बाल सुलभ
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रक्षा अपने 6 साल की बेटी रिया को उसके शतरंज क्लास से वापस ला रही थी। चूंकि रक्षा के पति कार लेकर सर्विस स्टेशन चले गए थे , इसलिए उसने एक ऑटो को रुकवाया और बेटी को लेकर बैठ गयी। घर पहुंचते ही रक्षा ने ऑटो किराए का भुगतान किया और लिफ्ट लेने के लिए बेटी से संग लॉबी में आ गयी। लिफ्ट में उसे एहसास हुआ कि शतरंज बोर्ड ऑटो में ही छूट गया था। उसने लिफ्ट को बीच में ही रोक कर लिफ्ट के द्वारा नीचे आ गयी। ऑटो जा चूका था।
शाम को चाय पर सभी परिवार के सदस्य एक ही कमरे में बैठे थे। रिया सब को शतरंज बोर्ड के गुम होने की सूचना को देने में पहल करने में उत्सुक थी। उसने खोए शतरंज बोर्ड के बारे में बताने की शुरुआत की ही थी कि उसकी मां ने ज़ाहिर तौर पर नाराज़ होकर पूछा, "तो,रिया सब को बताओं कि तुमने आज क्या गलती की” । रिया यद्दीपि थोड़ा सहम सी गयी पर पूरी कहानी सुनाने के लालच ने उसका डर दूर कर दिया और उसने शतरंज बोर्ड के ऑटो में रह जाने की घटना खूब हंस कर दोहराई। सारे सदस्य उसकी मासूमीयत भरी कहानी को सुन कर हंस रहे थे जब रक्षा ने रिया को कहा।
" अच्छा बताओं इस घटना से तुमने क्या सीखा। तुमको क्या नैतिक सीख मिली। "
सबों ने सोचा रिया खेद व्यक्त करेगी और आगे से सजग रहने को कहेगी कि हमें ऑटो से बाहर निकलने से पहले अपने सामान को लेने में कभी नहीं भूलना चाहिए। रिया कुछ देर चुप रही और फिर चहक कर बोली ," हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा अपनी कार से ही यात्रा करनी चाहिए ताकि कोई सामान छूट नहीं जाए ।" रिया की इस बाल सुलभ
विवेचना से सभी हंस कर लोट पोट हो गए। ////////////////////////////////
लेखक की टिप्पिणी :- कभी कभी बाल सुलभ बोल हमें चेतावनी का आभास दिलाना चाहते हैं जिसको हम यूँही बच्चों की हाज़िरजवाबी मान कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त तो करते हैं पर बच्चों की जीवन के प्रति जो मान्यता /धारणा बनती हैं उसको नज़र अंदाज़ कर देते हैं। गरीब और आर्थिक रूप से असंम्पन परिवारों के बच्चे हर परिस्थिति का सामना कर पलते बढ़ते हैं, जबकि अमीरों के, नए नए अमीर बने परिवारों के बच्चे अपने सुविधा क्षेत्रों (Comfirt zone)/ आरामदायक माहौल से बाहर यदि आ जाएँ तो उनको एक बेचैनी सी महसूस होने लगती है। माता पिता का तब यह कर्तव्य बन जाता है कि वह अपने बच्चों को हर परिस्थिति में रहना और उससे जूझना सिखाए ताकि आगे चल कर वह एक बेहतरीन नागरिक और संतान का फ़र्ज़ निभा सकें ।
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल
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रक्षा अपने 6 साल की बेटी रिया को उसके शतरंज क्लास से वापस ला रही थी। चूंकि रक्षा के पति कार लेकर सर्विस स्टेशन चले गए थे , इसलिए उसने एक ऑटो को रुकवाया और बेटी को लेकर बैठ गयी। घर पहुंचते ही रक्षा ने ऑटो किराए का भुगतान किया और लिफ्ट लेने के लिए बेटी से संग लॉबी में आ गयी। लिफ्ट में उसे एहसास हुआ कि शतरंज बोर्ड ऑटो में ही छूट गया था। उसने लिफ्ट को बीच में ही रोक कर लिफ्ट के द्वारा नीचे आ गयी। ऑटो जा चूका था।
शाम को चाय पर सभी परिवार के सदस्य एक ही कमरे में बैठे थे। रिया सब को शतरंज बोर्ड के गुम होने की सूचना को देने में पहल करने में उत्सुक थी। उसने खोए शतरंज बोर्ड के बारे में बताने की शुरुआत की ही थी कि उसकी मां ने ज़ाहिर तौर पर नाराज़ होकर पूछा, "तो,रिया सब को बताओं कि तुमने आज क्या गलती की” । रिया यद्दीपि थोड़ा सहम सी गयी पर पूरी कहानी सुनाने के लालच ने उसका डर दूर कर दिया और उसने शतरंज बोर्ड के ऑटो में रह जाने की घटना खूब हंस कर दोहराई। सारे सदस्य उसकी मासूमीयत भरी कहानी को सुन कर हंस रहे थे जब रक्षा ने रिया को कहा।
" अच्छा बताओं इस घटना से तुमने क्या सीखा। तुमको क्या नैतिक सीख मिली। "
सबों ने सोचा रिया खेद व्यक्त करेगी और आगे से सजग रहने को कहेगी कि हमें ऑटो से बाहर निकलने से पहले अपने सामान को लेने में कभी नहीं भूलना चाहिए। रिया कुछ देर चुप रही और फिर चहक कर बोली ," हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा अपनी कार से ही यात्रा करनी चाहिए ताकि कोई सामान छूट नहीं जाए ।" रिया की इस बाल सुलभ
विवेचना से सभी हंस कर लोट पोट हो गए। ////////////////////////////////
