Tuesday 10 July 2018

मेरी गौरैया


मेरी गौरैया
------------
मेरी गौरैया  बच कर रहियो
यहाँ दरिन्दे आम हैं
ना उनके बेटी ना उनकी बहना
उनका संगी काम  है ।

पहन मुखौटे तरह तरह के
सब को यह भरमाये हैं
मानवी रिश्तों का मोल नहीं 
राक्षसों के यहाँ जाए हैं ।

मानसिकता है गिरी हुई
चेतना शुन्य लोग यहाँ
इनसे बचके रहना गौरैया
नोचने को तत्पर यहाँ ।

इन गिद्दों से बच कर रहना
आकाश में मंडराते हैं 
जहाँ  देखी इकली गौरैया
झपटा मार ले जाते हैं ।

छतरी के नीचे कब तक रखूँ  मैं
आखिर बाहर निकलना है 
लड़ना मरना सीख ले गौरैया
अब तो यही तेरा गहना है ।

निर्भया संस्कृति दिव्या
गीता हो या आसिफा
कब तक भोग्या बन रहेंगी
भारत की ऐसी बेटियां
पंजों को तू पैने कर ले
पंखों को तू डैने कर ले
समाज नपुंसक तब भी अब भी
कुत्तों का तू पौरुष हर ले ।

एक गौरैया  निर्भया भी  थी 
जागृत कर, जो विलीन हो गई
मशाल बन तुम, जलते रहना
जो  अपना अस्तित्व बचाना है ।

मेरी गौरैया  बच कर रहियो
यहाँ दरिन्दे आम हैं
ना उनके बेटी ना उनकी बहना
उनका संगी कामहै । ।
---------------------------------------------------
सर्वधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल
https://hindi.sahityapedia.com/?p=98137

13 comments:

  1. Deepika Maheshwari
    July 10 at 9:21 PM
    बहुत सुन्दर.. सरल.. सरस.. अभिव्यक्ति.. 💐💐💐
    ----------------via fb/TL

    ReplyDelete
  2. via fb/निर्झरणी भावनाओं की
    --------------------------
    Ramkishore Upadhyay
    July 11 at 9:55 PM
    यह अमर कृति है

    ReplyDelete
  3. Rajnee Ramdev
    July 10 at 9:42 PM
    कविता का एक एक शब्द अन्तस् तक बींध जाता है
    ---------------------------via fb/TL

    ReplyDelete
  4. Jai Bhagwan Sharma
    July 10 at 9:44 PM
    आपकी कविता आज भी उतनी ही परसंगिक है जितनी उस समय थी। समाज में दरिंदगी बढ़ती ही जा रही हैजो की चिंता का विषय है जो आपकी कविता में झलकता है।
    -------------------------------via fb/TL

    ReplyDelete
  5. निशि शर्मा 'जिज्ञासु'
    July 10 at 9:57 PM
    बहुत भावपूर्ण रचना
    ------------via fb/TL

    ReplyDelete
  6. Rajeshwer Sharma
    July 10 at 11:31 PM
    Marmik rachna
    ------------via fb/TL

    ReplyDelete
  7. Sharda Madra
    July 11 at 6:25 AM
    अति सुंदर मार्मिक कविता।
    ----------------via fb/TL

    ReplyDelete
  8. via fb/TL
    ------------
    Hasmukh Mehta
    July 12 at 11:46 AM
    nice poem...स्त्रियों की सुरक्षा गुरुवार, १२ जुलाई २०१८ सही मायनो में कलियुग हम में समा गया है हमारे उसूलों को खोखला कर गया है हमारी आँखों में पर्दा डाल गया है इंसानी रिश्तों को शर्मसार कर गया है। क्या देहांतदंड ही इसका इलाज है ? किसी को बेइज्जत करना जायज है ? "घृणास्पद काम करके मार देना " कितना उचित है समाज में रहना है तो स्त्रियों की सुरक्षा हमारा जिम्मा है। हसमुख अमथालाल मेहता

    ReplyDelete
  9. Via fb/ट्रू मीडिया साहित्यिक मंच
    ----------------------------
    हरियाणा गौरव सुनील शर्मा 1:38pm Jul 12
    बहुत मार्मिक आदरणीय

    ReplyDelete
  10. via fb/ट्रू मीडिया साहित्यिक मंच
    ---------------------------
    वसुधा कनुप्रिया 1:38pm Jul 12
    आत्मा को झकझोरती, भावपूर्ण अभिव्यक्ति व प्रभावी प्रस्तुति आदरणीय ।

    ReplyDelete
  11. via fb/ट्रू मीडिया साहित्यिक मंच
    -----------------------------
    Ramkishore Upadhyay 1:38pm Jul 12
    मार्मिक रचना ,,कालजयी

    ReplyDelete
  12. via fb/ट्रू मीडिया साहित्यिक मंच
    --------------------------
    A S Khan Ali 1:38pm Jul 12
    saarthak Rachna ki Sundar Prastuti!

    ReplyDelete
  13. वसुधा कनुप्रिया
    July 14 at 4:33 PM
    अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्ति! दुखद है कि परिस्थिति और बिगड़ रही है दिन प्रतिदिन
    ---------------------via fb/TL

    ReplyDelete