कश्मीर की संत
कवि 'लल्लेश्वरी’
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“लल भ द्रायस
लो लरे, छंIडान लूसुम
दोह तय रात ,
पंडित वुछुम पनने गरे, सुय मे रोटमय
तिशतुर त साथ
II
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लल्लेश्वरी
(मैं दीवानी, पिय की मतवाली
, दिन और रात उसी की खोज
में रही और अंत
में मैंने पाया कि पंडित
(पिय/ ईश) तो मेरे
पास ही मेरे घर में
है I मृग की कस्तूरी
की जिज्ञासा समाप्त हो गयी
और मैं उसी में लीन हो गयी)
I
भारत देश के जम्मू
कश्मीर राज्य में 'कश्मीर' संसार के एक
प्रमुख पर्यटन क्षेत्र के रूप
में जाना जाता है I पर इसका एक और
रूप भी है जो
ज्ञान, दर्शन, योग, शैवमत और कश्मीरियत
को समर्पित रहा हैI एक
तरह से कहा जाये तो कश्मीर
आध्यात्मिकता
और दार्शनिकता का गढ़ रहा
हैI इसी
श्रेणी में संत कवि लल्लेश्वरी का नाम
कश्मीरी अध्यात्म एवं साहित्य में शीर्षस्थ स्थान पर आता
हैI लल्लेश्वरी
तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी की कश्मीर
को एक ईश्वरीय देन कहें तो कोई
अतिशयोक्ति
नहीं होगी I लल्लेश्वरी ने शैव
दर्शन, योग दर्शन, और श्रीमद
भगवत गीता के ज्ञान
में सराबोर होकर जिस प्रकार से अपनी
अनुभूतियों
को, अपनी भावनाओं को अपने
'वाखों' (वचनो/छंदों/वाक्यों) को अपनी
वाणी द्वारा सर्वप्रथम कश्मीरी भाषा में ही योग
मार्ग, मानव बन्धुता और समदर्शिता
का प्रचार किया,
उससे कश्मीरी साहित्य प्रज्जवलित ही नहीं
हुआ है अपितु कश्मीरी जनमानस के मन
में बस गया हैI कालान्तर में इन 'वाखों'
को लिपिबद्ध कर लिया
गया जो 'ललवाख' के नाम
से कश्मीर के कश्मीरी साहित्य
में उच्चतम स्थान रखतें हैं। यथा:-
परून
पोलुम अपोरूय रोवुम,
केसर वन् वोलुम रठिथ शाल।
परस वनुम त पानस
पोलुम ,
अद गोम
मोलूम त जीनिम हाल।
(जो पढ़ा उसका पालन किया, जो पढ़ने
में नहीं आया उसको खो दिया। मैंने
वन से सिंह को सियार
के तरह पकड़ कर काबू
किया , जो शिक्षा मैंने औरों को दी
उसका स्वयं पालन किया तब जा
कर मुझे ज्ञान प्राप्ति हुई और मैंने
लक्ष्य साध लिया।)
लल्लेश्वरी के जन्म
और मृत्यु के समय
के बारे में निश्चित रूप से पता
नहीं I लल्लेश्वरी का जन्म के विषय
में इतिहासकारों की दो राय
हैं I कुछ इतिहासकार मानते हैं कि सन्
1335 में राजा उदयन देव के राजकाल
में श्रीनगर से तीन
मील दूर पांद्रेठन नामक गावं में एक कश्मीरी
ब्राह्मण के घर हुआ
जबकि कुछ का कहना
है कि लल्लेश्वरी का जन्म
सुलतान अलाउद्दीन के कार्यकाल (1348-1360) में हुआ I इनके असली नाम का भी
पता नहीं पर विवाह
उपरांत इनको पज्ञIवती के नाम
से भी जाना गया
I इनकी
मृत्यु अनुमानत बिजबहारा नामक गांव में वृद्धावस्था में प्रतिमा-ध्वंसक सिकंदर(1394-1417) के कार्यकाल में हुई. इनके जन्म और मृत्यु
तिथियां हमेशा से ही
इतिहासकारों
के शोध का विषय
रहे हैं I
यदि मीरा के भजन
और कबीर की वाणी
भारतीय जनमानस को भक्ति
विभोर कर देती है तो
ललवाख चिंतन-मनन ,ज्ञान-दर्शन, समदर्शिता, मानव सेवा को प्रेरित
करते हैं। इस
महान संत कवियत्री ने कश्मीर
के जनमानस के हृदय
में वह स्थान बना लिया कि हिन्दू
और मुसलमान समुदाय उनको प्रेम और भक्ति भाव से लल , लला , ललधयद, लल आरिफा
, ललमज् , ललयोगेश्वरी के नाम से पुकारने
लगे I
यह संयोग
की, योगानुयोग की बात नहीं तो और
क्या है। ईश्वर के सर्वभूत/
