक
दंड दे। दूसरी
और नारी जाती को रक्षात्मक पैंतरों
की हर संभव जानकारी
हर माध्यम से उपलब्ध करनी
चाहिए तो शायद ऐसे
जघन्य अपराधों में कमी आये।
====================================त्रिभवन कौल
Via FB/Timeline
ReplyDelete----------------
Shelleyandra Kapil
बिल्कुल सही कहा है।
May 7 at 3:19pm
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Anam Das
नारी-सम्मान की आपकी भावना को सादर . सशक्त दंडविधान और सचेत सुरक्षा-प्रबन्ध भी नाकाफी हैं. आपने सच कहा अमानुषों की सदी है.
May 7 at 4:41pm
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Ramkishore Upadhyay
आज भी कुछ नहीँ बदला ।बदल गयी सिर्फ़ सत्ता निर्भया की क्षत विक्षत देह पर आरूढ़ होकर । क्या आज भी बलात्कार नहीँ हो रहे है ,किसी को विश्वास न हो नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देख ले ।
May 7 at 9:08pm
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गुप्ता कुमार सुशील
सत्य कहन आद.
May 8 at 1:30am
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Raj Kishor Pandey
नारी सम्मान की भावना से ओतप्रोत सुंदर लेख
May 8 at 7:53am
Kviytri Pramila Pandey
ReplyDeleteआदरणीय नारी के प्रति सामयिक- उत्पीडन ,न्याय के लिए जागरूक आलेख का स्वागत है -बधाई अति सुन्दर
May 7 at 2:47pm
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विवेक चौहान
देश मे बढ़ रही नारी उत्पीड़न समस्या को चोट मारती बात कही आपने बहुत खूब नियम बदलने चाहिये अब या कुछ ऐसा हो जिसे अपराध घटे
May 8 at 1:32am
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Sharda Madra
नारी जाति की रक्षा के लिए उदाहरणात्मक दंड दें।कड़ें दंड से ही समस्या का हल संभव हो सकता है।
सराहनीय सोच।अत्यंत प्रेरक लेख। बधाई।
May 8 at 7:07am
-----------------------via fb/YUSM
Arun Sharma
ReplyDeleteSahi kaha!
May 8 at 12:44pm
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Indira Sharma
Sahi soch yahi honi chahie .apradh sabit hone par turant dand ki vyvastha . jab aisi ghatnae hamare desh men hoti hain to bada hasyaspad lagta hai yatr naryastu pujyante
May 8 at 1:14pm
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Kavita Bisht
Bahut sahi kaha aapne aadarniy
May 8 at 3:58pm
-------------------Via fb/PP
Kavita Bisht
ReplyDeleteBahut sahi kaha aapne aadarniy
May 8 at 3:58pm
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Rajnee Ramdev
सच और सोचनीय
May 8 at 10:44pm
---------------------fb/pp