जसाला 'वर्ण पिरामिड ' की हिंदी काव्य
साहित्य में स्वीकार्यिता।
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“प्रत्येक
मनुष्य के जीवन का चुनौती ,संघर्ष ,विफलता और सफलता के परिपेक्ष में आकलन होता है ।
अर्थात जीवन में चुनौती है तो संघर्ष है ,संघर्ष है तो परिणाम स्वरूप विफलता भी हो
सकती है या सफलता भी हो सकती है। जो चुनौती स्वीकार करके संघर्ष करते हैं और संघर्ष
से नव-पथ प्रशस्त करते हैं ,वही काल के गाल पर अपना नाम अंकित करते हैं। मैंने भी कुछ
नव-सृजन विस्तार की कल्पना में साहित्यिक-महालोक में विचरण करते हुए चिंतन-मंथन किया
और माँ शारदे के आशीर्वाद से ,गहन चिंतन के बाद सृजित की एक छोटी सी विधा । इस नव-विधा
का नाम रखा गया ,'' वर्ण पिरामिड या जसाला पिरामिड ''।
“ सुरेश पाल वर्मा 'जसाला '
हे
कृष्ण
कर दो -
समाधान ,
भारत माँ को
दे दो परिधान
सद्भावों के कर्मों का
********************सुरेशपाल वर्मा
जसाला
जब से अंतर्जाल का हमारी दिनचर्या में
क्या हम सबों की ज़िन्दगी में दखल हुआ है तब से हिंदी काव्य साहित्य के प्रसार-प्रचार को मानो पर लग गए हों।
आभासी दुनिया में हिंदी काव्य की हर विधा की
एक सरिता निकल कर मानो विशाल काव्य सागर में मिलने को आतुर हो गयी हो। वार्णिक छंदों , मात्रिक छंदों में रचित
दोहे , हाइकु , मुक्तक/चतुष्पदी , कुंडलियां , चौपाई , गीत, गीतिका , त्रिवेणी और नवगीत,
मुक्तछंद रचनाएं आदि । बस नाम लीजिये ,आपको
बहुत सारे समूह इन विधाओं में आपको लिखने के लिए आमंत्रित करते मिलेंगे।
आभासी दुनिया में हिंदी काव्य पर नए
नए प्रयोग भी हो रहें हैं। प्रयोग पहले भी होते रहें हैं पर यह प्रयोग कुछ सीमा तक ही हिंदी प्रेमियों तक पहुंचे । २१वीं शताब्दी में
अंतरजाल की व्यापक स्वीकार्यता के कारण, अंतरजाल पर हो रहे
में हिंदी भाषा के प्रचार -प्रसार को एक अभूतपूर्व माध्यम मिल गया जिसके कारण
आभासी दुनिया में हिंदी भाषा में लिखी पद्य
या गद्य रचनाओं को अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी एक अपनी पहचान मिल गयी है। उर्दू ग़ज़ल के
समान ही हिंदी भाषा में ग़ज़ल के स्वरूप में ही
एक नए विधि विधान के अंतर्गत लिख कर गीतिका नाम से पहचान दिलाई जा रही है , नवगीत
के रूप में गीत को एक नया आयाम देने का प्रयोग हो रहा है , मुक्तछंद को स्वछन्द बनाया
जा रहा है
इन प्रयोगों की कड़ी में आज हम एक नयी विधा 'वर्ण पिरामिड
' को पाते हैं जो हिंदी काव्य साहित्य को एक नयी ऊर्जा प्रधान कर अपना स्थान सुनिश्चित
करने में सक्षम लगती है। इस विधा के जनक श्री
सुरेश पाल वर्मा 'जसाला ' हैं जिन्होंने हिंदी
काव्य प्रेमियों को इस विधा से परिचय कराया।
इस वर्ण पिरामिड को जसाला पिरामिड के नाम से भी जाना जाने लगा है। हाल में ही (०४-१२-२०१६) को पटना में सुश्री विभा
रानी श्रीवास्तव द्वारा आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में हाइकु दिवस पर वर्ण पिरामिड के ५५ रचनाकारों
द्वारा रचित एक पिरामिड संग्रह "अथ से
इति-वर्ण स्तम्भ , वर्ण पिरामिड -साझा संग्रह " एक पिरामिड संग्रह ' का विमोचन
हुआ। अनेक विषयों पर रचित यह वर्ण पिरामिड
संग्रह इस बात का द्योतक है के जसाला वर्ण पिरामिड विधा की स्वीकार्यता हिंदी साहित्य
में अपनी पहचान बना चुकी है। यही नहीं अंतरजाल
पर पिरामिड रचनाओं पर ब्लॉगों की संख्या में भी निरंतर बढ़ोतरी हो रही है।