लेखक की टिप्पिणी :- कभी कभी बाल सुलभ बोल हमें चेतावनी का आभास दिलाना चाहते हैं जिसको हम यूँही बच्चों की हाज़िरजवाबी मान कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त तो करते हैं पर बच्चों की जीवन के प्रति जो मान्यता /धारणा बनती हैं उसको नज़र अंदाज़ कर देते हैं। गरीब और आर्थिक रूप से असंम्पन परिवारों के बच्चे हर परिस्थिति का सामना कर पलते बढ़ते हैं, जबकि अमीरों के, नए नए अमीर बने परिवारों के बच्चे अपने सुविधा क्षेत्रों (Comfirt zone)/ आरामदायक माहौल से बाहर यदि आ जाएँ तो उनको एक बेचैनी सी महसूस होने लगती है। माता पिता का तब यह कर्तव्य बन जाता है कि वह अपने बच्चों को हर परिस्थिति में रहना और उससे जूझना सिखाए ताकि आगे चल कर वह एक बेहतरीन नागरिक और संतान का फ़र्ज़ निभा सकें ।
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल
HS Sabharwal
ReplyDeleteबहुत ही सुदंर रचना
August 7 at 7:22pm
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Shailesh Gupta
क्या ख़ूब कहा आपने.... बेहद शानदार.... !...
------------------via fb/Purple Pen
All comments via fb/युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच
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Sharda Madra
बहुत सुंदर भावनात्मक प्रस्तुति । शिक्षाप्रद ।
August 6 at 8:43pm
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Kviytri Pramila Pandey
वाहहहहह संदेश प्रद आलेख
आदरणीय --बधाई आपको
August 6 at 8:48pm
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डॉ. पुष्पा जोशी
संदेशाप्रद ....बधाई
August 6 at 9:26pm
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Mahatam Mishra
बहुत सुंदर कहानी आदरणिय, किसी भी भूल को हँसकर स्वीकार करना बहुत बड़ी बात है वाह वाह
August 6 at 10:56pm
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Ravi Sharma
बहुत सुंदर भावनात्मक प्रस्तुति । शिक्षाप्रद ।
August 7 at 12:22am
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Deo Narain Sharma
बालक के जीवन में जैसी परिस्थिति परिलक्षित होती है वह वैसा बन जाता है।लेखक जीवनयापन की शैली से संतुष्ट नही.है तभी वह अमीर के बच्चों और गरीब के.बच्चों का तुलनात्मक अध्ययन कर एक शिक्षाप्रद कहानी रचकर लोगों के.अन्दर मणिकाचन गुण का.समावेश करना चाहता.है कि
".आर्थिक रूप से असंम्पन
परिवारों के बच्चे हर परिस्थिति का सामना कर पलते बढ़ते हैं, जबकि अमीरों के, नए नए अमीर बने परिवारों के बच्चे अपने सुविधा क्षेत्रों (Comfirt zone)/ आरामदायक माहौल से बाहर यदि आ जाएँ तो उनको एक बेचैनी सी महसूस होने लगती है। माता पिता का तब यह कर्तव्य बन जाता है कि वह अपने बच्चों को हर परिस्थिति में रहना और उससे जूझना सिखाए ताकि आगे चल कर वह एक बेहतरीन नागरिक और संतान का फ़र्ज़ निभा सकें "
वा हह वाहहह सुन्दर.सोच.और.समाज को सत्यपथ पर.चलने.हेतु सुधारबादी दृष्टिकोण का प्रयास
August 7 at 1:39am
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Tribhawan Kaul
आपकी विवेचना पूर्ण प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद श्रीमन। _/\_ :)
August 7 at 11:00am
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Comments via fb/TL
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आनन्द मोहन मिश्रा
हृदयस्पर्शी सत्य ...
बहुत खूब लाजबाब ...
August 7 at 2:09pm
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Adv.Dhirendra Kumar
बहुत बधाई
August 7 at 4:11pm
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Shelleyandra Kapil
अपनी गाडी मे चलने से अपने सामान का ख्याल रखने की आदत ही नहीं पडती, इसलिये मां व बेटी
का कोई दोष प्रतीत नहीं होता और न ही बच्ची को
हुआ।...See More
August 7 at 9:24pm
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Ranjana Patel
Great sir
August 7 at 10:21pm
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All comments via fb/फलक (फेसबुक लघु कथाएं)
ReplyDelete-----------------------------------
Navita Kumari
Wah
August 7 at 11:47am
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Mihika Sharma
lekhak ki tippni to kmal ki nd bilkul sahi h
August 7 at 1:06pm
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Anupama Sharma
It's true
August 7 at 11:22pm
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शिखा श्रीवास्तव
Very nice
August 8 at 9:42am
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Pankaj Pratham
ReplyDeleteप्रेरक !
August 8 at 8:21pm
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Manoj Kumar Mishra
स्तरीय लेखन
August 8 at 10:09pm
-------------via fb/TL