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रात के अँधेरे से मुझे डर नहीं लगता
उजाले की भीड़ में खुद को तन्हा पाता
हूँ
मदद की गुहार लगा रहा वह शख़्स भी तन्हा
इंसां को मौत से मांगते पनाह देखता
हूँ।
खुद को ख़ुदा समझ बैठा, इंसान वह भी
खुदी से खुद को कर जुदा बैठा,इंसान
वह भी
फिर क्यों सोचे कोई कि " मैं तन्हा
क्यों हूँ ?"
"मैं भी तो इंसान हूँ पर जुदा क्यों हूँ ?".
रिश्ते सारे सिमिट गए तकनीकी औज़ारों
में
बात अब होती नहीं गलियों में, बाज़ारों
में
हरे भरे जंगल पतझड़ की ज़द में आ गए
प्यार रह गया अब यादों की गलियारों
में।
करिश्मा कर ! राख से उठ हम उड़ने लगें
प्यार की भाषा फिर से हम समझने लगें
आधुनिकता ने हमको हमसे दूर कर दिया
काश !एक बार वह बचपन फिर से आने लगे।
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल
Sanjay Kumar Giri
ReplyDeleteवाह वाह बहुत सुंदर पंक्तियाँ लिखी है आपने ----------आधुनिकता ने हमको हमसे दूर कर दिया
काश !एक बार वह बचपन फिर से आने लगे।
March 27 at 11:18pm
------------------------------------via fb/TL
Main Hoon Ali
ReplyDeleteTaknik pe prahar , rishton se pyar...waah sir
March 27 at 11:19pm
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Parupudi Satyavenkatavinodkumar
Atyant sukshm vivechana ki hai aapne Aajkal ke madandh daur ki.......
March 27 at 11:22pm
-----------------------via fb/TL
Reeta Grover
ReplyDeleteवाह ! क्या उत्तम प्रस्तुति है ।
• March 27 at 11:25pm
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Tapeshwar Prasad
"करिश्मा कर ! राख से उठ हम उड़ने लगें
प्यार की भाषा फिर से हम समझने लगें"
The bane of modernity and the Phoenix's wishes!
Superb!!
March 27 at 11:47pm
----------------------via fb/TL
Pawan Jain
ReplyDeleteबेहतरीन
March 28 at 12:00am
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Savita Saurabh
वाह बेहतरीन सृजन आदरणीय
March 28 at 12:02am
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Ramkishore Upadhyay
वाह वाह और वाह
March 28 at 12:39am
----------------------via fb/TL
वसुधा कनुप्रिया
ReplyDeleteBeautifully penned! Reference to the Phoenix adds charm to the concluding lines.
March 28 at 3:39am
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Lata Yadav
वाह वाह लाजवाब अभिव्यक्ति आदरणीय
March 28 at 4:18am
------------------------via fb/TL
Deo Narain Sharma
ReplyDeleteसमसामयिक बहुत सुन्दर कविता।प्रशंसनीय और श्लाघनीय है।
टूटते बनते बिगडते मानवीय सम्बन्ध के गलियारों में व्यक्ति सोचनीय हो गया है।
नूतन सोच और आधुनीकरण हर दिशा में बढकर सत्य पहचान को खोता चला जा रहा है।आपसी सम्बन्धों ,नीतियों, बिचारों में नये कलेवर ने सबको चरमराकर रख दिया है।हर दिशा में एक सोचनीय स्थिति का समावेश जीवनयापन में पनप उठा है जो चिंतनीय है।
March 28 at 4:47am
++++
Tribhawan Kaul
बहुत सुंदर विचारणीय विवेचना की है आदरणीय Deo Narain Sharma जी हार्दिक आभार। :)
March 28 at 11:03am
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Dildar Dehlvi
ReplyDeleteWaaaaaaaah bhaut khoobsurat Nazam Mubarakbad janab
March 28 at 7:00am
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Ramesh Rai
सुन्दर अभिव्यक्ति .
March 28 at 7:17am
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Nanda Noor
BARIYA AAP KI PARTIBHA KO SALAAM****
March 28 at 7:33am
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ओम प्रकाश शुक्ल
सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय
March 28 at 7:35am
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Omprakash Prajapati
सुन्दरम
March 28 at 8:04am
----------------------------fb/TL
Shwetabh Pathak
ReplyDeleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ लिखी है आपने । सच में आधुनिकता ने हमें यथार्थ से दूर कर दिया है ।
March 28 at 8:12am
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Hari Lakhera
बहुत सुंदर। पर करें भी तो क्या। एक तरफ़ आधुनिक बनने की होड़ दूसरी तरफ़ पीछे खींचता यथार्थ।
March 28 at 8:34am
+++
Tribhawan Kaul
वास्तविकता से रूबरू इंसान ही होता है और ईश्वर ने उसे वह समझ दी है कि इस होड़ में ना बहे। पर क्या कहें? ... हार्दिक आभार। :)
March 28 at 11:10am
----------------------------------fb/TL
Manisha Chauhan
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना आदरणीय
March 28 at 10:02am
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A S Khan Ali
अत्यंत भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
March at 10:18am
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Arun Sharma
आधुनिकता का अभिशाप!
