'वर्ण पिरामिड' क्या हैं ?
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बहुत सारे मित्रों ने मेरे ब्लॉग पर मेरे द्वारा रचित 'वर्ण पिरामिड
' विषय पर मुझसे पुछा की आखिर यह 'वर्ण पिरामिड' क्या हैं. मैं समझता हूँ कि निम्नलिखित लघु लेख उनकी जिज्ञासा और उत्सुकता शांत करने में सहायक होगा
जब पहली बार मैंने ' वर्ण पिरामिड ' के जनक श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' जी द्वारा रचित 'वर्ण पिरामिड' को फेसबुक के पटल पर देखा तो मुझे उसी समय लगा की यह हिंदी काव्य की विधाओं में शीघ्र ही अपना स्थान प्राप्त
कर लेगा . मेरा यह अनुमान निराधार नहीं था. पिछले चंद महीनो से फेसबुक पर इस विधा का काफी प्रसार हुआ है. आभासी दुनिया में सोशल मीडिया के रूप में मुख्य भूमिका निभा रहे फेसबुक पर 'वर्ण पिरामिड'
पटल आहिस्ता आहिस्ता अपनी पैठ बना रहा है. कुछ साहित्यिक/ काव्य पटलों पर कविता करने/लिखने वाले इस विधा का प्रयोग बहुत ही सुंदरता
से कर रहें हैं. चूँकि में अंग्रेजी और हिंदी , दोनों भाषाओँ में लेखन कार्य करता हूँ, मैं ' वर्ण पिरामिड' के विधा को अंग्रेजी काव्य विधा ' ईथरी'/etheree के बहुत आस पास मानता हूँ. फिर भी दोनों विधाओं में बहुत बढ़ा अंतर है. ' वर्ण पिरामिड 7 पंक्तियों में और 'ईथरी' 10 पंक्तिओं में लिखी जाती है. ईथरी में शब्दांशों/syllables का प्रयोग होता है. पहली पंक्ति में 1 ,
दूसरी पंक्ति में 2, तीसरी पंक्ति में 3.....इत्यादि जबकि ' वर्ण पिरामिड
में पूर्ण वर्णो का प्रयोग होता है . पहली पंक्ति में 1 वर्ण, दूसरी में 2 वर्ण , तीसरी पंक्ति में 3 वर्ण....इत्यादि.
एक भाव को केवल 7 पंक्तियों में पिरामिड रूप में समाना निश्चय ही एक अनूठा शिल्प कार्य है. जो वर्ण पिरामिड
भाव और शिल्प पर खरा उतरता है वही अतिउत्तम वर्ण पिरामिड कहलाता है.
श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला' जी के कथनानुसार
((((((****यह मेरी नवविधा है - ''वर्ण पिरामिड''****)))))
[इसमे प्रथम पंक्ति में -एक ; द्वितीय
में -दो ; तृतीया में- तीन ; चतुर्थ में -चार; पंचम में -पांच; षष्ठम में- छः; और सप्तम में -सात वर्ण है,,, इसमें केवल पूर्ण वर्ण गिने जाते हैं ,,,,मात्राएँ या अर्द्ध -वर्ण नहीं गिने जाते ,,,यह केवल सात पंक्तियों की ही रचना है इसीलिए सूक्ष्म में अधिकतम कहना होता है ,,किन्ही दो पंक्तियों में तुकांत मिल जाये तो रचनामें सौंदर्य आ जाता है ] जैसे-
हे
कृष्ण
कर दो -
समाधान ,
भारत माँ को
दे दो परिधान
सद्भावों के कर्मों का
********सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]
ये
वर्षा
कनक-
झरें बूंदें,
उड़े विहग ,
तरुवर सूने ,
आनंद कंद फूले ।
********सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]
आशा करता हूँ कि श्री सुरेश पाल वर्मा ' जसाला' जी के ' वर्ण पिरामिड' हिंदी साहित्य जगत में अपना स्थान ही नहीं पायें अपितु इस विधा का प्रयोग हिंदी कि अन्य विधाओं जैसे गीत, गीतिका, नवगीत, छंद कि भांति निरंतर होता रहे. मैं इस विधा के जनक श्री सुरेश पाल वर्मा ' जसाला' जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें देता हूँ.////
त्रिभवन
कौल
बहुत सुन्दर विश्लेषण
ReplyDeleteहृदय तल से धन्यवाद आपका. _/\_
DeleteComments via fb/TL July 2017
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डॉ किरण मिश्रा कुछ अलग सा ...👍
July 24 at 1:17pm
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Deo Narain Sharma
भावो की अभिव्यक्ति गागर में सागर जैसी प्राचीन परम्परा का आभाषित रुप।थोडे शब्दों के कलेवर में नखशिख बर्णन कर देना ही इसकी बिशेषता है।रुप माधुरी में लावण्यता का.समावेश।
July 24 at 2:54pm
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Suresh Pal Verma Jasala
आदरणीय बहुत सुन्दर,,, भावनाओं को शानदार रूप से उकेरने के लिए हृदरतल से अभिनन्दन एवं आभार
July 24 at 7:46pm
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Ramkishore Upadhyay
अति सुंदर
July 24 at 11:57pm
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लाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeleteबिलकुल। यह विधा अत्यधिक रोचक है और मै भी इस विधा मे लिखने का प्रयास करेगी ।
ReplyDeleteसमझना होगा इसे
ReplyDeleteबहुत सुंदर ढंग से विदा को स्पष्ट किया है मैं भी लिखने का प्रयास कर रही हूं
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