Saturday, 20 September 2014

आती है ललाई चेहरे पर

आती है ललाई चेहरे पर
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आती है ललाई चेहरे पर
जब देख मुझे मुस्काती हो
दिल में होल सा उठता है
जब हंस कर तुम लज्जाती हो.

ऑंखें तुम्हारी कजरारी सी
ज़ुल्फ़ों में छिप छिप जाती है
बादल हो या न हो, समां में
बिजली चमक सी जाती है .

पलकों को गिरा दो शर्मा कर
घनघोर अँधेरा हो जाए
ज़ुल्फ़ों को उठा दो मुखड़े से
बरबस उजाला हो जाए.

लाल गुलाबी होंठ तुम्हारे
कमलनाल से हाथ
उर्वशी और मेनका ने देखो
खायी है तुमसे मात.

किस कुम्हार की पूजा हो तुम ?
क्यूँकर उसने तुम्हे बनाया ?
पूजा के पुष्प किसको चढ़ाऊँ
'उसको' या जिसकी यह काया.
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सर्वाधिकार सुरक्षित/ सबरंग/त्रिभवन कौल


8 comments:


  1. Meena Sood सुन्दर!

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  2. Shubhra Tandon
    Last 4 lines r so beautiful sir

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  3. Jeetesh Vaishya
    waah kya khoob sir....bahut umda....shringar ras se paripurn....

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  4. Vikas Pant
    Bht sundar....

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  5. Rameshwer Singh
    Excellent.

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  6. Maa Samta
    सुन्दर भाव

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  7. Aparna Pathak
    wow awesome..!

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