March 28 at 10:28am
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Pushp Lata
बेहतरीन सृजन आदरणीय बधाई संग नमन
March 28 at 11:00am
------------------------fb/TL
Anil Sahai
ReplyDeleteVery lovely poem, great
Regards
March 28 at 11:19am
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Suresh Pal Verma Jasala
वाहहहह बहुत खूब आदरणीय
March 28 at 12:46pm
------------------------fb/TL
Indira Sharma
ReplyDeleteAaj ki jindagi kasach bahut sundar shabdon men piroya aapne.
March 28 at 1:43pm
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Ranjana Patel
वाह! अति सुन्दर सर
March 28 at 3:41pm
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Meenakshi Sukumaran
रिश्ते सारे सिमिट गए तकनीकी औज़ारों में
बात अब होती नहीं गलियों में, बाज़ारों में
हरे भरे जंगल पतझड़ की ज़द में आ गए
प्यार रह गया अब यादों की गलियारों में।....behad behad khoobsurat
March 28 at 3:48pm
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Meenakshi Sukumaran
खुद को ख़ुदा समझ बैठा , इंसान वह भी
खुदी से खुद को कर जुदा बैठा, इंसान वह भी
फिर क्यों सोचे कोई कि " मैं तन्हा क्यों हूँ ?"
"मैं भी तो इंसान हूँ पर जुदा क्यों हूँ ?".wahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh
March 28 at 3:49pm
-------------------------------via fb/TL
Manoj Kamdev Sharma
ReplyDeletebahut khoob
March 28 at 4:33pm
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पंकज कुमार
गज़ब जी
March 29 at 7:50am
---------------------------via fb/TL
via fb/ ASH'AAR ..EXPRESSION OF EMOTIONS.
ReplyDelete-------------------------------------------
Saira Qureshi 12:36pm Mar 28
Dear friends Read this amazing price of art of Our very own Tribhawan Kaul beautifully crafted sir, couldn't resist sharing .Vijay Tanna डॉ विवेक सिंह Tahir Qawwal Rakesh Trehan Pooja Rahi Madhumita Bhattacharjee Nayyar Ravinder Sharma Kuldip Salil AnjumKanpuri GurdeepSingh Kohli Tina Gulzar Indu Gupta Indu Kriti Arati Sah
डर
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रात के अँधेरे से मुझे डर नहीं लगता
उजाले की भीड़ में खुद को तन्हा पाता हूँ
मदद की गुहार लगा रहा वह शख़्स भी तन्हा
इंसां को मौत से मांगते पनाह देखता हूँ।
खुद को ख़ुदा समझ बैठा , इंसान वह भ
खुदी से खुद को कर जुदा बैठा, इंसान वह भी
फिर क्यों सोचे कोई कि " मैं तन्हा क्यों हूँ ?"
"मैं भी तो इंसान हूँ पर जुदा क्यों हूँ ?".
रिश्ते सारे सिमिट गए तकनीकी औज़ारों में
बात अब होती नहीं गलियों में, बाज़ारों में
हरे भरे जंगल पतझड़ की ज़द में आ गए
प्यार रह गया अब यादों की गलियारों में।
करिश्मा कर ! राख से उठ हम उड़ने लगें
प्यार की भाषा फिर से हम समझने लगें
आधुनिकता ने हमको हमसे दूर कर दिया
काश !एक बार वह बचपन फिर से आने लगे।
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल /
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Arati Sah
Sachhi saira ji bachpan ki baat hi alag hi h
March 28 at 12:54pm
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Vijay Tanna
Behtareen
March 28 at 1:01pm
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Saira Qureshi
Tribhawan Kaul sir this is beautiful keep writing .God Bless you
March 28 at 1:04pm
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Indu Gupta
Indu Gupta
Beautiful
March 28 at 1:08pm
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Pratima Rakesh
ReplyDeleteApril 1 at 3:43am
काश.....!
---------------via fb/TL
Savita Saurabh
ReplyDeleteमानव समाज के आपसी सम्बन्धों की पड़ताल करती सुसंगठित एवम् सामयिक सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय
April 1 at 6:46am
------------------via fb/TL
Jai Singh Ashawat
ReplyDeleteApril 2 at 2:44pm
कविता सरिता से..।।।। वाह आदरणीय वाह
--------------------------via fb/TL
Pratima Rakesh
ReplyDeleteApril 21 at 8:54am
सारे रिश्ते सिमट गये ....!
-------------------------via fb/TL
ReplyDeleteTreena Mukerjea
बढ़िया
May 3 at 12:58pm
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Kameshwari Kulkarni
Superb
Had missed it. Thanks for posting here Sir.😊
May 3 at 3:24pm
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K-Avi Mishra
Umda
May 3 at 3:54pm
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Aseem Chandna
Today's reality aptly woven into a lovely poem.. Thanks for sharing 👆👍👏✌
May 3 at 10:53pm
--------------------Via FB/Max-meet Social
Rehana Shaikh
ReplyDeleteBehtreen likha he aapne
May 4 at 8:08pm
-------------------via FB/Max-Meet Social
Via fb/TL in the month of April 2017
ReplyDeleteAnanda Kamble
Nice ji
April 6 at 4:37pm
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Lata Yadav
डर
रात के अँधेरे से मुझे डर नहीं लगता
उजाले की भीड़ में खुद को तन्हा पाता हूँ
बहुमुखी प्रतिभा के धनी त्रिभुवन कौल जी को लता यादव की हार्दिक शुभकामनायें
April 20 at 11:50pm
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Pratima Rakesh
सारे रिश्ते सिमट गये ....!
April 21 at 8:54am
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