हर जगह
होने की बात से सिखों
के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी(1469-1539) ने
मक्का में अपने शिष्यों को /साधकों
को अवगत कराया था. योगनी
लल्लेश्वरी
(1335/1348-1417) ने
भी ईश्वर
के जगदीश्वर होने के सत्य
से अपने ही गुरु
को अवगत कराया था I :-
एक बार
लल्लेश्वरी
को लघुशंका की तलब
लगी तो वह पास
के मंदिर में चली आईं।
मंदिर में उनके गुरु सिद्ध श्रीकंठ जी शालिग्राम पूजा
कर रहे थे।
लल्लेश्वरी
को देख कर उनके
आने का कारण जब जाना
तो लल्लेश्वरी को मंदिर से बाहर
जाने को इशारा करते हुए कहा कि मंदिर
में लघुशंका करना पाप है।
लल्लेश्वरी
ने कहा, " मुझे वह जगह
बताएं जहाँ मैं
लघुशंका कर सकूं " गुरु ने उनको
मंदिर के बाहर एक जगह
दिखा दी. लघुशंका करने से पहले
,लल्लेश्वरी
ने उस जगह से मिटटी
हटाई तो शालिग्राम
निकल आये। दूसरी
जगह दिखाई तो वहां
भी शालिग्राम निकल
आये।
लल्लेश्वरी तब बोली
:-
दीव वटा दीवर वटा,
प्यठ बोन छूय अख वाट
I
पूज कस करख
हतो बटा ,
कर मनस
त पवनस संघाट II
=============देव भी पथ्थर
है और दीवर (मंदिर) भी पथ्थर। ऊपर
नीचे एक ही स्थिति है।
हे पंडित तू किसकी
पूजा करेगा। मन
और प्राणो को एक
साथ मिला दे।
ऐसे कई प्रकरण
इतिहासकारों
द्वारा लिपिबद्ध किये गए हैं
जो लल्लेश्वरी की अलौकिक शक्ति दर्शाते हैं I बचपन से ही
लल्लेश्वरी
का रुझान अध्यात्म की और
रहाI शैवमत का तो
उस पर बहुत प्रभाव रहाI बाल विवाह कश्मीर में भी प्रचलित
थाI लल्लेश्वरी का विवाह भी बचपन
में श्रीनगर से लगभग
8 मील दूर केसर के बागों
के लिए प्रसिद्ध पम्पोर में एक कश्मीरी
ब्राह्मण परिवार में हुआ I ससुराल में लल्लेश्वरी ने अत्यन्त
ही कष्टदायक जीवन बिताया I
उसको समय समय पर प्रताड़ित
किया जाता I पर लल्लेश्वरी
की सहनशक्ति कमाल की थी
I यथा:-
आमि पनं सोदरस नावि छयस लमान,
कति बोजि दय म्योन
मयति दियि तार I
आम्यं ताक्यं पौंण ज़न शमान
जुव छुम भ्रमIन घर
गछ हा
II
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(सागर में मैं कच्चे धागे से नैया
खींच रही हूँ.
काश ! ईश्वर मेरी सुन ले और
मुझे भी पार लगा दे . मेरी
दशा उस कच्चे मिटटी के बर्तन
जैसी है जो पानी
चूसता रहता है . मेरा
जी चाहता है कि
मैं अपने घर (स्वधाम
) को चली जाऊं)
लल्लेश्वरी, पानी भरने के बहाने
जा जा कर तप
और जप में लीन होने लगी I दंतकथा है के
उसकी अलौकिक शक्ति का आभास
सबको तब हुआ जब उसके
संवेदनाशून्य
पति ने अपनी माता यानि लल्लेश्वरी की सास
के कहने पर पानी
भर कर ला रही
लल्लेश्वरी
के सर पर रखे
मटके को पत्थर दे मारा
I मटके में दरार तो पड़
गयी पर पानी बिलकुल नहीं गिरा I
उसने उस मटके के पानी
से घर के सारे
मटके , बर्तन इत्यादि भर दिए
और फिर घर से
बाहर आ कर मटके
को एक गड्ढे में फेंक दिया I तुरंत ही वह
गढ्ढा एक बावली में बदल गया I उस बावली
को नाम
ललनाग/लल त्राग के नाम
से पुकार जाने लगा I आखिरकार ससुराल की यातनाओं
से तंग हो कर,
उसने गृहस्थी के सारे
बंधन तोड़ कर, मीरा
की भांति जप-तप
में लीन हो ज्ञान,
और योग के मार्ग
पर निकल पड़ीI
हर दिन
लल्लेश्वरी
की अध्यात्म की, ज्ञान
की, योग की भूख
बढ़ने लगी I लल्लेश्वरी ने कश्मीर
के प्रसिद्ध सिद्ध श्रीकंठ, जिनको आदर से और
प्यार से
सिद्धमोल भी पुकार जाता था उनसे कश्मीर
शैवधर्म की दीक्षा ली थी
