पुस्तक सिंहावलोकन : अंगार और फुहार
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भेद भाव सब छोड़कर,
करो चरित निर्माण
देश सदा आगे बढ़े , अपना भी कल्याण।........" अंगार और फुहार "
११ जनवरी २०१८ के
विश्व पुस्तक मेले में श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला ' जी के काव्यसंग्रह
" अंगार और फुहार " का विमोचन हुआ। पुस्तक को प्राप्त करते ही इसके आवरण
ने जता दिया कि आवरण के भीतर देशभक्ति की
भावनाओं को उकेरती रचनाओं से रूबरू होना पड़ेगा I इस काव्यसंग्रह में
कवि ने मानवीय संबंधों और सामाजिक व्यस्थाओं के ऊपर विभिन्न विधाओं में रचित अन्य
रचनाएँ भी पाठक के सम्मुख प्रस्तुत कर काव्यसंग्रह ' अंगार और फुहार ' शीर्षक को पूरी तरह से सार्थक किया है।
कवि सुरेश पाल वर्मा जसाला जी की रचनाओं का श्रवण, उनकी ओज भरी वाणी द्वारा तो कई सालों से करता आ रहा हूँ पर
एक साहित्यिक दस्तावेज के रूप में देशभक्ति की रचनाएँ पढ़ कर, ओज और वीररस के
समकालीन मूर्धन्य कवियों में कवि सुरेश पल
वर्मा 'जसाला ' जी का नाम भी
अगर मैं शामिल करूं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यथा :-
सेना के वीरों की तुम दुर्गति क्यों करा रहे
छप्पन इंची सीना वाले तुम मौन क्यों लगा रहे
रणभेरी बजे , करो आर पार
गद्दारों से
जयचंदी गर्दन काटो मौका क्यों गवां रहे।
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आतंकी जब भी मरते हैं , घाटी सड़कों पर आती है
रक्षा करते जो वीर वहां
उनका ही खून बहाती है
धारा परिवर्तन मांग रही
दुष्टों का अब संहार करो
कश्मीर से कन्याकुमारी , जनशक्ति जयहिंद गाती है।
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हिंदी साहित्य में देशभक्ति से औत प्रोत रचनाओं का एक अलग
ही स्थान हैी। अब चाहे वह "चाह नहीं
मैं सुरबाला के गेसू में गूंथा जाऊं / माखन लाल चतुर्वेदी या 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी' / सुभद्रा कुमारी चौहान या फिर वह ' ए मेरे वतन के लोगो' / कवि प्रदीप की कालजयी रचनाएँ हों या सुरेश पाल वर्मा जसाला
की भारत की माटी के प्रति अपनी कृतज्ञता और देश प्रेम को शब्दाकार रूप में अपनी पुस्तक में रची
रचनाओं द्वारा सम्मान और स्वाभिमान को दर्शाना हो , देश प्रेम युक्त रचनाये शरीर में एक उत्तेजना , एक उन्माद , एक सिरहन , एक रोमांच भर देती हैं और इसी देश प्रेम की दशा को ओर प्रेरित करती है ' अंगार और फुहार '। हिंदी साहित्य वीर रस से अछूता नहीं
है यह अलग बात है कि ऐसी रचनाओं का
पाठ/पठन /प्रसारण ना जाने क्यों केवल राष्ट्रिय दिवसों या शहीदी दिवसों तक ही
सीमित रह जाता है। पर मैंने जसाला जी को तब तब हमारी
चेतना को झकझोरती देशभक्ति की रचनाओं का मंचन करते देखा है जब जब
देश की अस्मत पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है।
'अंगार और फुहार ' के रचियता जसाला जी का काव्य
संसार केवल वीर रस तक ही सीमित नहीं
है। उनका स्वयं का यह कहना कि , " अंगार और फुहार को सागर की असीम गहराईयों में पनप रही हलचल और
नभ में उमड़ती घनघोर घटाओं वाले प्रलयंकर तूफानों का मेरे अंतर्भावों में समावेषन
मिला " उनके बहु आयामी लेखन प्रतिभा वह दर्शाता है जो एक प्रबुद्ध साहित्यकार
में होनी तय है। उनकी लेखनी में उतना ही
पैनापन, उतनी ही हलचल , उतनी ही अंतर्व्यथा , उतनी ही संवेदना , उतना ही सरोकार उनके द्वारा रचित मुक्तक, दुपदी , दोहा छंद , क्षणिकाएं , कुंडलियां , गीतिका इत्यादि
बहुरंगी और विविध रचनाओं में भी दृश्यव्य है जितना कि उनकी देशप्रेम की
रचनाओं में।
कवि विचारक है। राजनैतिक और सामाजिक मूल्यों में विघटन को
देखता है और उसका मन विचिलित होता है। फिर भी उसे इस निराशा में आशा की एक किरण सी
