वह दिन याद आते
हैं
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वह दिन याद आते
हैं, जब वह मुस्कुराती थी
कमल खिलते थे
यूँही, जब वह गुनगुनाती थी
साये में प्यार
के उसके जिया, आज तक इश्वर
मेरे आहट सुनते
ही, पायल झनझनाती थी ।।
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नहा कर जब निकलती
थी, चंदा पास आता था
बालों का छिटकना
यूँ, सावन रास आता था
रूहानी प्यार था
उसका, समझता तू भी है ईश्वर
जाऊं जो दूर भी
उससे, तो उसको त्रास आता था ।।
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ख़ुशी चाहती थी वह
मेरी, बस मेरा गम लेकर
प्रकाशित करे
मेरा जीवन, बस मेरा तम लेकर
कभी समझा नहीं
सदनीयत, अब क्या कहूँ ईश्वर
जी रहा हूँ मैं
अब तक, केवल अपना भ्रम लेकर ।।
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पास उसके रह कर
भी, मैं अनजान रहता था
न वह बात करती थी, न मैं ही बात करता था
अहं ने मारी
कुंडली, क्या बताऊँ तुम्हे ईश्वर
न मुझको वह समझती थी, न मैं उसको
समझता था ।।
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अहं शह एक ऐसी है, धुरंधर पस्त होते हैं
मोहोब्बत चीज़ ही
क्या, पुरन्धर त्रस्त होते हैं
अहं ना हो इंसा
भी, तेरा ही रूप हो ईश्वर
बचे जो अहं से
त्रिभवन सारे मस्त होते हैं ।।
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सर्वाधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल