सशक्तिकरण
सुबह का धुंध में उसने बैग खोल कर उसका चेहरा देखा । वह एक सोती हुई मासूम नवजात कली थी। "एक माँ इतनी
निष्ठुर कैसे हो सकती है । ऐसी माँ को तो मार देना चाहिए। बच्चे नहीं चाहिए तो बहुत तरीके है। बहाव में तो कोई भी बह
सकता है। " वह बड़बड़ता रहा पर उस मासूम को घर के अंदर ले आया। तभी दरवाज़े पर आहट हुई। उसकी बेटी
राजी खडी थी। वह कभी अपने बाप को देखती कभी उस नवजात शिशु को। वह सब समझ गया। बीस साल पहले राजी
को भी तो कोई ऐसे ही छोड़ गया था। .... लावारिस। तब और आज, अगर कुछ बदला है तो एक माँ का दृढ़ निश्चय और
समाज का सामना करने की शक्ति। उसने बच्ची को राजी की गोद में ड़ाल दिया।
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Sudha Mishra Dwivedi 8:37pm May 21
बहुत सुंदर
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Sharda Madra 8:37pm May 21
अति सुंदर
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DrAtiraj Singh 8:37pm May 21
अति सुंदर.....एक संदेश लिए हुए.... अद्भुत!
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Anupam Alok 8:37pm May 21
बहुत सुंदर व शिक्षाप्रद कथानक
नमन आपको
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Kviytri Pramila Pandey 11:48am May 23
वाहहहहह अतिसुंदर
काश! हर मां में इतनी शक्ति आ जाये और बेटी बच सके
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ओम प्रकाश शुक्ल 7:56pm May 23
सुन्दर कृति है सर, सादर अभिनंदन।
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