Friday 15 June 2018

हॉस्पिटल !

हॉस्पिटल !


बेपन्हा कष्टों और दुखों को देखा है मैंने
हस्पतालों में आसरा लेते हुए
लाचारी की भी हिम्मत देखी है मैंने
निराशाओं से टक्कर लेते हुए
आंसन नहीं रोगियों की मनोबल को समझना
जिन्दगी को भी देखा है मैंने
मौत के चंगुल से निकलते हुए.
एक नई दुनिया है यह अपने में हर दर्द समेटे हुए
आशा निराशा में हर कोई त्रिशंकु बने हुए
जो जीत जाये यहाँ ,  बस वह मुस्कुरा देता है 
जो I गया ,वह मौत को दुआ देता है.
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सर्वाधिकार सुरक्षित/मन  की तरंग/2012/त्रिभवन कौल

1 comment:

  1. All comments via fb/मुक्तक-लोक.
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    Subhash Singh 3:19pm Jun 15
    मार्मिक अभिव्यक्ति, नमन आदरणीय
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    Yashodhara Singh 3:22pm Jun 15
    बहुत सुंदर
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    Shyamal Sinha 5:52pm Jun 15
    सार्थक चित्र वाहह सुस्वागतम सहर्ष आद
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    Rakesh Mishra 6:39pm Jun 15
    हृदयस्पर्शी सृजन
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    Suresh Tiwari 8:15pm Jun 15
    वाह्हह्ह्ह् बहुत सुन्दर सृजन आदरणीय
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    Kviytri Pramila Pandey 11:06pm Jun 15
    हार्दिक बधाई बहुत सुन्दर रचना
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    Mahatam Mishra 11:06pm Jun 15
    अतीव अनुपम चिंतन सर वाह वाह
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    गुप्ता कुमार सुशील 11:06pm Jun 15
    भावपरक प्रस्तुति...जयहो.नमन आदरणीय.🙏
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