आम
आदमी की कवितायें
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“गाँधी जी के तीन बंदर
तीनो मेरे अन्दर
कुलबुलाते हैं
बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो
पर देखता हूँ, सुनता हूँ, कहता हूँ. क्यों ?
क्यूंकि मैं एक आम आदमी हूँ”
कवि
त्रिभवन कौल की उपर्युक्त पंक्तियाँ उनकी कविताओं का घोषणा पत्र सरीखी हैं। प्रत्येक साहित्य- सिद्धान्त , नैतिक व आदर्शवादी
सीमाओं से परे जा कर आम होते हुए भी अपना अस्तित्व तलाशती यह कवितायें निश्चित रूप
से मुक्तिबोध की पंक्तियों का पुनः उद्घोष करती जान पड़ती हैं।
"विचार
आते हैं
बच्चों
की नेकर फचीटते
मरते
हुए सांप , पिछवाड़ा "
मुक्तिबोध
के उलट यह आम आदमी कवि त्रिभवन कौल का शिल्पगत वैशिष्ट्य है जिसका उत्स कवि के कथन
में ' मैं साहित्यकार होने का दावा नहीं करता ' से फूटता प्रतीत होता है। 'मन ', 'कबाड़ीवाला ', 'बस ','बेबसी ', 'रमणीय' तथा
'दुख' इस संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कवितायें हैं।
जिसमे कवि एक आम आदमी की तरह पाठक को अपनी अनुभूतियों से साक्षात कराता है।
कवि
में उन्नत वैचारिकी का आभाव नहीं , अनुभूति की वह गहराई भी है जो सर्वकालिक साहित्य
चेतना को गहरे प्रभावित कर सके और अभिव्यक्ति की वह ऊंचाई भी जो पाठक को चमत्कृत कर
दे। ' बेबसी ' शीर्षक कविता में कवि की रचनात्मक
संवेदनशीलता एक प्रतीमा का क्या ही सुंदर मनोविश्लेषण प्रस्तुत करती है।
“आधी अधूरी प्रस्तर की प्रतिमा को
डर नहीं लगता अब
छेनी और हथोड़े से
डर लगता है तो शिल्पी के मनोस्थिति से”
हिंदुस्तानी
भाषा अकादमी, दिल्ली से प्रकाशित कवि त्रिभवन कौल रचित ' बस एक निर्झरणी भावनाओं की
' शीर्षक यह संग्रह विशाल हिंदी परिक्षेत्र
में अपनी अलग पहचान कायम करे , इन्ही शुभकामनाओं सहित।
जय
कृष्ण शुक्ल
लेखक,कवि,
व्यंग्यकार, और सपांदक
पदरौना
(उ प्र )
17-11-2016
Bas
Ek Nirjharni Bhawnaon Ki (Hindi) available with:-
_/\_दोस्तों
पुस्तक उपलब्ध है :- प्रकाशक :- हिंदुस्तानी भाषा अकादमी , 3675 , राजापार्क, रानीबाग़
, दिल्ली -110034 या अमेज़न डॉट इन (amazon.in) पर I
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