जनता उस खरबूजे के समान है जिसके ऊपर चाकू गिरे तो कटे और
खरबूजा चाकू पर गिरे तो कटे। कटना तो हर हाल में खरबूजे ने ही है। अब देखना यह है
कि खरबूजे को कटते समय वेदना किस प्रकार के कटने से अधिक कम
होती है। २०१९ के संदर्भ में अगर देखा जाए
तो खरबूजे पर तीन तरफ़ा मार है। एक आरी वाला चाकू है जिसका उत्पादन १९४७ से पहले
शुरु हुआ था , दूसरा धार वाला चाकू है जिसकी कंपनी बीच में बंद हो गयी थी पर
२०१४ में
पुनर्जीवित हो कर धार धार चाकुओं को बना कर बाकी सभी कम्पनिओं की नींद हराम कर दी
और तीसरा बहुमुखी चाकू है जिसका उत्पादन एक स्टार्ट अप कंपनी के हाथ में है जिस के सभी सहभागी चाकू से
खरबूजे की फांकें करने में माहिर तो हैं पर सभी के सभी कंपनी के मैनेजिंग
डायरेक्टर भी हैं। तू भी रानी , मैं भी रानी , कौन भरेगा घर का पानी। कंपनी को अपनी नीव बहुत मजबूत करने
की ज़रुरत है क्यों की जो आसार दिखाई दे रहे हैं उससे तो यही लग रहा हैं कि नाव
डगमगा सी रही है। अब खरबूजे के पास तीन विकल्प है। कटना तो है ही पर कटे किससे ???
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Girish Saraswat
September 12 at 6:56 PM
बिल्कुल ठीक बात कही आपने कौल साहब
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Bidhu Bhushan Trivedi
September 12 at 8:12 PM
सही बात है
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Ramkishore Upadhyay
September 13 at 8:08 AM
जनता के पास सीमित विकल्प होते है। अब तो लोग कह रहे है कि कोई मरे या जिये हम तो अगले 50 वर्ष तक खरबूजा खाएंगे ।