Friday 11 November 2016

कविता, उद्देश्य और मोक्ष II

कविता, उद्देश्य और मोक्ष
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कविता का उद्देश्य क्या होना चाहिए और यह कैसे प्राप्त किया जा सकता है?? यह मोक्ष या कुछ और है?

 इन प्रश्नों के उतरप्राप्ति के लिए हमें यह जानना अति आवश्यक है कि कविता या काव्य क्या है और इसकी शक्ति क्या है।  इन प्रश्नों का उत्तर शायद एक साधारण पाठक के पास हो सकता है और नहीं भी पर बात जब रचनाकारों की आती है तो कुछ सोंचने को मजबूर होना ही पड़ता है।  उद्देश्य, उद्देश्य ही होता है चाहे वह मुख्य हो, परम हो या गौण हो।  सो मैं यहाँ कविता के उद्देश्य की बात ही करूंगा जो सर्वमान्य हो सकता है और नहीं भी। 
यद्दीपी भिन्न भिन्न साहित्यकारों के इन प्रश्नों   पर भिन्न भिन्न विचार हो सकते हैं पर मेरी दृष्टि  मैं  काव्य या कविता वह है जो एक नवजात के कानो में मन्त्र स्वरूप फूँका जाता है, या वह जो एक माँ लोरी के रूप में अपने बच्चों को सुनाती है या वह जो कभी प्रार्थना रूप में, कभी गीत के रूप में बच्चों को अध्ययन अवस्था में श्रवण करने को मिलता है, या वह जो लोक गीत के रूप में हर प्रदेश की समृद संस्कृति और  सांस्कृतिक  धरोहर का गुणगान करता है, या वह जो इस आधुनिक युग में आधुनिकता के नाम पर चलचित्रों, दूरदर्शन, टेबलेट, स्मार्टफोन के माध्यमों से हमारे सामने परोसा जाता है I
कहने का तात्पर्य यह है के कविता का वास्तविक उद्देश्य मानव जाती को  काव्य की रसानुभूति कराना है जो   हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक रहती है I काव्यात्मक अनुभूति प्रत्येक मनुष्य में होती है. यह एक ईश्वरीय देन है I श्रवण और श्रव्य के एक ऐसी व्यवस्था जो मन को उल्लास और ख़ुशी प्रदान करती है और करती रहेगी I  पुरुष हो या स्त्री , हर किसी का काव्यमय होना उसके स्वभाव में निहित है जो कविता, गीत, छन्द, भजन आदि के रूप में मुखरित होता है और हमारे मनोरंजन, ज्ञानवर्धन का साधन  तो बनता ही है हमारी त्रासदियों से, कुंठाओं से, तनावों से भी हमको मुक्त कराता है I

रहा सवाल यह उद्देश्य कैसे प्राप्त किया जा  सकता है तो कविता को हमें भावनात्मक और वैचारिक दृष्टि से परखना होगा।  कविता  अगर केवल भावनात्मक हो या केवल वैचारिक तो पाठक शायद उतना आकर्षित हो जितना की उस प्रस्तुति में जंहाँ दोनों का समावेश हो।   कोरी भावनात्मकता  या कोरी वैचारिकता काव्य शक्ति को क्षीण ही करती है।  दोनों की संतलुनता ही एक कविता का उद्देश्य को पूरा करती है।
मनुष्य स्वभाव वश भावनात्मक है और वैचारिक भी I कभी कभी उसको ऐसी परिस्तिथियों का सामना करना पड़ता है कि वह अपने आप को असहाय महसूस करने लगता है I तनावग्रस्त मनस्तिथि में काव्य अगर उसके तनाव को दूर करने की क्षमता रखता है तो काव्य की यह एक उपलब्धि ही कही जाएगी और यही कविता का उद्देश्य होना चाहिए।  तनाव वह नहीं जो एक साधारण व्यक्ति घर के अंदर बाहर झेलता है अपितु वह तनाव जो भारत की सीमा पर शहीद सिपाही हेमराज के सर कलम करने पर होता है I तनाव वह जो निर्भया के नृशंस बलात्कार के उपरांत उत्पन होता है I तनाव वह जो आम आदमी की बेचारगी और दुर्दशा पर उभरता है I तनाव वह जब कोई मनुष्य खुद को ढूंढने निकलता है I तनाव वह जब नारी को अपनी शक्ति का बोध नहीं होता I तनाव वह जब समाज रूढ़िवादी तरीके अपनाता है I

तनाव आधुनिक जीवन का पूरक बन चुका और काव्यप्रेरणा, काव्यशक्ति, काव्यश्रवणता और काव्यश्रव्यता उस तनाव से मुक्ति दिलाने वाली विषहर औषधि. आखिर क्यों हो ? दिलोदिमाग के तहखानों में सिमटी हुई भावनाएं जब एक विचार लिए लिखित रूप में दैनिकियों में उतर आती हैं और फिर छोटी छोटी काव्य गोष्ठिओं में, कवि सम्मेलनों में, परिचर्चाओं के माध्यम से लोगों तक, पाठकों तक पहुँच जाती हैं तो अनायास ही  कवि और पाठक दोनों उस प्रस्तुति की रसानुभूति से सराबोर हो कर तनाव रहित हो जाता है यही मेरे अनुसार कविता का प्रमुख उद्देश्य है।
जब यही तनाव यथार्थ और सत्य को परिभाषित करती काव्यधारा के रूप में स्फुटित हो कर निकलती है तो एक निर्झरणी के समान पाठकों को काव्यरस में सराबोर करने के क्षमता रखती है, उन्हें  सोचने पर मजबूर करती है. यही काव्यशक्ति है. यही काव्य की महानता है यही उसका परम उद्देश्य है। 

अब हम प्रश्न के दुसरे भाग पर आते हैं।  कविता मोक्ष है या कुछ और ? पहले तो यह समझना होगा की मोक्ष है क्या ? मोक्ष का अर्थ अगर जीवन की समाप्ति यानी सांसारिक बंधंनो से छुटकारा समझ जाए तो यह सरासर गलत होगा।  मोक्ष को कर्म से जोड़ कर देखिये तो जब भी किसी कर्म करने के फलस्वरूप हमको आनंद या परमानंद की प्राप्ति होती है मेरी नज़रों में वह ही सही अर्थों में मोक्ष है। मर कर किस मृतक को अनुभूति होती है कि मृतक को मोक्ष मिला कि नहीं।  सांसारिक जीवन को जी कर आनंद को प्राप्त करने में, आनंद की अनुभूति कराने में ही मोक्ष निहित है ना कि मृत्यु को प्राप्त होना ,और कविता उस मोक्ष को प्राप्त करने का साधन बन सकती है। सृजन ईश्वर का प्रसाद है।  लेकिन  सृष्टि में समाये सभी जीव -अजीव , समाज, देश, प्रकृति आदि  के प्रति संवेदनशील  हो अपनी अनुभूतियों की परख का आंकलन कर कविता में ढाल कर सुख प्राप्ति और सुखदान की प्रवृति ही सच्चे मायनो में मोक्ष है। यथार्थ के धरातल पर संवेदनात्मक अनुभूति लिए , सत्य को प्रज्जवलित करती हुए कविता का सृजन जो सभी को एक ऐसा आनंद प्रधान करे जो सत्यम , शिवम् ,सुंदरम की आलोकिक रसधार प्रधान करे वह कविता ही सही अर्थों में मोक्षदायनी कविता है।
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