दोहे (सामयिक)
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मँहगाई सुरसा बनी, भूखे
पेट न सोय
नेतालोग ऐश करें, पीर न
जाने कोय
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संसद सांसद से चले, गरिमा
तब ही होय
देश तबौ उन्नति करे, बहस
बराबर होय
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कुर्सी कुर्सी कर मरे,
कुर्सी मिली न कोय
लांछन लागे बेतुके, झूठ
पावं न होय
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बालक बालक ना रहे, कब राक्षस
बन जाय
संसद पार न बिल करें, युवा
बने छुट जाय
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सर्वाधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल
Prince Mandawra
ReplyDeleteDecember 22 at 2:12pm
वाह्ह्ह्ह क्या बात है जी
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Daizy Poetess
December 22 at 4:00pm
very nice! !
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Fatima Afshan
December 22 at 4:50pm
Waah
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रजनीश 'तपन'
ReplyDeleteDecember 22 at 9:17pm
बहुत बढ़िया सर
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ReplyDelete--------------------------
वसुधा कनुप्रिया 10:27pm Dec 22
सामयिक भी, और सुन्दर भी !
Main Hoon Ali
ReplyDeleteDecember 23 at 5:04pm
Doha kahna mushkil hai par aaap ke dohe bahot sundar hain
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ReplyDeleteShailesh Gupta 8:49am Dec 25
बहुत सुंदर... दोहे...