एक अवलोकन :-
ज़िंदा है मन्टो ( लधु कथा -संग्रह
) / केदारनाथ 'शब्द मसीहा '
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चाय पीने वालों को अगर काफी मिल जाए
तो काफी का हल्का तीखापन एक नए स्वाद से परिचित करा देता है। दिमाग और शरीर को भी एक नयी ताज़गी और स्फूर्ति का अनुभव कराता है। यही हाल
शब्द मसीहा उर्फ़ केदार नाथ द्वारा रचित लघु
कथा संग्रह ' ज़िंदा है मंटो ' अपने पाठकों के साथ कर सकता है यदि पाठक लघु कथाओं के
इस दस्तावेज़ को अत्यंत ही बारीकी से पठन करें तो । छोटी छोटी कथानकों में सिमिटी विषयवस्तु की गहराई, इंसानियत को उकेरती संवेदनाएं
,समाज में उपजी कड़वाहट, उपेक्षा , वेदना ,संघर्ष की प्रस्तुति वास्तव में सआदत हसन
मंटो की याद दिलाती है और पुस्तक के
आवरण और शीर्षक को सार्थक करती हैं।
हर एक कथा मूल रूप से एक विचार की गहन
प्रस्तुति है। किसी भी
कथा को लीजिये, हर कथा में एक विचार को लेखक ने संकेतात्मकता से और सहजता से कलमबंद
किया है। अदा , एडिटर , ज़िंदा ताजमहल , देवदासी
, विक्षप्तता की झलक , अर्थ , गौ रक्षक , गणतंत्र, बयान , भयानक सपना , हिरणियां आदि
जैसी कथाएं न केवल सामाजिक मानसिकता पर चोट करती दिखाई देती हैं, अपितु समाज में हो
रहे उन कार्यकलापों को तीखे कटाक्षों के ज़रिये उजागर भी करती हैं जो एक निकृष्ट सोच
का परिणाम होती हैं। :-
"स्टेनो भन भना कर बिग बॉस के
कमरे में चली गयी। अगले दिन बॉस के नाम पट्टिका की जगह स्टेनो का नाम था।" / अदा
"शाम को एक नयी कहानी ने जन्म
लिया। अब वह कई बार छप चुकी हैं , पत्रिका
और क्लब में।"/ एडिटर
"अगले दिन अख़बार में खबर छपी
- जंगल में एक युवती को जानवर ने अपना शिकार बनाया। नेता जी का प्रचार अनवरत चल रहा
है। चमचे दाव छिपाये मस्त सांड की मानिंद घूम
रहें हैं, हाथ जोड़ने की नौटंकी करते।
"/ दाव
'सर ! मैं अपनी काबलियत पर भरोसा करती
हूँ , देवदासी बनना मुझे मंज़ूर नहीं।'
कमर अनेक झन्नाटोँ से गूँज रहा था। /देवदासी
" अगर हम इस नेता की बातों में
नहीं आते तो आज हमारे बच्चे ज़िंदा होते "/ समरसता
"पड़े रहो चुपचाप और सो जाओ। मशीन तो मैं भी नहीं हूँ, सुबह पांच बजे उठना है
और चूल्हे चौके में खटना है। हिम्मत नहीं है
अब तुम्हारे लिए बिछने की मुझमे "/ गुलामी का अनुबंध
बहु के पोते से कहे शब्द कानो में हथोड़े
से बज रहे थे। " दादा से दूर से बात किया
करो .......जर्म्स लग जायेगे बीमारी के "/ जर्म्स
लेखक शब्द मसीहा प्रशंसा की पात्र हैं
जिन्होंने अपनी इन छोटी छोटी कहानियों को भावशैली और भाषाशैली की प्रभावात्मकता से
बखूबी सवांरा है। संकेतात्मकता और व्यंग्यात्मकता को लेखक ने हर कथा में भरपूर जिया है। प्रत्येक लघु कथा का कथ्य एक अनोखे शिल्प विधान
के साथ संरंचित यथार्थ के धरातल पर उस तीर के समान प्रतीत होती है जो पाठक के मछली
रुपी हृदय को भेदने हेतु तत्पर है।
रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बहुत कुछ घटित होता है और हर बार कुछ नया I इसीप्रकार से कथा-कहानी में भी अगर कुछ नयापन
