नेह के उपमान : एक प्रतिक्रिया
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शैलेश गुप्ता दवारा रचित काव्य संग्रह ' नेह के उपमान ' एक युवा कवि हृदय के इंदरधनुषी भावों को साकार कर हमारे समक्ष एक ऐसे अनुभूतियों की काव्यात्मक प्रस्तुति है जो एक नेह यानि स्नेह की ,
प्रीती
की और प्यार की , एक गहन सोच और वैचारिकता को लिए बहुआयामी परिभाषा है। सम्पूर्ण संकलन कवि के कोमल ह्रदय और अनुभूतिशील होने का दस्तावेज है। कवि शैलेश गुप्ता का यह प्रथम काव्यसंग्रह है जिसमे नेह के सभी उपमानों को उन्होंने बहुत ही सुंदर ढंग से काव्यबद्ध कर अपनी उन सभी भावनाओं के साथ न्याय किया है जो प्यार से , आस्था से, त्याग से , स्नेह से , सत्कार से , सौंदर्य से इस जीवन के संदर्भ में कंही न कंही हमसे भी जुड़े हुए हैं। देखा जाये तो पुस्तक का शानदार आवरण ही उसमे लिखी कविताओं का मर्म बता देता है I वास्तव में इस काव्यसंग्रह के द्वारा नेह को हर रूप में कवि जिया है। यथा :-
“सचमुच पी लिया है तुमने
सारा मधु मेरे हृदयपात्र का
अब मैं एक रिक्त पात्र की तरह
अर्थहीन करती हूँ प्रतीक्षा
तुम्हारे आने की !!”
या
“देखना तुन्हें शायद कभी मिल जाए
किसी की अश्रुपूरित पलकों के नीचे
या फिर किसी..... अबोध शिशु की
नन्ही हंसी में “
शैलेश गुप्ता उन नये , युवा और और प्रतिभाशाली कवियों में से एक हैं जो बगैर किसी काव्य विधाओं में उलझे अपनी कविताओं के माध्यम से वह ही कहना चाहतें हैं जो उनका मन स्वीकार करता है, जिनसे वह अनुभूतित हैं, जो कवि को प्रिय है पर यथार्थ है, जो मर्मस्पर्शी है पर निर्मल है , नवीन है पर चिंतन है और रचनाओं में समकालीनता का पुट है पर थोड़ा हट कर है।
“जग में जो घटित होता
उसको सबकुछ विदित होता
कवि तो सह लेता सब कुछ
कल्पना क्यों चुप रहेगी
कल्पना कवि की कहेगी।“
कवि का एक मात्र धेय्य पाठकों को हर उस लम्हे से गुज़ारना है जिन लम्हों ने कवि के मानस पटल पर एक छाप छोड़ दी हो या हर उस अनुभव को महसूस कराना है जिससे वे खुद प्रभावित हुए हों। यथा :-
“जिस पथ पर शूल चुभे
वह पथ बुहार दूं
मीत मेरे तनिक रुको
राहें संवार दूं। “
कवि शैलेश गुप्ता की हर रचना दिल के किसी कोने को छूती सी लगती है।
पर शैलेश गुप्ता की एक रचना 'बोनसाई पौधे 'ने मेरे मानस को झकझोर कर रख दिया। एक कटाक्ष किया है कवि ने। एक ऐसा बिम्ब प्रस्तुत किया है कि अपनी विरासत को , विशालता को आधुनिकता में खोते जा रहें हैं। आधुनिक जीवन के बोनेपन को यथार्थता से इस कविता में प्रस्तुत किया है। ऐसी और भी रचनाएँ है जैसे कि 'गैस के गुब्बारे ' 'मेरी पतंगे ' इत्यादि जो कवि की लेखन ऊर्जा को
दर्शाते
हैं। मुक्तछंद में रची रचनाएं , गीत, और ग़ज़ल नुमा रचनाएँ कवि की संवेदनाओं को व्यक्त करती , सरल सहज भाषा शैली और भाव प्रवाह को लिए अपना प्रभाव पाठकों पर ज़रूर छोड़ेंगी I मेरा
अपना मानना है कि किसी भी काव्यसंग्रह को खण्डों में विभाजित नहीं करना चाहिए। काव्य
प्रेमी पाठक अपने आप ही समझ जाता है कि प्रस्तुति किस प्रकार की है। दुसरे जहाँ तक ग़ज़ल लेखन का सवाल है पुस्तक में एक खंड इस विधा को समर्पित है पर कवि शैलेश गुप्ता को इस विधा का पूरी तरह से आत्मसात कर ,ग़ज़ल लेखन की बारीकियों में जा कर परिमार्जन करना होगा क्योंकि ऊँगली उठाने वालों की साहित्यक दुनिया में कमी नहीं।
काव्य संसार में उनके एक उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए , मैं शैलेश गुप्ता जी को इस प्रथम काव्यसंग्रह के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई और अशेष शुभकामनाएं देता हूँ।
त्रिभवन कौल
स्वतंत्र लेखक-कवि
24-12-2016
अनुगृहित हूँ.... अभिभूत हूँ..... आपके स्नेहाशीष शब्दों से.... सर... !!...आपने मेरी कविता संग्रह को पढ़कर जो काव्यात्मक समीक्षा प्रस्तुत की है उसके लिए मैं सदैव आपका आभारी रहूँगा.... !!.... हृदय के अंतरतम तल से असीमित धन्यवाद.... !!
ReplyDeleteअभिनन्दन आपका। :)
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