लाल गुलदस्ता ( एक लघु कथा )
--------------------------
यात्री रेलगाड़ी द्रुतगति से पटरी पर दौड़ी जा रही थी. सिग्नल हरा था पर चालक ने दूर से ही उस व्यक्ति को देखा जो बीचो बीच पटरी पर खड़ा था. ' हे मेरे भगवान !' चालक चीखा. उसने हूटर दबाया पर वह व्यक्ति टस से मस नहीं हुआ. चालक की दृष्टि व्यक्ति के हाथ मेरे पकडे लाल रंग के एक
गुलदस्ते पर पड़ी. लाल रंग. दिमाग तेजी से काम करने लगा. हाथ स्वंयमेव ही ब्रेक पर चले गए. "शायद वह व्यक्ति आत्महत्या के इरादे से नहीं पर उसको चेतावनी देने के लिए खड़ा हो." उसने सोचा. रेलगाड़ी के पहियों से चिंगारियां निकलने लग गयी. यात्रियों ने झटके महसूस किये. डब्बों में
एक दम से सन्नाटा छा गया. रेलगाड़ी ठीक उस स्थान पर रुकी जहाँ वह व्यक्ति खड़ा था. वह चालक की ओर देख कर मुस्कुरा रहा था .चालाक
भी उसको तब तक देखता रहा जब तक वह इंजिन से नीचे नहीं उतरा.
माजरा क्या है यह जानने के लिए गार्ड इंजिन की ओर चलने लगा. कुछ यात्री उत्सुकतावश गार्ड के साथ साथ उतर आये और इंजिन की ओर चलने लगे. समीप के गांव से भी कुछ लोग भागते हुए आ गए. ' लगता है कोई गाड़ी के नीचे आ गया है' एक यात्री बोला
' हाँ,
आजकल यही एक तरीका अपना लिया है आसानी से अपनी मुसीबतों के समाप्त करने का'. दूसरा यात्री बोला. इंजिन के पास पहुँच कर गार्ड ने चालक को परेशान देखा. उसने पुछा ," क्या हुआ, गाड़ी क्यों रोकी." " वह यहीं था. कहाँ गया ?" चालक कुछ कंपकंपाती आवाज में बोला. 'कौन था ?" गार्ड और यात्री गाड़ी के नीचे देखने लगे. ' यहाँ तो कोई नहीं है' कोई बोला. " नहीं, मैंने उसके खुद इन आँखों से देखा. उसके हाथ में एक लाल रंग का गुलदस्ता था शायद. मझे ऐसा लगा की वह मुझे कोई चेतावनी दे रहा हो.
इसी कारण से मैंने गाड़ी रोकी. ' यह तुम्हारा भरम है. मैं अगले स्टेशन मास्टर को सूचित करता हूँ.' गार्ड बोला ओर मोबाइल पर किसी को गाड़ी
रूकने की वजह बताने लगा. गार्ड बात कर रहा था और उसके माथे पर पसीना आ रहा था. कभी वह चालक को देखता और कभी वह यात्रियों को. चालक विस्मय से गार्ड की और देखने लगा. अब पूछने की उसकी बारी थी. '"क्या हुआ ?" " एक
किलोमीटर दूर छोटी पुलिया पर से पटरी उखड गयी है. समय पर तुमने गाड़ी रोक ली. हरा सिग्नल तो तुम पार कर चुके थे." गार्ड और यात्री ईश्वर को याद करने लगे
" पर वह व्यक्ति गया कहाँ ?" चालक फिर इधर उधर देखने लगा. गांव से आये एक व्यक्ति ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा
" अरे साहिब, वह सुदर्शन होगा. पिछले साल की दुर्घटना याद है. छोटी पुलिया बह गयी थी. सुदर्शन को पता लग गया था. उसके पास आने वाली गाड़ी को रोकने के लिए कुछ नहीं था तो उसने आस पास के जंगली लाल फूलों का गुलदस्ता बनाया और गाड़ी के चालक को दिखाने लगा. पर गाड़ी के चालक ने देखा नहीं. सुदर्शन के अपनी जान गवां दी थी साथ ही गाडी छोटी पुलिया पर दुर्घटनाग्रस्त हो गयी. जान माल का काफी नुकसान हो गया था. आज शायद छोटी पुलिया पर फिर कुछ हुआ होगा. तभी तो............" चालक उसकी ओर देखता रह गया. वह सुदर्शन की तरह ही तो लग रहा था. गांव वाले जा चुके थे. वह खड़ा वहीँ मुस्कुरा रहा था. लाल गुलदस्ता उसके हाथ में नहीं था. शायद गुलदस्ते ने अपना काम कर दिया था.
---------------------------------------------------------------------------
सर्वाधिकार सुरक्षित/ त्रिभवन कौल
via fb/युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच.
ReplyDeletePushp Lata 11:07am Dec 19
वाहहहहह वाहहहहह वाहहहहह अति सुंदर रचना आदरणीय
-----------------------
दिनेश कुशभुवनपुरी 12:48am Dec 19
वाह वाह वाह अतीव सुंदर सृजन आदरणीय
--------------------------------
Sushma Singh 11:56pm Dec 18
आदरणीय sir बहुत सुंदर
--------------------------------
Rajesh Pathak 10:54pm Dec 18
वाह्ह्ह्ह्ह्...लाज़बाब
--------------------------------
Milan Singh 10:30pm Dec 18
वाहहहहह।आदरणीय अत्यंत शानदार सार्थक सृजन।सादर नमन।
-------------------------------------
Prince Mandawra 10:22pm Dec 18
क्या बात है वाह्ह वाह्ह्ह्ह आ. जी शानदार
-------------------------------------
Pradeep Sharma 10:06pm Dec 18
गजब ,क्या खूब क्याखूब
via fb/युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच.
ReplyDeleteShyamal Sinha 9:43pm Dec 18
वाहहह वाहहह माननीय
बहुत ख़ूब लाज़वाब अभिव्यक्ति
------------------------------
Ramkishore Upadhyay 9:30pm Dec 18
सुंदर औरसार्थक कथा
-------------------------------------
Chanchala Inchulkar Soni 9:25pm Dec 18
वाह्ह्ह्ह् बेहतरीन अभिव्यक्ति
Mukesh Srivastava 12:28pm Dec 19
ReplyDeletehnnn gud gud
------------------------------------------
Pandey Prabhu 5:44am Dec 20
कौल सर बहुत सुन्दर कहानी :)
--------------------------------------------
Ashok Ashq 6:19am Dec 20
वाह्ह्ह्ह् लाजवाब
-------------------------------------------------
via fb/Purple Pen
वसुधा कनुप्रिया 1:18am Dec 20
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर कहानी है, आदरणीय कौल सा'ब । मैं समझ गयी इसका संदर्भ भी। आप कमाल की कहानियाँ लिखते हैं, मुझे यक़ीन हो चला है ।
----------------------------------------------
via fb/purple pen
Poet M Hussainabadi Mujahid 8:14am Dec 21
ReplyDeleteभ7तखोब
---------------------------------------------
Mahatam Mishra 9:19pm Dec 20
वाह सर वाह
------------------------------------
via fb
Shivani Sharma 12:49pm Dec 21
ReplyDeleteओह्ह्ह्! !! अद्भुत सृजन
-------------------------------------
वसुधा कनुप्रिया 12:18pm Dec 21
वाह, क्या ख़ूब कहानी है। नमन, आदरणीय कौल जी
---------------------------------------
via fb/युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच.