Tuesday 22 December 2015

दोहे (सामयिक)

दोहे (सामयिक)
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मँहगाई सुरसा बनी, भूखे पेट न सोय
नेतालोग ऐश करें, पीर न जाने कोय
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संसद सांसद से चले, गरिमा तब ही होय
देश तबौ उन्नति करे, बहस बराबर होय
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कुर्सी कुर्सी कर मरे, कुर्सी मिली न कोय
लांछन लागे बेतुके, झूठ पावं न होय
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बालक बालक ना रहे, कब राक्षस बन जाय
संसद पार न बिल करें, युवा बने छुट जाय
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सर्वाधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल

5 comments:

  1. Prince Mandawra
    December 22 at 2:12pm
    वाह्ह्ह्ह क्या बात है जी
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    Daizy Poetess
    December 22 at 4:00pm
    very nice! !
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    Fatima Afshan
    December 22 at 4:50pm
    Waah
    ---------------------------via fb

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  2. रजनीश 'तपन'
    December 22 at 9:17pm
    बहुत बढ़िया सर
    ----------------------------------via fb

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  3. via fb/Purple Pen.
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    वसुधा कनुप्रिया 10:27pm Dec 22
    सामयिक भी, और सुन्दर भी !

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  4. Main Hoon Ali
    December 23 at 5:04pm
    Doha kahna mushkil hai par aaap ke dohe bahot sundar hain
    ---------------------------------------------------
    via fb

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  5. via fb/Purple Pen.
    Shailesh Gupta 8:49am Dec 25
    बहुत सुंदर... दोहे...

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