Tuesday 14 October 2014

दुःख

दुःख
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हर दुःख, अंतरमन का एक आइना है
जितना छुपाओ उतना ही दिखाई देता है
इसको पाल कर रखना भी फिजूल है
इन्सान को जला कर राख कर देता है.
दुःख  का  भाग्य ही  दुर्भाग्य  है
चाहता नहीं कोई यह रोग
चूँकि असाध्य है  
उभर आता है
प्रियतम के निकट होने के आभास से
प्रेयसी के ठन्डे रुख और अंदाज़ से
देश पर शहीद की माँ के रुदन पर
बलात्कार की शिकार के क्रंदन पर
भ्रष्ट नेताओं की भेंट, देश की दुर्दशा पर
धर्म की आड़ में दंगों की मानसिकता पर 
पर्यावरण की और होती उदासीनता पर
चढ़ती आयु को दर्द से करहाते को देख कर
योवन को मौज़ मस्ती में अपने को ढालते
हर उस नशे की अपना कर
बलि लेता जो ज्ञान की अज्ञान की वेदी पर 
सर  चढ़  बोले  जब  दुःख
कल्पना  लगता  है  तब सुख           
ईश्वर तब आता है याद
दुःख की फिर क्या बिसात
दुःख , तू भी कभी ग़मज़दा हो तो तुझे मालूम हो
ख़ुशी भी कोई शह है तुझे मालूम हो
तेरा आगमन बेशक लाता है वेदनाओं का तूफ़ान
ज़िंदा है ईश्वर तुझी से, तुझे मालूम हो.
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल




10 comments:

  1. Vijay Tanna 9:04pm Oct 15
    V. Nice.
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    नादान केतन 12:32pm Oct 15
    Gud
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    Vikas Pant 12:04pm Oct 15
    Ati sundar!
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    Neha R. Krishna 11:33am Oct 15
    Behad sundar likha hai....

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  2. 9:26 PM Oct 15
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    Charu Dev commented on your status.
    Charu wrote: "ऎ दु:ख तू भी कभी गमजदा हो तो तुझे मालूम हो.....बहुत मासूम इल्त"

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  3. Pradeep Sharma 9:48pm Oct 15
    सर मेरे पास शब्द नहीं है तारीफ़ के लिए । बहुत बहुत ही सुंदर रचना

    via fb/उत्कर्ष युवा साहित्यिक मंच.

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  4. Vijay Mishr Daanish 2:37pm Oct 15
    अंतर मन को छूती रचना
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    Shyamal Sinha 2:16pm Oct 15
    अति सुन्दर भाव!
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    Sunil Prasad 2:09pm Oct 15
    सार्थक सुन्दर रचना नमन।
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    Sangeet Pandey 1:36pm Oct 15
    बहुत खूब अति उत्तम
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    बृजेश कुमार 1:04pm Oct 15
    वाह बहुत सुन्दर
    via fb/kavitalok

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  5. Yamuna Prasad Dubey Pankaj 10:07pm Oct 15
    -सर चढ़ बोले जब दुःख
    कल्पना लगता है तब सुख
    ईश्वर तब आता है याद
    दुःख की फिर क्या बिसात,,,,,,,,,वाह वाह,बहुत सुन्दर भाव भरी कविता है,बहुत बहुत बधाई

    via fb/kavitalok

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  6. Ramkishore Upadhyay 11:01am Oct 16
    बहुत सुन्दर रचना ...अद्भुत ....आदरणीय

    via fb/साहित्य लोक

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  7. 1:54 AM 16 Oct
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    Bhuvanpati Sharma commented on your status.
    Bhuvanpati wrote: "सुख के सिक्के का दूसरा भाग दुख"

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  8. Deepak Shukla 1:37pm Oct 16
    वाह सर !! दुखों की अपनी मनोभाषा होती है !! आपकी रचना से ये स्पस्ट हो रहा है !! बहुत बहुत बधाई !! इस उत्कृष्ट सृजन के लिए !! :)
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    Sakhi Singh सच लिखा है

    via fb/bhasha sahodari

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  9. युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच
    Suresh Pal Verma 9:35pm Oct 16
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति
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    Pawan Batra 4:34pm Oct 17
    आदरणीय बहुत खूब
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    Nk Manu 1:37pm Oct 16
    बहुत बढ़िया।
    यथार्थवादी रचना।
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  10. युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच
    .Anupam Kumar 12:11am Oct 17
    दुखः की व्यथा का भाव लिये उत्कृष्ठ गीतिका....वाह...आदरणीय .. वाह ...हृदय तल से बधाई आपको इस सुन्दर सृजन के लिये !
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    Ramkishore Upadhyay 11:00am Oct 16
    बहुत सुन्दर रचना ...अद्भुत ....आदरणीय

    via fb

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