हास्य परोसें बेहुदा, जब तब कवि मंचीय
काव्य साहित्य दांव पर, दशा क्यों सोचनीय
टीवी कवि को देख कर, होता मन को रंज
कवि गरिमा कैसे बढ़े, स्थिति बड़ी दयनीय
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फूहड़ हास्य परोसें टी वी व मंचीय कवि
साहित्य गरिमा दांव पर, ग्रहण में है रवि
कृष्ण ने जैसे असफल, किया था चीर हरण
काव्य मनीषी माथा ठोके, कैसे बचाये छवि
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल
via fb/ ट्रू मीडिया साहित्यिक मंच.
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Kviytri Pramila Pandey 3:39pm Apr 10
वाहहहहह अतिसुंदर
सामयिक,, सार्थक
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Santosh Kumar Sharma
April 10 at 2:31pm
Behtareen
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Deepika Maheshwari
April 10 at 6:00pm
Lajavaab...
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Suresh Pal Verma Jasala 5:46pm Apr 10
सही कहा आपने आदरणीय
via fb/आगमन ...एक खूबसूरत शुरुआत
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Neelam Sahu 9:33pm Apr 10
प्रणाम sir
और हम सोच रहे थे ये देख सुन कर कि हम चलन से बाहर हो गए ।
आत्मबल प्रदान करने के लिये शुक्रिया।
your post.
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Jagdish Sharma
April 10 at 10:08pm
सत्य कहा सर
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Kamal Kant Sharma 5:46pm Apr 10
जी वास्तविक हालात का वर्णन किया हैं आपने ।
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Umesh Srivastava
April 11 at 9:46am
वाह-वाह क्या बात कही है आपने
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Gangesh Gunjan
April 10 at 8:42pm
बढ़िया
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वसुधा कनुप्रिया 5:46pm Apr 10
अभी तक अपना पाला ऐसे कवियों/मंचों से नहीं पड़ा लेकिन टीवी पर अवश्य देखा है ऐसा फूहड़ हास्य
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वसुधा कनुप्रिया 1:31pm Apr 13
Tribhawan Kaul जी, नाम लेना उचित नहीं होगा पर टीवी पर बहुत से चुटकुलेबाज़ छाये हुए हैं । हास्य कविता के नाम पर अभद्रता परोसते हैं । सादर
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Tribhawan Kaul 11:50am Apr 13
खुद लिखने की औकात नहीं और दूसरों के लेखन पर पैरोडी कहते हैं। :)
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DrAtiraj Singh 11:49am Apr 13
सच में आदरणीय .....शर्म आती है कवि कहते हुए....नमन आपको !
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Karunanidhi Tiwari 11:50am Apr 13
बड़ी ही अच्छी चतुष्पदी
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Shailesh Gupta 1:31pm Apr 13
सार्थक....सृजन.... !....
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Rajesh Srivastava 1:31pm Apr 13
सत्य कथन है आपका आदरणीय, स्थिति भी कुछ एेसी है कि सामान्य श्रोता भी यही सब पसन्द कर रहा है, उसे कविता के नाम सिर्फ मनोरंजन चाहिए, तालियाँ और वाहह वाहह भी उन्ही को मिलती है नौटंकी के पात्र की तरह भाव भंगिमा के साथ काव्य पाठ करे,