शिक्षक दिवस (05-09-2014) को समर्पित
गुरु शिष्य की यही परम्परा, शिष्य पाये गुरु दे ज्ञान
लक्ष्य साधे मत्स्य चक्षु पर या करे फिर अंगूठा दान
गुरु महिमा गाये क्या कोई,गुरु बिन गति कभी ना होई
विवेकहीन, अज्ञानी- अनाड़ी , गुरु संग होय सुजान
विवेकहीन, अज्ञानी- अनाड़ी , गुरु संग होय सुजान
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सर्वाधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल
Pradduman Chaturvedi 3:10pm Sep 3
ReplyDeleteWah Wah.Atyuttam Srajan Sir Ji.
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Yashodhara Singh 3:35pm Sep 3
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
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रामकुमार चतुर्वेदी 3:48pm Sep 3
ReplyDeleteवाह सुंदर,लाजवाब, भावपूर्ण रचना के लिए बधाई
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Prem Bihari Mishra 4:56pm Sep 3
ReplyDeleteविवेकहीन, अज्ञानी- अनाड़ी , गुरु संग होय सुजान
सुन्दर सृजन त्रिभवन कौल जी
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Chanchala Inchulkar Soni 7:23pm Sep 3
ReplyDeleteअति सुन्दर ,सार्थक सृजन ....नमन
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Man Mohan Barakoti 7:30pm Sep 3
ReplyDeleteअति सुन्दर। .................. साधुवाद। सादर नमन।
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Shyamal Suman 8:10pm Sep 3
ReplyDeleteसार्थक संदेश और सृजन
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Shashi Purwar 10:32pm Sep 3
ReplyDeleteगुरु शिष्य की यही परम्परा, शिष्य पाये गुरु दे ज्ञान
लक्ष्य साधे मत्स्य चक्षु पर या करे फिर अंगूठा दान
गुरु महिमा गाये क्या कोई, गति शिष्य की गुरु बिन न होई
विवेकहीन, अज्ञानी- अनाड़ी , गुरु संग होय सुजान
वाह वाह बहुत खूब , सुन्दर चित्रण किया है आपने हार्दिक बधाई
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प्रो. विश्वम्भर शुक्ल 9:49pm Sep 3
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक अभिव्यन्जना ,नमन आपकी लेखनी को _
गुरु शिष्य की यही परम्परा, शिष्य पाये गुरु दे ज्ञान
लक्ष्य साधे मत्स्य चक्षु पर या करे फिर अंगूठा दान
गुरु महिमा गाये क्या कोई, गति शिष्य की गुरु बिन न होई
विवेकहीन, अज्ञानी- अनाड़ी , गुरु संग होय सुजान
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Chhaya Chaturvedi 12:45am Sep 4
ReplyDeletewah sunder
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Veena Nigam 4:06am Sep 4
ReplyDeleteअत्यंत शुचित रचना ,गुरु प्रदत्त ज्ञान ही उच्च कोटि का सृजन ,लक्ष्य प्राप्त करता है ...... गुरु शिष्य की यही परम्परा, शिष्य पाये गुरु दे ज्ञान
लक्ष्य साधे मत्स्य चक्षु पर या करे फिर अंगूठा दान
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Fanindra Kumar 7:49am Sep 4
ReplyDeleteगुरु महिमा गाये क्या कोई, गति शिष्य की गुरु बिन न होई
विवेकहीन, अज्ञानी- अनाड़ी , गुरु संग होय सुजान ................वाह ! अति सुन्दर रचना हुई है साहब. बहुत बधाई.
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Anoop Raina 10:52am Sep 5
ReplyDeleteगुरूर ब्रह्मा गुरूर विष्णु, गुरूर देवो महेश्वरा, गुरूर साक्षात परब्रह्मा, तस्मै श्री गुरवे नमः..
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Ramkishore Upadhyay 10:48am Sep 5
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मुक्तक में गुरु महिमा व्यक्त की है आपने , बधाई
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Ishaan Dafauti 11:01am Sep 5
ReplyDeleteKya baat h Sir
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Irfan Ali Khan 11:14am Sep 5
ReplyDeletebahut badhiya
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Vijay Varma Ajanabee 4:09pm Sep 5
ReplyDeleteएकलव्य HERE गुरु जी
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Shubhda Bajpai 5:06pm Sep 5
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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Neha R. Krishna 12:45am Sep 6
ReplyDeletebahot badiya!
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