Wednesday 7 February 2018

अंदेशा (लघुकथा)



अंदेशा (लघुकथा)
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इतवार का दिन होते हुए भी स्कूल में गहमा गहमी थी।  वार्षिक उत्सव की तैयारी ज़ोरों पर थी। १० वर्ष के मनुज ने डांस प्रैक्टिस कर,  गिटार पर हाथ साफ़ करने के इरादे से जैसे ही गिटार उठाया, स्कूल प्राणांग में अचानक उठे शोर ने  क्लास के सभी छात्रों -छात्राओं का ध्यान खींच लिया। सभी गलियारे में आ गए।  डांस सर एक लड़की को गोद में उठाये चिल्लाते हुए स्कूल एम्बुलेंस की ओर भागे जा रहे थे। प्रिंसिपल मैम , कोहली मैम , हेड गर्ल  और  कोर्डिनेटर सर उनके पीछे पीछे।  एम्बुलेंस के पास भीड़ लग गयी। मनुज ने देखा लहूलुहान और  खून से सनी स्कर्ट पहने आठवीं क्लास की छात्रा टीनी दीदी को एम्बुलेंस में डाला जा रहा था।  वह सहम गया। प्रिंसिपल मैम ने छुट्टी का ऐलान कर दिया। सभी बच्चों को बस में बिठा दिया गया।
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" माँ , आप बिलकुल मेरी चिंता मत करो।..... अभी तो चौथा ही महीना है।..... भुवनेश मेरा खूब ख्याल रखते हैं। मनु के बाद यह दूसरा  बच्चा होगा माँ। सभी बहुत खुश हैं।....... भुवनेश और मैं तो बेटी ही चाहते हैं।  मनु तो बहन बहन की रट अभी से लगा रहा है।.......  नहीं , स्कूल गया है। शाम तक आजायेगा। वार्षिक उत्सव में भाग ले रहा है वह।..... अच्छा रखती हूँ। इनको दोपहर की चाय चाहिए होती है। .. ... अच्छा नमस्कार माँ। "  दीक्षा ने मोबाइल बंद कर फ्रिज के पास रख दिया और स्टोव पर चाय के लिए पानी चढ़ा दिया।
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बस चल पढ़ी। टीनी दीदी उसी बस से आती जाती थी।   स्कूल की हेड गर्ल भी उसी बस में थी। सीनियर क्लास की छात्राएं बस में ही उसको घेर कर उससे घटना के बारे में पूछने लगी। कुछ ही देर में सभी लड़कियां अपनी अपनी जगह सहम कर बैठ गयी। लड़के सर झुका नज़रे नहीं मिला रहे थे। मनुज कुछ समझा, कुछ नहीं पर यह वह समझ गया की टीनी दीदी के साथ जो हुआ बहुत बुरा हुआ था।
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दीक्षा ने भुवनेश को चाय पकड़ाई तो भुवनेश ने उसको अपने पास बिठा कर बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए उसके उभरे उदर को सहलाया तो दीक्षा को एक आनंद की सी अनुभूति हुई।  "यह क्या कर रहे हो। दरवाज़ा बंद नहीं है।", दीक्षा ने भुवनेश से मुक्त होने  का बहाना सा किया।
"कोई नहीं आएगा।  माँ सत्संग में गयी है, मनु शाम से पहले आने वाला नहीं है " भुवनेश ने उसे अपने बाहुपाश में बाँध लिया।
" अच्छा।  नाम सोचा है " दीक्षा ने फुसफुसाते हुए पुछा।
"हाँ। शुभ्रा। कैसा है ?" भुवनेश ने उसके चेहरे को हथेलियों में समा लिया।
"बहुत अच्छा है।  तुम कितने अच्छे हो " दीक्षा का चेहरा लाल हो गया था।
"पर अगर लड़का हुआ तो। शुभ्रांशु या अनुज।  मनुज का भाई अनुज।" भुवनेश दीक्षा को चिढ़ाते हुए बोला। 
 " नहीं।  सोचो मत। मुझको बेटी ही चाहिए इस बार और  मनु को बहन "
"नहीं चाहिए मुझे बहन। बहन नहीं चाहिए। नहीं चाहिए। नहीं चाहिए " मनुज अंदर दाखिल हो चुका था। बैग उसने सोफे की और उछाल दिया। भुवनेश और दीक्षा दोनों सकते में आ गए।
"क्या हुआ मनु ? तुम तो स्कूल में थे ? ऐसा क्यों कह रहे हो बच्चा ? कल ही तो हमने - तुमने बहन के लिए बार्बी खरीदी।
"नहीं चाहिए मुझे बहन। कहा ना।  बस '" मनुज चिल्लाते हुए बोला और माँ से लिपट गया।   भुवनेश से रहा नहीं गया।  उसने मनुज जो अपनी और किया और पुछा , " मगर क्यों , मनु ?  क्यों ?"
" क्यूंकि , उसका रेप हो जाएगा पापा !!! "
दीक्षा और भुवनेश को काटो  तो खून नहीं। 
सन्नाटे में दीवारें तक कांप रही थी। 
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल 
image curtsey : Google.com

