कल 01-11-2015 सुश्री इंदिरा शर्मा जी के निवास स्थान पर हुई गोष्ठी में मैंने एक दुपदी, एक चतुष्पदी और एक हास्य रास की कविता का पाठ किया. उनमे से दुपदी और चतुष्पदी आप सब साहित्य मनीषिओं को एवं कविजनो को सादर प्रेषित हैं :-
चतुष्पदी-15
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लौटा के पुरूस्कार साहित्य साधना को नकारा नहीं जाता
जीवन की पूँजी को इस तरह गंगा में बहाया नहीं जाता
कहाँ थे आप इससे भी भयानक त्रासदियों के समय
माँ शारदे को राजनीति का मोहरा बनाया नहीं जाता
Lauta ke puruskaar sahity saadhna ko
nakaara nahi jaata
Jeevan kee poonji ko is tarah ganga mein
bahaaya nahi jaata
Kahan the aapk isse bhi bhayanak traasdiyon
se samay
Maa shared ko raajniti kaa mohra banaye
nahi jaata.
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प्रदीप शर्मा 6:52pm Nov 2
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्
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Shyamal Sinha 5:03pm Nov 2
एक यादगार शाम
ख़यालों और सवालों की
ज़वाबों और सवालों की !
सादर सस्नेह नमन्
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Pradeep Sharma 4:36pm Nov 2
वाहहहहह,बहुत खूब
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Uttam Mehta 2:01pm Nov 2
वाहहहहहह
लाजवाब
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Pramila Pandey 1:18pm Nov 2
बहुत खूब आदरणीय वाह
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Om Prakash Shukla 11:41am Nov 2
ReplyDeleteआपकी कविता मे आपके एहसास हैं आदरणीय ,, संयोग है की आज ही के दिन कश्मीर से पंडितों को विस्थापित किया गया था ।
जो आज तक अपने ही वतन मे बेगाने से इधर उधर रह रहे हैं।
मंच पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है ।
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Tribhawan Kaul 11:46am Nov 2
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका. हाँ बहुत गहरी टीस है मन में :)
Ramkishore Upadhyay 11:57am Nov 2
ReplyDeleteरचनाएँ न तोलो छंद मापनी के तराज़ू में
मेरी भावनाओं को खुला आसमान चाहिए...............सच कहा आपने..मिर्ज़ा ग़ालिब ने भी कहा .. बक़द्रे-शौक़ नहीं ज़र्फे-तंगनाए ग़ज़ल।
कुछ और चाहिए वुसअ़त मेरे बयां के लिए.........बधाई हो
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Tribhawan Kaul 12:05pm Nov 2
ReplyDeleteजी हाँ बहुत ही वाजिब बात कही थी ग़ालिब साहिब ने. वह भी तंग आ गए थे बंदिशों में शेरो शायरी कर कर के :)
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Tribhawan Kaul 12:08pm Nov 2
मेरी प्रकाशन के लिए विचाराधीन काव्य संग्रह ' बस एक निर्झरणी भावनाओं की' में मैंने इसी शेर का जिक्र भी किया है अपनी मन की बात में.:)
अकेला इलाहाबादी
November 2 at 11:06am
चार पंक्तियों में सारे राज़ पर्दाफाश कर दिया आपने। वाह क्या बात है। बहुत ख़ूब।
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बृजेश कुमार 'ब्रज'
ReplyDeleteNovember 2 at 11:36am
saty kaha adarniy
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Brahma Dev Sharma 12:52am Nov 3
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा और कहा गया , सुना गया > बधाई
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Lata Yadav 12:45am Nov 3
वाहहहह आदरणीय बहुत ही सुन्दर बात
नमनआपको व हार्दिक शुभकामनाएँ
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Mani Kaul
ReplyDeleteNovember 3 at 6:53am
Very nicely said
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अकेला इलाहाबादी 11:27am Nov 2
ReplyDeleteदिल में उतर गए हैं आप।
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Shwetabh Pathak
ReplyDeleteNovember 2 at 11:37am
Wonderful !
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Vishwash Hanswar
ReplyDeleteNovember 2 at 7:12pm
हर किसी का विरोध का तरीका अलग होता है, आपकी चार पंक्तियों से उन्हें नकारा भी तो नहीं जा सकता,
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Tribhawan Kaul बिलकुल सही कहा आपने. हर एक का विरोध करने का तरीका अलग होता है. पर यहां तो भेड़ चाल है जैसे किसी ने सब को हाँक दिया हो. में भी तो इसी बात का विरोध कर रहा हूँ पर मेरी विरोध करने की भेड़ चाल में कितने कवि-लेखक आ रहें हैं. मेरा विरोध उन अभी हुई घटनाओं पर है जिसका असर लाखों लाखों लोगों पर पड़ता है
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Shachii Kacker
ReplyDeleteNovember 2 at 7:50pm
सही
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Bhagalpur sikh dangga bombay riots gujarat riots kashmiri pundits all suffering should be backead 122 languages and every cast creed should be respected and should be considered as on equality and diversity of india should be treated at part
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Tribhawan Kaul
Fully agreed but there are elements who vitiate the this diversity simply for political gains
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Seharyar Khan
November 2 at 10:17pm
Non polarised societies is the need of hour and everyone should be given there rights to equality
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Tribhawan Kaul
Highly appreciate you views.