Sunday 17 July 2016

कुंवारा

हास्य रस की विधा में एक रचना मेरे काव्य संकलन ' मन की तरंग ' से प्रस्तुत है. लम्बी जरूर है पर शायद पर आजकल के नौजवानों के करीब हो सकती है
-----------------------------------------------------------------------------------------
कुंवारा
-------
अचानक माँ ने एक दिन
आकर, प्यार से पुकारा
'सनका, बेटा सनका '
मेरे माथा ठनका
इससे पहले की में भागूं
माँ आ धमकी
मुझे कालर से पकड़ा
"तू शादी करले
बहू आ जाएगी
तू भी बाप की तरह
कोल्हू का बैल बन
एक ठिकाने लग
मैं भी गंगा नहा आउंगी "
मैं मिमयाया
कसाई देख बकरा मिमयाता है
" क्या कहती हो माँ ?
कैसी बात करती हो ?
यह तुम्हारा राज पाट 
यह तुम्हारा रौब दाब
सब छिन जायेगा
घर में बहू आ गयी
समझो भूचाल आ जायेगा
मेरे शादी की बात कर
क्यों अपनी आज़ादी पर लात
और अपने पैरों पर खुद
कुल्हाड़ी मारती हो.
फूंक फूंक कर पांव रख माँ
क्यों पानी में आग लगाती हो ?
मत कर शादी की बात
मुझे कुछ दिन और जी लेने दे
खुद भी चैन की नींद सो
मुझको भी चैन की नींद सो लेने दे I

पर माँ तो माँ
बार बार लड़कियां दिखाती थी
हर लड़की से शादी करने को
उकसाती थी
हर बार मैं अनमना सा
तैयार हो जाता था
छोटी मोटी पतली लम्बी 
लड़कियों से मिलवाया जाता था
हर बार हर लड़की
अपनी ही मजबूरी बताती थी
सब की सब आंसुओं से भरी
गुप्त प्रेम की कहानियां सुनाती थी
इससे पहले की मैं उनको
अस्वीकार करता
वह ही मुझ कुंवारे को
अस्वीकार कर जाती थी.
हर बार सोचा
चलो झंझट छूटा
मेरी शादी का सपना
माँ का तो टूटा .
पर बहस पर बहस
हर दिवस होती रही
माँ सोते सोते बड़बड़ाती रही
" मुस्टंडे हो गए हो
शादी करवा लो
बीबी आ जाएगी
रिश्तेदारों और पड़ोसियों की
कानाफूसी बंद हो जाएगी "
कभी रोती, कभी झल्लाती
कभी चिल्लाती ,
"मैं मर जांउगी
तब तू शादी करेगा ?
पोते,पोतियों की मुँह दिखाई से
मुझको वंचित रखेगा .
अरे नासपीटे
मेरी शादी के समय
तेरे पिता का था यह हाल
कि मुँह में अंगूठा डाले
हल करते थे सवाल.
अरे नाशुक्रे
मेरी गत नहीं होगी
परलोक नहीं सुधरेगा
पर कसम तुझ जैसे बेटे की
मैं भी तब तक नहीं मरूँगी
जब तक तू शादी नहीं करेगा II"

रोज रोज की किट किट से
तंग मैं आ गया
माँ की ममतामयी गुहारों से
बीबी की बक बक अच्छी
इसलिए फौरन शादी के लिए
मान गया .
पहले दिन ही जो लड़की देखी
माँ को भा गयी
मुझ पर, मगर
मुर्दनी सी छा गयी
मिर्गी के मरीज़ की तरह
बेहोशी आ गयी
सब कुछ ठीक था
कसर थी बस एक
वज़न की मशीन पर
उसने सूइयां तोड़ी थी अनेक.
मैं घबराया
माँ को मनाया
तो माँ ने दूसरी को दिखाया
वह भी माँ को भली लगी
मेरे दिल पर, मगर आरी चली
कोयल सी काली
और गला जैसे ही बोला
फटे बांस का स्वर
फटा बम का गोला
माँ ने कहा, " कोयल है
कैसा सुन्दर गाती है
इस भरी जवानी में भी
ईश्वर के भजन सुनाती है ."
मैं अढ़ गया
भूख हड़ताल कर दी
माँ ने फिर भी हार न मानी
फट से तीसरी दिखा दी II

