Thursday 7 July 2016

आकार


आकार
 --------

 अंतहीन
 अर्थहीन
 आकांक्षाएं लिए
 अपने ही बुने सपनो से घिरे
 आकाश तक को सीमा मान
 आज के युग का आदमी , (मनुअंशी)
 असंतुष्ट ( और अपरीक्षित )
 अविवेकी
 असाध्य मनोरोगों से ग्रसित
 अन्य को तुच्छ मान
 अन्धकार से त्रस्त
 अविनाशी होने के प्रयत्न में
 अपना आकार इतना बढ़ा रहा है कि
 अपने ही
 आकार के नीचे दबा जा रहा है !!
 -----------------------------------------
 सर्वाधिकार सुरक्षित / सबरंग /त्रिभवन कौल

9 comments:

  1. via fb/निर्झरणी भावनाओं की'
    -------------------------------
    रंजना सिंह
    July 7 at 11:21pm
    बहुत सुंदर सत्य नमन आपको सर जी

    ReplyDelete
  2. Shivali Dhaka
    bahut sahi kahaa!
    July 8 at 4:03pm
    --------------------------------- via/fb PAU
    Padam Prateek
    अतिसुंदर ,सार्थक और सारगर्भित रचना के लिए अनेक बधाई ,शुभकामनाएं ।
    July 8 at 7:25pm
    ------------------------------------via fb/True media.

    ReplyDelete
  3. Smriti Roy
    Apratim sir!!!
    July 8 at 6:28pm
    ------------------------
    Manasi Gahlot
    अपना आकार इतना बढ़ा रहा है कि
    अपने ही
    आकार के नीचे दबा जा रहा है .....
    Lajawaab!
    July 8 at 7:57pm
    ----------------------------------via fb/poetry jucntion

    ReplyDelete

  4. Ramkishore Upadhyay
    हार्दिकबधाई आदरणीय
    July 8 at 3:20pm
    ------------------------------
    डॉ किरण मिश्रा
    आकार के पास निराकार से दूर।
    July 8 at 3:44pm
    ----------------------------------
    वसुधा कनुप्रिया
    बेहतरीन
    July 8 at 8:02pm
    -------------------------------------
    Dogendra Singh Thakur
    Anupam prastuti💐💐
    July 8 at 10:06pm
    -------------------------------------
    Ranjana Patel
    Superb
    July 8 at 11:17pm
    ------------------via fb/TL

    ReplyDelete
  5. Jai Krishna
    बहुत ही सुन्दर शब्द-योजना !
    पर साहित्य का केन्द्र तो मनुष्य ही है और इसी का कल्याण साहित्य का उद्देश्य भी . अगर हम इंसान को अविवेकी तथा असाध्य रोंगों से ग्रस्त बता कर खारिज कर देंगे तो साहित्य उद्देश्यविहीन हो जायेगा .
    • July 9 at 12:25am
    ------------------------
    Tribhawan Kaul
    आपका कहना अपनी जगह सही है।पर मैं समझता हूँ कि रचनाकारों के कुछ दायित्व भी हैं। उनमे एक है समाज को सत्य से रूबरू कराना जो कभी कभी कटु सत्य भी होता है । समाज का एक भाग ऐसा भी है जो अपने को आम आदमी की दुनिया से कही ऊपर पाता है। समझता है कि वह कुछ भी कर ले, वह समाज के नियमों से, कानूनों से, बहुत परे है। इसी समझ की बोझ के नीचे वह हमेशा दबा रहता। यही उसके पतन का कारण भी बन जाता है। कवि आज के आधुनिक समाज के उस तबके की इसी समझ की और इशारा कर रहा है। इस रचना पर आपकी उपस्तिथि और टिप्पिणी का हार्दिक आभार Jai Krishna जी _/\_
    ================================================via fb/TL

    ReplyDelete
  6. Komaldeep Kaur
    Bahut achhe
    July 9 at 10:59am
    ---------------------------------------via fb/pushpganda
    Hardeep Sabharwal
    Khoob
    July 10
    -------------------------via fb/psoi

    ReplyDelete
  7. Kailash Nath Shrivastava
    बहुत सुन्दर दार्शनिक भावपूर्ण रचना वाहहह
    July 8 at 3:59pm
    --------------------------------------
    नीलोफ़र नीलू
    वाह...!!!बहुत खूब और सार्थक रचना आदरणीय कॉल साहब😊💐👌
    July 8 at 5:43pm
    ----------------------------------------
    Vandaana Goyal
    बहुत खूब आदरणीय
    July 8 at 5:54pm
    ---------------------------------------
    Sonia Gupta
    बहुत खूब सर
    July 8 at 5:55pm
    --------------------------------
    कवयित्री प्रज्ञा श्रीवास्तव प्रज्ञाञ्न्जलि
    वाह हहहहहह
    July 8 at 6:30pm
    --------------------------------------------
    Shailesh Gupta
    अप्रतिम.... अनूठा सृजन.... :)
    July 8 at 9:02pm
    ------------------------------------------------
    Kashmir Aneja
    वाहहहहहहह !!!
    July 9
    ------------------------------------
    राज सिंह भदौरिया
    वाह वाह वाह वाह
    July 9
    =============================via/fbpurple pen

    ReplyDelete
  8. Kb Singh
    बेहतरीन बेमिसाल सृजन ।वाह
    July 8 at 4:10pm
    -------------------------------------
    गुप्ता कुमार सुशील
    वाह्ह वाह!!! बहुत ही शानदार व भावपूर्ण अभिव्यक्ति आदरणीय सृजन के लिए बधाई स्वीकारें , सादर नमन |
    July 8 at 4:19pm
    -----------------------------------------
    Lata Yadav
    आदरणीय नमन आपको,आपके शब्द बहुत गहरे पैठ कर अमिट छाप छोड़ जाते हैं
    July 8 at 7:36pm
    ------------------------------------------
    Ranjana Verma
    बहुत सुंदर रचना
    July 8 at 9:27pm
    -------------------------------------------
    Ashok Vashistha
    वाह ! उत्कृष्ट सृजन ।
    July 8 at 9:32pm
    --------------------------------------------
    Shyamal Sinha
    नमन् लेखनी को
    बहुत सुन्दर वाह वाह
    July 8 at 10:23pm
    -----------------------via fb/muktak lok

    ReplyDelete
  9. Vishwambhar Shukla
    एक विचारोत्तेजक रचना को पढकर मुग्ध हूँ , सार्थक चिंतन को नमन _
    आज के युग का आदमी , (मनुअंशी)
    असंतुष्ट ( और अपरीक्षित )
    अविवेकी
    असाध्य मनोरोगों से ग्रसित
    अन्य को तुच्छ मान
    अन्धकार से त्रस्त
    अविनाशी होने के प्रयत्न में
    अपना आकार इतना बढ़ा रहा है कि
    अपने ही
    आकार के नीचे दबा जा रहा है
    July 9 at 8:24am
    ---------------------------------------
    कृष्ण कुमार तिवारी
    बहुत सुन्दर रचना आ0
    July 9 at 1:06pm
    --------------------via fb/Muktak Lok

    ReplyDelete