13 comments:

  1. All comments via fb/Purple Pen.
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    Rajnee Ramdev
    Rajnee Ramdev 5:58pm Feb 7
    अन्तस् तक हिला देने वाला सृजन
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    वसुधा कनुप्रिया 6:09pm Feb 7
    बेहतरीन रचना। ऐसी दुर्घटनाायें बच्चों पर कितना बुरा प्रभाव डाल सकती हैं यह समझा जा सकता है
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    Dildar Dehlvi 7:36pm Feb 7
    Behtrin janab
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    Sharda Madra 7:43pm Feb 7
    बेटी बचाओ बेटी बढाओ अभियान तो जारी है पर बेटी की सुरक्षा का खतरा रूह कांप उठती। इसी मुद्दे को उजागर करती बेहतरीन लघुकथा।बधाई।
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    निशि शर्मा 'जिज्ञासु' 5:58pm Feb 7
    मर्माहत करती लघुकथा
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    Rekha Joshi 5:58pm Feb 7
    मार्मिक कथा
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    Jyotsna Singh 5:58pm Feb 7
    क्या हालत होती जा रही है हमारे समाज की ,क्षोभ,दुख और ग़ुस्सा ऐक साथ होता है।

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  2. via आगमन ...एक खूबसूरत शुरुआत.
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    Neelam Sahu 6:44pm Feb 7
    Meaningful

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  3. via fb/TL
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    Ram Niwas Sharma
    February 7 at 6:46pm
    मार्मिक , समय परिवर्तित हो रहा है। फिर भी जननी जन्म से ही पुरुष प्रधान समाज में कमजोर है।
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    Kviytri Pramila Pandey
    February 8 at 7:17am
    वाहहहहह

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  4. via fb/ Poets, Artists Unplugged.
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    Shailesh Gupta 9:41pm Feb 7
    सारगर्भित..... मार्मिक.....अभिव्यक्ति....... !

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  5. बहुत ही सुन्दर लघुकथा, अंतस को हिला देने वाली, समसामयिक, व्यवस्था पर प्रहार, बधाई

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    1. कथा पर अपने विचार व्यक्त करने पर आपका आभार। सप्रेम। :)

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  6. बहुत सुन्दर लघुकथा, अंतस को झकझोरने वाली, समसामयिक, बधाई

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    1. कथा पर अपने विचार व्यक्त करने पर आपका आभार। सप्रेम। :)

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  7. via fb/TL
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    नीरजा मेहता
    February 8 at 1:34pm
    बेहद संवेदनशील कहानी।
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    Narendra Verma
    February 8 at 2:16pm
    बहुत समसामयिक, बधाई
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  8. via fb/युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (न्यास).
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    Raj Kishor Pandey 12:34pm Feb 11
    निश्चय ही इस तरह के जघन्य अपराघों के विषय में आज सभी को विचार करना चाहिए
    । अविस्मरणीय लघुकथा बहुत स्वागत आदरणीय
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    Kviytri Pramila Pandey 12:34pm Feb 11
    अति सुन्दर- लघु कथा
    समाज की ज्वलन्त समस्या सरकार और समाज दोनो जिम्मेदार है
    कोई ठोस कदम उठाये जाय जिससे
    समाज में बेटी सुरक्षित रह सके
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    गुप्ता कुमार सुशील 12:34pm Feb 11
    वर्तमान समाज के सबसे घृणित चेहरे को चित्रित करती लघु -कथा का सृजन आदरणीय.🙏
    नमन आपकी सोच एवं उत्कृष्ट लेखनी को
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    बसंत कुमार शर्मा 12:34pm Feb 11
    अत्यंत मार्मिक
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  9. via fb/TL
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    वसुधा कनुप्रिया
    February 12 at 7:10am
    समसामयिक, भावपूर्ण व मार्मिक सृजन, आदरणीय
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    Vishal Narayan
    February 12 at 10:02am
    बेहतरीन सृजन आदरणीय पहले बेटियों को दहेज के डर से मार दिया जाता था और अब........

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  10. आप सभी सुधीजनों का कथा पर अपने विचार व्यक्त करने पर मैं आपका तहे दिल से आभार प्रकट करता हूँ । सप्रेम।

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  11. via fb/TL
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    Indira Sharma
    February 12 at 6:50pm
    निःशब्द हूँ । कितना घातक हो उठा है समाज । अत्यंत दुखद ।
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    Ramkishore Upadhyay
    February 12 at 8:49pm
    मार्मिक रचना
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    डॉ शिप्रा शिल्पी
    February 13 at 12:15pm
    Atyant maarmik hriday sparshi katha....🙏
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