ऐसा नहीं कि हिंदी में पिरामिड आकार वाली रचनाएं पहले नहीं लिखी जाती थी
या नहीं लिखी जाती रही हैं पर वह सब रचनाएं
'वर्ण पिरामिड' की तरह किसी नियम का पालन नहीं करती हैं। यह रचनाएं केवल पिरामिड के आकार में लिखी जाती रही हैं। ना तो वर्णो की गणना ना ही पंक्तियों की सीमाबद्ध
अनुशासन। ऐसी रचनाएं अंग्रेजी के 'शेप पोएम
' को साकार करती रही हैं जिसमे किसी भी आकार में एक कविता रची जा सकती है। पिरामिड आकार में भी। अंग्रेजी में एक और विधा है 'ईथरी ' I यह भी पिरामिड
आकार की होती है पर दस पंक्तियों की इस रचना में
ध्वनि आधारित 'वाक्यांशों ' (सिलेबिल ) का बहुत महत्व है जोपहली पंक्ति में
एक, दूसरी पंक्ति में दो , तीसरी पंक्ति में तीन.... दसवीं पंक्ति में दस वाक्यांशों
का होना अति आवश्यक है पर रचनाएं सीधी -सपाट होती हैं जो सीधे सीधे किसी भी एक विषय
को लेकर लिखी जाती हैं। क्षणिकाएं भी ३-५
/अधिक से अधिक ७ पंक्तियों की होती हैं पर
बकौल सुश्री विभा रानी श्रीवास्तव के ‘क्षणिका भी क्षण में बिजली चमकाने वाली विधा
है लेकिन वर्णों के जादू से नहीं ....”
जसाला वर्ण पिरामिड एक भिन्न प्रकार की विधा है जिसमे
अपना एक विधि-विधान है।
है
स्वर्ग
कोमा में
प्रतीक्षा में
दक्ष सर्जन
हो प्रत्यारोपण
दिल दिमाग गुर्दा
-------------------- त्रिभवन कौल
१) यह केवल
सात पंक्तियों की रचना है।
२) यह वर्णो की गणना पर आधारित वार्णिक रचना है।
३ ) पहली पंक्ति में एक वर्ण, दूसरी पंक्ति में दो वर्ण
, तीसरी पंक्ति में तीन वर्ण , चौथी पंक्ति में चार वर्ण , पांचवी पंक्ति में पांच
वर्ण , छट्टी पंक्ति में छै वर्ण और सातवीं
पंक्ति में सात वर्णो की गणना होना आवश्यक है I वर्ण से मतलब पूर्ण वर्ण से है। वर्ण पिरामिड में अर्ध वर्ण की गणना नहीं की जाती।
४) संयुक्त अक्षर को एक वर्ण के अंतर्गत लिया जाता
है। जैसे 'अन्दर ' में 'अ ' न्द' और 'र ' में
केवल तीन वर्ण ही गिने जाएंगे ना की चार। या
उपरोक्त उदाहरण में 'स्वर्ग ' में दो ही वर्णो की गणना की जाएगी। 'स्व , र्ग ' I
५) वर्ण पिरामिड किसी भी विषय पर लिखा
जा सकता है पर प्रस्तुति या कथन सीधी -सपाट होने की स्थान पर पाठक के ज्ञान को और प्रस्तुत
बिम्ब को समझने की एक चुनौती देती प्रतीत होनी चाहिए ठीक वैसे ही जैसे कि एक हाइकू
में या शेनर्यू होता है। गागर में सागर I यथा :-
दो
जोंक
सन्तति/सहन्ति
घरघाली
अमरबेल
दहेज दुष्कर्मी
घाती संघ उन्नति ।.............विभारानी
श्रीवास्तव
{रचित वर्ण पिरामिड में दहेज़ लोभियों
को समाज व राष्ट्र के लिए घातक एवं उन्नति अवरोधक बताते हुए वर्ण पिरामिड लेखन की सार्थकता
तथा दक्षता का जीवट परिचय दिया है। साथ ही अनुप्रासालंकार का बेजोड़ उदाहरण प्रस्तुत
किया है }#
हैं
हम
सहिष्णु
नागरिक
हितों के द्वंद्व
राजनीति संग
बनायें असहिष्णु ।............. शेख़
शहज़ाद उस्मानी
{जहाँ मानवीयता के सुदृढ़ स्तम्भ सहिष्णुता
पर हावी होती राजनीति के दुष्प्रभाव का आँकलन करते है, तो वहीं संकीर्ण होते मनोभावों
का बिम्ब पेश करते हुए अपने व्यथित मन की पीड़ा का बोध कराते हैं ,,वास्तव में यह एक
कवि हृदय की सजगता का प्रतीक है।}#
6) सात पंक्तियों के इस पिरामिड में
किन्हीं दो , तीन, या चार या सारी पंक्तियों एक अंत में तुकांत मिल जाए तो पिरामिड रचना काव्य सौंदर्य
का अनूठा बोध हो जाता है। पिरामिड प्रस्तुति में यदि गेयता का आभास हो तो सोने पर सुहागा।
