Thursday 28 April 2016

नियति


नियति
--------------
कली ने कहा बहार से
हर ले उदासी मेरी
मझे नया संसार दे
स्वीकार हुई उसकी प्रार्थना
बहार ने कली को  फूल बना दिया
फूल फूल बन कर भी खुश रहा
मंदिर में रहा तो कभी बालों में सजा
तो कंही मसला गया
पर हर बार बार बार डाली से तोडा गया 
डाली फूल से अलग हुई
गुमनाम से मायूसी चहरे पर लिए
पतजड़ के पेड़ के समान   
करती रही फिर इंतज़ार
बसंत के आने का,
कालचक्र के घूमने का 
पता है कल फिर बहार आएगी
खुशियों की सौगात लाएगी
ग़मों को समेत समेट  ले जाएगी
 फिर भी है उथल पुथल
समुन्द्र में लहरों की भांति
क्यूंकि हावी रहती है समय पर
हमेशा मन की दुविदा
और मन की उलझन
यही तो नियति है .
---------------------------

सर्वाधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल


3 comments:

  1. via fb/Purple Pen.
    नीलोफ़र नीलू
    April 29 at 9:27pm
    Bahut khoob Tribhawan Kaul ji󾌵
    -------------------------------------
    Vijay Tanna
    Bht khoob Sir
    ------------------
    वसुधा कनुप्रिया
    क्यूंकि हावी रहती है समय पर
    हमेशा मन की दुविदा
    और मन की उलझन ........ बहुत ख़ूब, आदरणीय । यथार्थ!


    ReplyDelete
  2. Via fb/Muktak Lok April 28/29
    ---------------------------
    Ravinder Jugran
    भाग्य,,सही
    ---------------------------------------
    Rekha Lodha
    मुक्तांगन में आपका स्वागत है आदरणीय
    सुन्दर भावपूर्ण सृजन की बधाई। नमन आपको
    --------------------------------------------------------------
    Shyamal Sinha
    बहुत ख़ूब लाज़वाब सृजन माननीय सुस्वागतम्
    ----------------------------------------------------------------------------
    Trilochan Kaur
    वाह! लाजवाब रचना
    --------------------------------------------------------
    Lata Yadav
    वाहहहह लाजवाब
    अनुपम सृजन आदरणीय. मुक्तांगन में आपका स्वागत है आदरणीयसुन्दर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ आपको
    ------------------------------------------------------------
    Chanchlesh Shakya
    वाह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह अनुपम कृति.. सादर नमन। आदरणीय
    ------------------------------------------------------------------------------------
    Musafir Vyas
    बहुत अनुपम अभिव्यक्ति आद.
    ---------------------------------------------------------------
    Devesh Awasthi
    सुंदर

    ReplyDelete
  3. via fb/युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच.
    -----------------------------------
    Bindu Kulshrestha 11:39am Apr 30
    वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्
    ------------------------------------
    Shipra Shilpi 12:04am Apr 30
    वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् 󾠨󾠨󾠨
    वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्󾠨󾠨󾠨󾠨󾠨
    बहुत ही सुन्दर चित्र को सार्थकता देता सृजन
    हार्दिक बधाई आपको 󾠨󾠨
    -------------------------------------
    Chanchlesh Shakya 11:47pm Apr 29
    वाह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह वेहतरीन

    ReplyDelete