. सूफी संत शाह हमदान और नुंद
ऋषि उनके समकालीन ज्ञानी और जीवन
दर्शन में माहिर थे जिनसे
वह प्राय धार्मिक मान्यताओं पर , व्यवहार
पर, परमार्थ पर चर्चा
करती I दिव्यानन्द प्राप्त होते ही वह
अलौकिक तेज से भरपूर
, लोक लाज तज कर निवस्त्र
हो, दुनिया के आचार
विचार से बेसुध अपने 'वाखों' को गाती
फिरती, आपसी प्यार-भाईचारा, ईश्वर की एकरूपता,
सर्वव्यापकता
और समदर्शिता का प्रचार करती गावं गावं घूमने लगी I यथा:-
पर ताय
पान यमि सोम मोन,
यमि हा मोन
दन क्यो राथ
यमिसई अद्व्य मन सांपुन
तमी डुंयूठुय सुर-गुरुनाथ
(जिसने अपने पराये को समान
माना, जिसने दिन और रात
में समदृष्टि अपनाई , जिसका मन द्विधा
रहित हुआ, उसीने परमशिव के दर्शन
किये.)
मीरा अगर भगवान् कृष्ण की सगुण
रूप की
दीवानी थी तो लल्लेश्वरी
ईश्वर के निर्गुण रूप की आराधना
में लीन रहीI
उनके बोले /गाये गए ' वाख'
साहित्यकारों की
दृष्टि में
कबीर की वाणी के बहुत
ही करीब है I समय
समय पर लल्लेश्वरी के वाखों
का संकलन और अनुवाद
करने में जिन इतिहासकारों एवं साहित्यकारों का कश्मीरी
साहित्य में योगदान रहा है उनमे सर
रिचर्ड टेम्पल, सर जॉर्ज
ग्रियरसन , पंडित आनन्द कौल , पंडित जानकी नाथ भान , पंडित सर्वानंद चरागी, श्री शशि शेखर तोषखानी
और पंडित शंभू नाथ भट्ट 'हलीम' इत्यादि शामिल हैं I श्री शशि शेखर तोषखानी के अनुसार
:- "लल्लेश्वरी
की प्रतिभा सार्वदेशिक और सार्वकालिक
है I उसका सन्देश 'बहुजनहिताय' है . कश्मीरी
काव्य में यह अपनी
उक्ति की सबलता, उपमानों की लघुता
और गम्भीर अंतर्दृष्टि तथा मनुष्य की आत्मा
के वातायन खोलने की शक्ति
के लिए अद्वितीय है . आज
भी लक्ष लक्ष कश्मीरी जनता उनके वाक्यों को गाती
रहती है."
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त्रिभवन कौल
Image curtsy google.com (http://www.koausa.org/KashmiriGems/LalDed.html
डॉ किरण मिश्रा
ReplyDeleteमाँ लाल्लेश्वरी की कृपा आप की कलम पर बनी रहे। आमीन ।
May 15 at 11:56am
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Ramkishore Upadhyay
ReplyDeleteअति सुन्दर लेख । लल्लेश्वरि भगवान शिव की वह आत्मा थी जिसने मानव देह पाकर कल्याण के लिये उच्चतम सिद्धि को प्राप्त कर मानव को समर्पित कर दिया । ऐसी अलौकिक शक्ति को नमन...आज के दूषित वातावरण में उन्ही के उपदेशों पर चलने की ज़रूरत हैं । ओम नम: शिवाय
May 15 at 12:07pm
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Om Prakash Shukla
ReplyDeleteसार्थक आलेख और जानकारी साझा करने के लिए आभार आदरणीय कौल साहब
May 15 at 12:20pm
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Shiben Raina
ReplyDeleteयह लिंक भी पढ़ें
May 15 at 12:25pm
http://rsaudr.org/show_artical.php?&id=2923 http://www.himalayauk.org/dr-shiban-krishan-raina/
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Shwetabh Pathak
ReplyDeleteMay 15 at 12:30pm
बहुत ही सुन्दर आलेख ! मीरा जी जैसी एक और महान विभूति , संत , भगवत्प्रेमी से परिचय करवाकर आपने अत्यंत ही पुनीत कार्य किया है ! इनके जीवन चरित्र पढने मात्र से ही भावावेश की उत्पत्ति होती है ! धन्य है ऐसी कश्मीर भूमि जहां ऐसे प्रभुप्रेमी ने अपनी लीला हेतु चुना ! बहुत बहुत धन्यवाद आपका इस अद्भुत एवं मनोरम आलेख के लिए !
