आकार
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अंतहीन
अर्थहीन
आकांक्षाएं लिए
अपने ही बुने सपनो से घिरे
आकाश तक को सीमा मान
आज के युग का आदमी , (मनुअंशी)
असंतुष्ट ( और अपरीक्षित )
अविवेकी
असाध्य मनोरोगों से ग्रसित
अन्य को तुच्छ मान
अन्धकार से त्रस्त
अविनाशी होने के प्रयत्न में
अपना आकार इतना बढ़ा रहा है कि
अपने ही
आकार के नीचे दबा जा रहा है !!
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सर्वाधिकार सुरक्षित / सबरंग /त्रिभवन कौल
via fb/निर्झरणी भावनाओं की'
ReplyDelete-------------------------------
रंजना सिंह
July 7 at 11:21pm
बहुत सुंदर सत्य नमन आपको सर जी
Shivali Dhaka
ReplyDeletebahut sahi kahaa!
July 8 at 4:03pm
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Padam Prateek
अतिसुंदर ,सार्थक और सारगर्भित रचना के लिए अनेक बधाई ,शुभकामनाएं ।
July 8 at 7:25pm
------------------------------------via fb/True media.
Smriti Roy
ReplyDeleteApratim sir!!!
July 8 at 6:28pm
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Manasi Gahlot
अपना आकार इतना बढ़ा रहा है कि
अपने ही
आकार के नीचे दबा जा रहा है .....
Lajawaab!
July 8 at 7:57pm
----------------------------------via fb/poetry jucntion
ReplyDeleteRamkishore Upadhyay
हार्दिकबधाई आदरणीय
July 8 at 3:20pm
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डॉ किरण मिश्रा
आकार के पास निराकार से दूर।
July 8 at 3:44pm
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वसुधा कनुप्रिया
बेहतरीन
July 8 at 8:02pm
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Dogendra Singh Thakur
Anupam prastuti💐💐
July 8 at 10:06pm
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Ranjana Patel
Superb
July 8 at 11:17pm
------------------via fb/TL
Jai Krishna
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द-योजना !
पर साहित्य का केन्द्र तो मनुष्य ही है और इसी का कल्याण साहित्य का उद्देश्य भी . अगर हम इंसान को अविवेकी तथा असाध्य रोंगों से ग्रस्त बता कर खारिज कर देंगे तो साहित्य उद्देश्यविहीन हो जायेगा .
• July 9 at 12:25am
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Tribhawan Kaul
आपका कहना अपनी जगह सही है।पर मैं समझता हूँ कि रचनाकारों के कुछ दायित्व भी हैं। उनमे एक है समाज को सत्य से रूबरू कराना जो कभी कभी कटु सत्य भी होता है । समाज का एक भाग ऐसा भी है जो अपने को आम आदमी की दुनिया से कही ऊपर पाता है। समझता है कि वह कुछ भी कर ले, वह समाज के नियमों से, कानूनों से, बहुत परे है। इसी समझ की बोझ के नीचे वह हमेशा दबा रहता। यही उसके पतन का कारण भी बन जाता है। कवि आज के आधुनिक समाज के उस तबके की इसी समझ की और इशारा कर रहा है। इस रचना पर आपकी उपस्तिथि और टिप्पिणी का हार्दिक आभार Jai Krishna जी _/\_
================================================via fb/TL
Komaldeep Kaur
ReplyDeleteBahut achhe
July 9 at 10:59am
---------------------------------------via fb/pushpganda
Hardeep Sabharwal
Khoob
July 10
-------------------------via fb/psoi
Kailash Nath Shrivastava
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दार्शनिक भावपूर्ण रचना वाहहह
July 8 at 3:59pm
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नीलोफ़र नीलू
वाह...!!!बहुत खूब और सार्थक रचना आदरणीय कॉल साहब😊💐👌
July 8 at 5:43pm
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Vandaana Goyal
बहुत खूब आदरणीय
July 8 at 5:54pm
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Sonia Gupta
बहुत खूब सर
July 8 at 5:55pm
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कवयित्री प्रज्ञा श्रीवास्तव प्रज्ञाञ्न्जलि
वाह हहहहहह
July 8 at 6:30pm
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Shailesh Gupta
अप्रतिम.... अनूठा सृजन.... :)
July 8 at 9:02pm
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Kashmir Aneja
वाहहहहहहह !!!
July 9
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राज सिंह भदौरिया
वाह वाह वाह वाह
July 9
=============================via/fbpurple pen
Kb Singh
ReplyDeleteबेहतरीन बेमिसाल सृजन ।वाह
July 8 at 4:10pm
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गुप्ता कुमार सुशील
वाह्ह वाह!!! बहुत ही शानदार व भावपूर्ण अभिव्यक्ति आदरणीय सृजन के लिए बधाई स्वीकारें , सादर नमन |
July 8 at 4:19pm
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Lata Yadav
आदरणीय नमन आपको,आपके शब्द बहुत गहरे पैठ कर अमिट छाप छोड़ जाते हैं
July 8 at 7:36pm
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Ranjana Verma
बहुत सुंदर रचना
July 8 at 9:27pm
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Ashok Vashistha
वाह ! उत्कृष्ट सृजन ।
July 8 at 9:32pm
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Shyamal Sinha
नमन् लेखनी को
बहुत सुन्दर वाह वाह
July 8 at 10:23pm
-----------------------via fb/muktak lok
Vishwambhar Shukla
ReplyDeleteएक विचारोत्तेजक रचना को पढकर मुग्ध हूँ , सार्थक चिंतन को नमन _
आज के युग का आदमी , (मनुअंशी)
असंतुष्ट ( और अपरीक्षित )
अविवेकी
असाध्य मनोरोगों से ग्रसित
अन्य को तुच्छ मान
अन्धकार से त्रस्त
अविनाशी होने के प्रयत्न में
अपना आकार इतना बढ़ा रहा है कि
अपने ही
आकार के नीचे दबा जा रहा है
July 9 at 8:24am
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कृष्ण कुमार तिवारी
बहुत सुन्दर रचना आ0
July 9 at 1:06pm
--------------------via fb/Muktak Lok