Tuesday 28 November 2017

' जगनुओं के बल्ब ' : अनुभूतियों का सत्य




' जगनुओं के बल्ब ' : अनुभूतियों का सत्य
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रूह की फसलों से कटता है
बांटे से कहाँ बंटता है
इश्क है मामूली नहीं
ऐरों-गैरों को कहाँ मिलता है।
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ज्योति आर्या  के काव्य संग्रह ' जगनुओं के बल्ब ' में रचित  अधिकतर रचनाएँ कवियत्री के अनुभूतियों की गहराई द्वारा ज़िंदगी के उस यथार्थ को छूती हुए प्रतीत होती हैं जहाँ पाठक को लगता है कि अपनी रचनाओं के द्वारा रचनाकार ने उनके सामने उन अहसासों के  सत्य को नग्न कर दिया हो  जिनको उसने या तो खुद जिया है या जीते देखा है।  ऐसा लगता है कि  दिलो -दिमाग के झरोखों से जज़्बातों का एक दरिया सा पाठकों के सामने बह रहा है जो उनको उस दरिया में तैरने का आवाह्न कर रहा हो। किसी काव्य संग्रह का यदि दूसरा संस्करण यदि छपता है तो यकीन मानिये रचनाओं में चुंबकीय आकर्षण तो होगा ही।


एक मकान ऐसा था
जिसकी छत से हर वक्त
एक दुआ मेरे नाम की उठती थी……….
उसकी छत छप्पर हो गयी
गावँ सारे शहर
बिक गए रिश्ते घर घर से
यह कैसी तरक्की हो गयी।
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इबादतघरों से भी ज्यादा
शायद अस्पतालों  में रहता है खुदा
इसलिए यहाँ इंसान कम
जिन्दा दुआयें ज्यादा दिखती हैं।
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सिल्प -डिस्क की तडी निकलने की बात हो  या  गुलज़ार साहिब को फ़कीर कहने की इच्छा , भाग्य के लकीरों को न मानने की हौसला या फिर पर्यावरण पर निराकार से गुहार , दादी की यादें या फिर या नम आँखों के किसी को याद करते मोती। सुबह की चाय के साथ किसी के याद आने ख्वाइश हो या इश्क के ऐरे -गैरों को ना मिलने का परामर्श हो।
दुआओं में खुदा नज़र आता है तो कंही रद्दी में पड़ी डायरी में अपूर्ण इच्छायें I हर एक रचना  मानो आकाश में अवतरित होते चाँद की हर कला  के साथ  पाठकों के मन में एक ज्वार सा उत्पन्न कर रही हों।

नाम मेरे ही होंगी तेरे दर्द की विरासतें 
हिस्से मेरे तेरा कुछ तो आया
तू ना आया ना सही
मुबारक तुझे मेरा गम
मुझे तेरे दर्द का साया
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हर कविता एक नए लिबास में हमारे सामने प्रस्तुत होती हैं। लम्बी सी सूची है उन अहसासों की , उन संवेदनाओं की , उन अनुभूतियों की जिनको शब्द दिए है  ज्योति आर्य ने जो अनचाहे ही एक ध्वनि उत्पन करते हुए कवियत्री की अनूठी कृतियों को पाठकों के समक्ष लाती हैं जो कवियत्री की  परिपक्वता को ही नहीं दर्शाती पर उसके  काव्य के प्रति जनूनी समर्पण को भी प्रस्तुत करती हैं।  ' जगनुओं के बल्ब ' हृदय की भावनाओं, गहरी सोच और संवेंदनशीलता की अति सुन्दर प्रस्तुति है I विषय कोई भी हो उनसे अछूता नहीं है। 

काव्य शैली की बात करें तो यह आम काव्य शैली से बिलकुल भिन्न है। बिंदास है, नज़ाकत है, नफासत है। कविताओं को  पढ़ कर नयी कविता का दौर याद आता है।  कवियत्री  ने हर उस परिस्तिथि को निर्वाहित किया है जिनको उसने खुद जिया है ,भोगा है।  अगर मैं यह कहूँ के सभी रचनाएँ सृजनकर्ता से एक अंतरंग संम्बधों की एक काव्यमाला है जो  एक परिस्थिति के दायरे में रह कर उसके हृदय की व्यक्तिगत अभिव्यक्तियों की माला के रूप में हमारे समक्ष आती हैं  जिसे बार बार घुमाने को जी चाहता है तो  शायद कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । सभी रचनाएँ कहीं न कहीं उन मानवीय संवेदनाओं से जुडी लगती हैं जिनको हम हर रोज घटित होते देखते हैं या हमारे साथ गुजरती हैं।

यद्यपि इस काव्य संग्रह का दूसरा संस्करण निकल चुका है जो इसकी लोकप्रियता का मापदंड भी है ,  मैं यही आशा करूंगा कि इसके अनेकों संस्करण निकले और ज्योति आर्या को प्रतिष्ठित कवित्रियों की श्रेणी में खड़ा करे। हार्दिक बधाई और अशेष शुभकामनायें। 
त्रिभवन कौल
स्वतंत्र लेखक-कवि /भारत
इ-मेल :-kaultribhawan@gmail.com
28-11-2017
काव्य संग्रह :- ' जगनुओं के बल्ब '
प्रकाशक :- Authors Press 
मूल्य :- Rs.295/=
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2 comments:

  1. Jyoti Arya
    November 28 at 3:57pm
    अपने व्यस्त schedule में से कुछ क़ीमती पल निकल कर जुगनुओं के बल्ब की विस्तृत समीक्षा लिखने के लिए तहेदिल से आभार त्रीभुवन जी....आपका आशीर्वाद मिला मेरे लिए सौभाग्य की बात है .. आशीष बनाए रखिएगा ।।🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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  2. Jyoti Arya
    November 28 at 4:02pm
    ज़रूर पढ़े ।
    आदरणीय Tribhawan Kaul जी द्वारा "जुगनुओं के बल्ब" की विस्तृत समीक्षा । धन्यवाद त्रिभवन जी 🙏🏻🙏🏻

    https://kaultribhawan.blogspot.in/2017/11/blog-post_28.html?m=1

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