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Sunil Raina
ReplyDeleteMay 15 at 1:32pm
Tribhawan Kaul Ji thanks for sharing. Beautiful explanation
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Ramesh Rai
ReplyDeleteMay 15 at 3:28pm
हमारी भारतीय दर्शन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ईश्वर को सर्वोंव्यापि है Thanks and Regards.
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Suresh Pal Verma Jasala
ReplyDeleteMay 15 at 3:44pm
आदरणीय हार्दिक धन्यवाद ,,,,,सुन्दर भावाभिव्यक्ति
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Rose Angel Rajshree Kaul
ReplyDeleteMay 15 at 4:22pm
बहुत सुन्दर । लल्ल द्यद् और माँ शारिका की कृपा हम सब पर हर हमेशा रहे ।
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Mona Singh
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह् अति सुंदर लेख आदरणीय
May 15 at 12:24pm
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Sudarshan Sharma
बहुत सुन्दर ।इनके बारे में पढ़ा था , लेकिन इतने विस्तार से नहीं । शुक्रिया।
May 15 at 1:44pm
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Sudarshan Sharma
बहुत सुन्दर ।इनके बारे में पढ़ा था , लेकिन इतने विस्तार से नहीं । शुक्रिया।
May 15 at 1:44pm
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Sudarshan Sharma
बहुत सुन्दर ।इनके बारे में पढ़ा था , लेकिन इतने विस्तार से नहीं । शुक्रिया।
May 15 at 1:44pm
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Nidhi Popli
Sundar lekh...
Inhi ko Lalla Ded ke naam se bhi jaana jaata hai na ?
May 15 at 3:39pm
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एक लेखक विवेक चौहान
ReplyDeleteएक लेखक विवेक चौहान
वह्ह्ह्ह्ह्ह् अति सुन्दर उपदेश पूर्वक
May 15 at 11:03pm
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गुप्ता कुमार सुशील
गुप्ता कुमार सुशील
वाह्ह वाह अ बेहतरीन अभिव्यक्ति स्वागत है उम्दा लिखा आदरणीय..सार्थकता लिए |
May 16 at 1:13am
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Kamlesh Kumar Verma
ReplyDeleteवरदान
May 15 at 3:21pm
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Rajiv Nayan
ReplyDeleteइतिहास के असंख्य पन्नों पर गर्दो-गुबार के ढ़ेर हैं।असंख्य नायक-नायिकाएँ गुमनाम हैं।जितना श्रेय उन्हें मिलना चाहिए था,नहीं मिल पाया है।आपका प्रयास सराहनीय है।
May 15 at 12:16pm
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Pramila Pandey
बहुत खूब
May 15 at 1:23pm
-----------------------via Vishw Hindi Sansthan
Neelam Shah
ReplyDeleteMay 20 at 5:34pm
अति सुन्दर लेख । ऐसी अलौकिक शक्ति को नमन..ओम नम: शिवाय...
----------------------------via fb/TL
Sunayana Kachroo
ReplyDeleteMay 29 at 1:50am
Wah...
---------------via fb/TL
महादेवी लल्ला मीरा जैसी नही हैं और कदाचित वो किसी के जैसी नही हैं हाँ मीरा उनकी पथानुगामी लगतीं हैं और उनके वाख को कबीर के सदृश्य बताना भी ठीक नही लगता कबीर की वाणी को लल्ला के वाख के समानांतर कहना ठीक होगा ....
ReplyDeleteओम नमः शिवाय... महान संत मां लल्लेश्वरी के चरणों मे वन्दन। आज पहली बार महान शिव भक्त मां के बारे मे पढकर बहुत ही अच्छा लगा। आदरणीय आप इनकी जन्मस्थली और इनसे जुडे स्थलों की सूची होतो उसे शेयर और पोस्ट करेंं मां की कृपा हूइ तो अवश्य उन पवित्र स्थलों के दर्शन करेंगे। इनके परिवार की जानकारी भी अपडेट करे सर। बेहद महत्वपूर्ण पोस्ट।
ReplyDeleteआदरणीय शैवमत के प्रमुख केन्द्र और पवित्र आध्यात्मिक भूमि कश्मीर के महान संतो के बारे मे और भी जानकारी पोस्ट करें। दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
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