नहीं होगा तो पाठकों की रूचि भी उनमे नहीं रहती I स्त्री का शोषण, , गरीबी, बुज़ुर्गों
की उपेक्षा, पति-पत्नी के सम्बन्ध, लाचारी,लचर मानसिकता , राजनीतिक पैंतरे जैसे विषयों पर अनगिनित बार लिखा जा चुका है तो
अब रचनाकार कुछ नया तो लिखे चाहें विषय यही क्यों ना हों I इसी में रचनाकार की प्रवीणता
का आभास होता हैI लघुकथाएँ अपने आकार, प्रकार और प्रभाव से प्रशंसित होती हैं, यह मेरा
मानना हैI केदारनाथ शब्द मसीहा ने इन्ही चिरपरिचित विषयों को ही सही पर एक नए मोहक अंदाज़ में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया
है कि पाठक इन लघु कथाओं को पढ़ने पर मजबूर हो जायेंगे। एक रचनाकार का दायित्व है की
वह समाज को यथार्थ के धरातल पर रची रचनाओं को द्वारा उन समस्याओं से अवगत छोटी छोटी कहानियों/ कविताओं के माध्यम से कराएं जो समाज के सामने तो हैं पर
उनपर कोई विचार नहीं करताI यही नहीं रचनाकार
समाज की चेतना पर चोट करते हुए तभी जागरूकता ला सकता है जब वह अपने पाठकों को उन समस्याओं
का समाधान भी सुझाएँ, यह मेरी निजी राय है।
इन लघु कथाओं में लेखक ने उन तमाम बिम्बों
को प्रतीक बनाया है जो समसामयिक हैं, आधुनिकता की छायी धुंध के सन्दर्भ में हैं और
संवेदनाओं की सूक्ष्मता लिए हुए है। यही कारण
है कि केदारनाथ 'शब्द मसीहा ' की हर कथा पाठकों को प्रवाहमयी और जीवंत लगेंगी................
शायद सआदत हसन मंटों की तरह।////////////////////////
त्रिभवन कौल
स्वतंत्र लेखक-कवि
06-03-2017
ज़िंदा है मन्टो ( लधु कथा -संग्रह
) / केदारनाथ 'शब्द मसीहा '
के बी एस प्रकाशन , नई दिल्ली -११००१९
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beautifully written
ReplyDeleteHaardik Dhnyvaad aapka :)
DeleteTribhawan Kaul Sahab .....hardik aabhar aapka ji ...aapne apna kiimati samay diya aur apne snehmayi shabdon se mera utsaah vardhan kiya . Hruday se aabhaari hoon aapka ji .
ReplyDeleteSwagat hai. Hardik Badhayi :)
Deleteनीरजा मेहता 'कमलिनी'
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर समीक्षात्मक प्रस्तुति, Tribhawan Kaul जी आपको और शब्द मसीहा जी को हार्दिक शुभकामनाएं।
March 12 at 1:53pm
------------------------via fb/युवा उत्कर्ष साहित्यक मंच
Shyamal Sinha
ReplyDeleteज़िंदा है मिंट,,
बहुत खूबसूरत रचना आद सुस्वागतम सहर्ष
March 12 at 7:18pm
--------------------------via fb/युवा उत्कर्ष साहित्यक मंच
Ramkishore Upadhyay
ReplyDeleteकेदार नाथ की लेखनी सशक्त है और वो मंटो कॊ कहानी में जिंदा रखने में सक्षम है ।मंटो एक अलहदा किस्म की कथा लेखन की परम्परा के जनक है जो भाषाई प्रांजलता के चक्रव्यूह में न फँसकर सीधे सीधे पाठक से सम्वाद करती है ।बधाई उन्हें भी और आपको भी । March 12 at 9:22pm
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Shelleyandra Kapil
Bilkul shi
March 13 at 10:52am
-------------------via fb/युवा उत्कर्ष साहित्यक मंच