श्रृंगार रस की
एक कविता प्रेषित
है
अभिलाषा (श्रृंगार रस )
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कंधों पर लटकी
गुते तेरी
ऊरोजों को छूती
ऐसे
सावन का बादल,
पर्वत की
चोटी को छूता
हो जैसे.
चंचल से नयन
तीखी चितवन
अधरों पर प्यासी
मुस्कान लिए
तस्वीर तेरी बनती
है ऐसे
प्रेम की देवी
पास मेरे.
नाभी क्या, फूल कमल
सा
सोंदर्य बढ़ता कर्णफूल भी
कामदेव की रति,
कहूँ तुम्हे
या कहूँ तुम्हें
मंदाकनी
पग में पायल
झंकार सहित
चल श्रृंगार बढ़ाता है
बदन लचीला कोमल सा
पवन संग उड़ता
जाता है.
प्यार सही, नहीं
वासना
न तृष्णा का बोध
मुझे
सदा रहो सपनो
में मेरे
इतना है अनुरोध
तुझे
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सर्वाधिकार
सुरक्षित/ सबरंग/त्रिभवन कौल
अरुण शर्मा 4:41pm Sep 21
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह् बेहतरीन श्रृंगारिक रचना आदरणीय ।
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DrArchana Gupta 4:33pm Sep 21
वाह्ह्ह्ह् बहुत सुन्दर रचना आदरणीय
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Pradeep Sharma 4:09pm Sep 21
लाजवाब ,सुंदर
via fb/YUSM
Ramkishore Upadhyay 5:18pm Sep 21
ReplyDeleteप्यार सही, नहीं वासना
न तृष्णा का बोध मुझे
सदा रहो सपनो में मेरे
इतना है अनुरोध तुझे== श्रंगार ..सौदर्य से सजी ,,,,,,,,,,,,अति सुन्दर
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Om Prakash Shukla 5:08pm Sep 21
सुन्दरतम् सृजन आदरणीय
सादर अभिनन्दन है
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Pandey Kc 5:06pm Sep 21
सुदर रचना।
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Rajmishra Mishra Raj Pbh 5:59pm Sep 21
ReplyDeleteवाह अनुपम सृजन आदरणीय जय माँ शारदे--------
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Kailash Nath Shrivastava 5:47pm Sep 21
सुनदर मधुर भाव की रचना
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Dogendra Singh Thakur 5:23pm Sep 21
अति सुन्दरतम सृजन सर
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Surendra Shrivastava 6:47pm Sep 21
ReplyDeletewaah
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Chanchlesh Shakya 6:37pm Sep 21
सुन्दरतम्… सृजन
सादर नमन…
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Pramila Pandey 6:15pm Sep 21
अति सुनदर
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गुप्ता कुमार सुशील 8:22pm Sep 21
ReplyDeleteवाह्ह क्या बात है आदरणीय .........बेहतरीन , वाकई उम्दा पेशकश , सादर नमन |
via fb/YUSM
Comment on fb/PSOI on 14 February,2018
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Bahot hi sunder...!
H V D.
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Rajeshwer Sharma 10:51pm Feb 14
मौसम प्यार का है
प्यार का इज़हार हो जाये।
सावन तो है दूर
प्यार की बरसात हो जाये।