Thursday 30 November 2017

"गाँधी और उनके बाद" :अनुभूतियों के शब्द स्वर



"गाँधी और उनके बाद" :अनुभूतियों के शब्द स्वर
-----------------------------------------------
“प्रसन्नता ही एकमात्र  ऐसा इत्र है जो आप दूसरों पर छिड़कते हैं तो कुछ बूंदे आप पर भी पड़ती हैं।“
महात्मा गांधी
+++++++++
गाँधी जी के  उपरोक्त उद्धगार अनुज कविवर  ओमप्रकाश शुक्ल जी का प्रथम काव्यसंग्रह "गाँधी और उनके बाद" पर सही और सटीक लागू होती है। वास्तव में उनकी हर एक रचना हृदय और मस्तिष्क को प्रसन्न करने वाले उस इत्र  के समान है जो अपनी सुगंध फैला कर पाठक कोअपने आगोश में ले लेती हैं साथ ही कवि के हिंदी कविता  और साहित्य के प्रति निष्ठाभाव व समर्पण भी दर्शाता है

काव्यांजलि मैं करूँ समर्पित
हे राष्ट्रपिता शत नमन सहित
देना नित हमे मार्ग दर्शन
कर सकें सत्य का अवलोकन

कवि ने आधी कविताओं को गाँधी जी के उन विचारों को समर्पित किया है जो स्वयं गाँधी जी को प्रिय रहें हैं और जिनका उन्होंने अपने जीवन काल में ही खुद पर और दूसरों को अपने कार्य कलापों में शामिल करने को कहा। उन विचारों को इस युग की पीढ़ी माने या ना माने , कवि ओमप्रकाश शुक्ल जी के हृदय में बसी उन विचारों की छवि और मंतव्य  को कवि ने  काव्यमय शब्द चित्रण द्वारा पाठकों के समक्ष रखने का एक सराहनीय प्रयास किया है।

हम राम राज्य साकार करें
स्वदेशी ही निश दिन हिय धरें
गाँधीत्व हरेक ओर पाएँ
उपहार यही देकर जाएँ

उनकी रचनाओं का जब हम आंकलन करते हैं तो उनकी संवेदनशील अनुभूतियों की तरलता और भावुकता से दो चार होते हैं। कवि का मन हताशा से भरा है I जब वह अपने ही देश में फैले अनाचार को, भ्रष्टाचार को , व्यभिचार को , अत्याचार को देखता है।  उनका मन विचलित हो उठता है।  सामजिक, राजनैतिक , आर्थिक और मानसिक खोखलेपन से देश को स्वतंत्र करने के लिए उनके हृदय से गाँधी जी के पुकार निकलती है Iयथा :-
अब धरा आपको पुकार रही
आ जाओ एक बार पुनः
ज्योत जलाकर हृदय की
फिर से जन आधार बनो

 कवि जीवन के अधूरेपन को कुछ यूँ बयां करते हैं :-

जिंदगी सत्य की डगर पर है
पर भरोसा कहाँ शहर पर है
भाव मिलते नही ग़ज़ल मे अब
ध्यान बस काफिया बहर पर है
=================

कवि अपने  पूज्य पिताजी को समर्पित यह पंक्तियाँ एक मार्मिक बिम्ब हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं जहाँ एक पिता अपने बच्चे को बड़ा होता देख अपने पिता को स्मरण करता हैं।  इस कविता में कथ्य से अधिक भाव की प्रधानता को स्वतः ही महसूस किया जा सकता है। यथा :-
स्मृतियाँ कब भूले भूलती हैं
याद आपकी नित्य ही
आ जाती है
आज जबकी
पुत्र को बड़ा होते निहारता हूँ
========================
 पर्यावरण के रक्षा हेतु कवि ओमप्रकाश शुक्ल की कलम से यह प्रार्थना जब निकलती है तो वह एक सरोकारी कवि के रूप में हमारे समक्ष प्रकट होते हैं। यथा :-

गिनती भी कर लो कभी, कितने काटे वृक्ष
बचपन से ले आज तक, प्रश्न बना यह यक्ष
प्रश्न बना यह यक्ष, लगाये कितने अब तक
अब भी चेतो मित्र, छोड़ दो क्या था कल तक
करो वृक्ष ही भेंट, मान लो इतनी विनती
फैलाओ तादात, छोड़ दो करनी गिनती
=======================
ओम जी ने केवल अपने अन्दर छिपे काव्य प्रतिभा को ही शब्दों में ही नहीं साकार किया है अपितु एक कुशल कवि और साहित्यकार  होने की प्रतिभा की झलक भी दिखलाई हैं। कुंडलियां , सवैया , हाइकू , डमरू, नवगीत , दोहे , वर्ण पिरामिड,माहिया , घनाक्षरी , आल्हा , गीत , गीतिका , मुक्तक आदि  विविध विधाओं में रचित  रचनाओं को पढ़ कर एक कुशल और पारंगत कवि को पाते हैं जो हृदयात्मक विचारों को बौद्धिक रूप और हर काव्य रस  में ढाल कर एक विचारणीय काव्य की प्रस्तुति  हमारे समक्ष रखते हैं। उनकी छंदमय रचनाओं में  भाषा शैली ( अवधी /बृज /खड़ी  बोली ) ,सटीक  शिल्प और गेयता के साथ साथ सार्थक और सूक्ष्म भावों की अभिवयक्ति की पूर्णता है।

सुन अहिरन की चंचल छोरी,
हौं बहु कारो तै घन गोरी, यादव कुल हौं ग्वालिन ओरी
आजु तोह यह कहे देत हौं, छोटो देखि न कर बरजोरी
=======
मना रे काहें भयो अधीर,
जीवन राह भली कटु भीषण, चाह रही क्यों खीर।।
नेह लगाय रहौ हिय व्याकुल, झरै नैन सों नीर।
===============

उनकी रचनाएँ समयाकूल हैं और उनके एक निपुण  छंदकार, गीतकार, छंदमुक्त रचनाकार होने का सजीव प्रमाण हैं। रचनाएँ  पढ़ कर ऐसे लगता है जैसे उन्होंने अपने अंतरात्मा के स्वरों का शब्द चित्रण किया हो जिनमे  पाठक गणों की चेतना को झकझोरने का सामर्थ्य होने के साथ साथ अभिभूत करने की शक्ति रखती हैं।

 प्रत्येक रचनाकार का एक ही मंतव्य होता है कि उसकी रचनाएँ पाठकों के हृदय में घर कर जाएँ। इस परिवेश में कवि ओमप्रकाश जी की रचनाएँ आत्मविस्मृत हो कर लिखा ,संवेदनाओं के सागर में डूबा ,  एक ऐसा दस्तावेज है जो अपनी भाषा शैली , शिल्प विधान , गहन चिंतन और मनन और सहज सम्प्रेषिनियता के लिए हिंदी काव्य संसार में जानी जाएगी।

कविवर ओमप्रकाश शुक्ल जी के इस काव्यसंग्रह "गाँधी और उनके बाद" की आशातीत सफलता के लिए मेरी  हार्दिक शुभकामनायें I

त्रिभवन कौल .
स्वतंत्र लेखक –कवि
kaultribhawan@gmail.com
 ==============================================================================


No comments:

Post a Comment