महसूस होती है तो वह एक कुंडलीया छंद के
द्वारा कहता है। यथा :-
बाबा तो बूढ़े हुए , जीर्ण शीर्ण से आज
मन विधुत सी कौंधती बच्चे सब नाराज़
बच्चे सब नाराज़ स्वार्थ के मद में डूबे
जान उन्हें बेकार मन ही मन ऊबे
देख दृश्य अनमोल हुआ मन फाबा फाबा
आया दौड़ा पौत्र पुकारे बाबा बाबा।
कहने को तो यह एक सीधा तथ्य बयानी हो सकता है पर ध्यान से , बार बार पढ़ने पर पाठक को एक सत्य का ज्ञान हो जाता है कि
आजकल की सामजिक व्यवस्था में वृद्ध और बुजर्गो को किस प्रकार से उनके ही अपने
बच्चे एक बोझ समझने लगे हैं और फिर अचानक
एक सकून सा प्राप्त होता है 'पौत्र ' के रूप में जिसमे वह बुजुर्ग को प्रेम का दिया प्रकाश समान
दिखाई देता है।
इसी कड़ी में अगर उनका यह दोहा पढ़ा जाए तो आजकल के युवा पीड़ी
पर एक जबरदस्त कटाक्ष किया गया है I यथा :-
तीरथ तीरथ घूमते
मात पिता को भूल
पवन पदरज छोड़ कर फांक रहे हैं धूल।
काव्यसंग्रह 'अंगार और फुहार ' की भाषा सहज, सरल और सर्वग्राही है। संग्रह में काव्य विधाओं के
शीर्षकानुकूल रचनाओं द्वारा पाठकों को हर उस अवस्था से गुज़ारा गया है जिसका साबका
पाठक को हर रोज़ पड़ता है। जैसे जैसे पाठक पृष्ठ दर पृष्ठ पलटता है , कवि की हर विधा में
विचारों और अनुभूतियों का व्यापक शब्द
कैनवास को मानो मानवीय संवेदना के हर फ्रेम में जड़ दिया गया हो, उसे ऐसे उसे प्रतीत होता है। श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला '
जो कि ' जसाला वर्ण पिरामिड
'
के और 'सिंहावलोकनि
दोहा '
के जनक भी हैं , उन्होंने अपने जीवन की गहन अनुभूतियों को,
जिनमे ओज , कुंठा, वेदना, आशा -निराशा और उल्लास
की अभिव्यक्तियों का,
विभिन्न विधाओं में
काव्य सम्प्रेषण “अंगार और फुहार “ के द्वारा पाठकों के समक्ष उस भाषा में प्रस्तुत किया है जिसमे इन सभी
संवेदनाओं में निहित तनाव को को तो दर्शाया ही है
कंही कंही तो समाधान भी प्रस्तुत किया है। उनके काव्य की निरंतरता , गीतमय लय ,
शब्द चयन और संयोजन पाठकों को सम्मोहित करेगी , ऐसा मेरा विश्वास है।
काव्य संग्रह की अपार सफलता के लिए हार्दिक शुभकामना
सहित।
त्रिभवन कौल
स्वतंत्र लेखक-कवि
05-01-2018
kaultribhawan@gmail.com
विशेष स्नेह का दिल की गहराइयों से अभिनंदन एवं आभार,,
ReplyDeleteआदरणीय,आपके स्नेह से मेरी कलम को सम्बल मिला,,,
पुनः हार्दिक बधाई जसाला जी।
Deletecomments via fb/TL
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Ramkishore Upadhyay
February 5 at 2:16pm
बधाई
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Sanjay Kumar Giri
February 5 at 4:59pm
हार्दिक बधाई सर
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Jai Bhagwan Sharma
February 5 at 6:23pm
बधाइयाँ स्वीकार करे।
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ओम प्रकाश शुक्ल
February 5 at 6:27pm
बहुत सुन्दर व्यख्या,, सादर अभिनन्दन
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Kviytri Pramila Pandey
February 5 at 7:22pm
हार्दिक बधाई
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Suresh Pal Verma Jasala
February 5 at 7:23pm
सभी प्रबुद्ध मित्रों के स्नेह का हृदयतल से अभिनंदन एवं आभार,,
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Suresh Pal Verma Jasala
February 6 at 10:21am
विश्व पुस्तक मेला, प्रगति मैदान में अंगार और फुहार के लोकार्पण का सुन्दर चित्र,,,
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Omprakash Prajapati
February 6 at 7:45pm
बहुत सुन्दर
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