यथा :-
ये
शूल
बबूल
दंभ मूल
विषाक्त चूल
निकृष्ट उसूल
चीर-चीर दुकूल I............... सुरेश
पाल वर्मा 'जसाला '
मेरा मानना है वर्ण पिरामिड सात पंक्तियों
की एक ऐसी रचना है जिसमे हर पंक्ति अलग होते हुए भी विषय वस्तु से जुड़े हुए तो लगते हैं पर हर पंक्ति विषय वस्तु के भिन्न भिन्न तथा नवीन दृष्य उत्पन करने में सक्षम हों। प्रथम तीन पंक्तियाँ अगर विषय वस्तु की और इंगित
करें , अगली दो पंक्तियाँ पहली तीन पंक्तियों
से जुडी रहने के उपरांत भी एक नया बिम्ब प्रस्तुत करे और अंतिम दो पंक्तियाँ अस्कमात
ही विषय की ऐसे समीक्षा प्रस्तुत करे कि पाठक
वाह वाह कर उठे। एक बात मैं यहाँ कहना आवश्यक समझता हूँ की यद्दीपी पिरामिडकार हमारे
समक्ष शीर्षक के द्वारा अपने विषय को प्रस्तुत
करता है , यह पाठकों की अपनी सोच, ज्ञान और विवेक पर निर्भर है वह पिरामिड रचना का
विवेचन या व्याख्या किस प्रकार से करता है।
विषय वस्तु/ शीर्षक एक ही है पर हर
पाठक का रचना के भाव को , बिम्ब को , उसके दृष्टान्त को परखने का कल्पनाजनित आधार अलग
अलग होता है।
जसाला वर्ण पिरामिड शने: शने: समकालीन
हिंदी काव्य साहित्य में अपना उचित स्थान तलाशने में सफल हो रहा है। नया प्रयोग है। नयी विधा है।
आलोचक ज़रूर होंगे। विरोध भी हो सकता
है कि हो। मुक्तछंद विधा का प्रयोग जब सर्वप्रथम
'सूर्य कान्त त्रिपाठी ' निराला ' ने सर्वप्रथम मुक्तछंद में काव्य रचना की तो विरोध का सामना करना पड़ा था। आज मुक्तछंद में ८० % कविताओं की रचना होती हैं। इसी प्रकार जसाला 'वर्ण पिरामिड ' शीघ्र ही सर्वमान्य
, सर्वग्राही और स्वीकार्य होंगी जो हिंदी काव्य पटल पर अपनी एक छाप छोड़ जायेगी।
हर नयी विधा को प्रचलित करना कठिन कार्य
ज़रुर है पर असम्भव नहींI वर्ण पिरामिड के जनक सुरेश पाल वर्मा जसाला जी साथ साथ इस
विधा को सम्मान दिलाने एवं जन जन के बीच लाने का यदि किसी को श्रेय जाता है तो सुश्री
विभा रानी श्रीवास्तव को जिन्होंने अपने प्रथम
प्रयास में , ५१-५५ पिरामिड लेखकों /कविओं।कवित्रियों को एक साथ एकत्रित कर अपने संपादन में , वर्ण पिरामिड की पुस्तक अथ से इति- वर्ण स्तम्भ ' वर्ण पिरामिड -साझा संग्रह का प्रकाशन
करा क्र एक साहसिक कदम उठाया है। वर्ण पिरामिड
विधा के उत्थान के लिए विभारानी श्रीवास्तव
का यह योगदान भुलाया नहीं सकता । हिंद युग्म ब्लू द्वारा प्रकाशित 366 पृष्ठों में सिमटी यह पुस्तक जल्द ही ऑनलाइन
विक्रय के लिए उपलब्ध होगी।
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आलेख /त्रिभवन कौल
स्वतंत्र लेखक -कवि
# पुस्तक अथ से इति- वर्ण स्तम्भ ' वर्ण पिरामिड -साझा संग्रह के सौंजन्य
से
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मैं आभारी हूँ आदरणीय
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
स्वागत है आपका _/\_
Deleteनिश्चित ही वर्ण पिरामिड हिंदी साहित्य की अनिवार्य वर्णिक काव्य विधाओं में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर रही है ।।
ReplyDeletevarnpiramid.blogspot.com
स्वागत है आपका _/\_
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 24 दिसम्बर 2016को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
हार्दिक धन्यवाद और अभिनन्दन आपका। :)
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