मैं घिघियाता रहा, समझाता रहा
पर माँ कहाँ मानने वाली थी
वह तो बहु के प्यार की दीवानी थी
इस बार तो हद कर दी
फ़ौरन अपनी बहन की भावज के
मायेकी में की लड़की से बात चला दी
समाचार मुझ तक पहुँच गया
मैंने कहा " बेटा
अब तू सूली चढ़ गया. "
बात हुई
सगाई के उपरांत
शादी के आसार
नज़र आने लगे
की एक भूकम्प आ गया
जब होने वाली बहु के
फोन पर फोन आने लगे.
" मैं शादी नहीं कर सकती
मेरे दिल में कोई और बसता है
मेरे अरमानो का खून मत कर
मेरा लिव-इन-रिलेशन में दिल रमता है. II"

माँ की आशाओं पर पानी फिर गया
मैं शादी करने से फिर बच गया
माँ ने शादी की बात फिर नहीं चलायी
समझ गयी थी वह
इधर कुआँ तो उधर खाई .
पर माँ तो माँ होती है ना
बहु लाने की तीव्र चाह होती हैं ना
कुछ दिन उपरांत ही
एक फोटो दिखा दी
' यह लास्ट है
मेरे फूफा के साले की साली है
बड़ी फ़ास्ट है
नाचने गाने में तेज़
गली-मोहल्ले के लड़कों की क्रेज़
मेरी बहु बनेगी
तो रौनक आ जाएगी
पड़ोस में मेरी छाती भी
गर्व से फूल जाएगी  II

मैं  घबराया
माँ को समझाया
अशांति आ जाएगी
न तेरा रौब रहेगा
न तेरी बात मानी जाएगी
घर घर नहीं रहेगा
डिस्को हो जायेगा
मुझको नचाने के साथ साथ
जब वह तुमको भी नचाएगी
छटी का दूध याद आ जायेगा II

माँ ने तो अबके ठान ली थी
मुझे कुंवारेंपन से निजात दिलानी थी
सो ........मुझ शहादत मिली
मैं शादी की वेदी पर शहीद हो गया
चाँद दिनों में ही माँ को भुला कर
बीबी के आँचल में खो गया..
माँ फिर मुझ में ढूंढ़ती रही
मेरी बचपन रुपी जवानी को
बेफिक्री से जीने की कला को
उसके सवाल
और मेरे हास्य से भरपूर
दिए गए जवाबों को
उसकी नाराज़गी
और मेरी कॉफी बना
उसको पिलाने की अदा को
मेरी माँ ढूंढ़ती रही,
तरसती रही
वह चेहरा
उसकी डांट से सहमा
हँसते हुए सजा पाने को
उसके पर्स से पैसे निकाल
मेरे सिनेमा जाने को
हर चिंता को
धुँवें में उड़ाने को
या फिर मेरी चोरी से
मलाई खाने की आदत को
ढूंढ़ती रही बस ढूंढ़ती रही
बेटे को, अपना प्यार बरसाने को
खोजती रही वह अपना लाल
जो उसने
खुद ही खोया था
फिर भी उसे न था मलाल
कम से कम
उसने
माँ होने का फ़र्ज़ तो निभाया था .
----------------------------------------
सर्वाधिकार सुरक्षित/मन की तरंग/2012/त्रिभवन कौल


1 comment:

  1. via fb/निर्झरणी भावनाओं की'
    Mona Singh
    July 17 at 6:46pm
    वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् बहुत ही सुंदर व यथार्थ चित्रण आदरणीय ।पढ़ कर आनंद आ गया󾮟󾮟󾮟󾮟󾮟󾮟󾮟󾮟

    ReplyDelete