2017 नव वर्ष के दिन बंगलोरू में हुए
महिलाओं से हुए उत्पीडन के विरोध में प्रस्तुत एक काव्य रचना :-
आह ! यह कैसी मानसिकता है ?
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भीड़ भाड़ के हो हल्ले में
गुंडे मवाली संभ्रान्त मनचले
विकारों के मरीज़
ना सभ्यता ना कोई तमीज
अपने घर में बहनों पर भड़कने वाले
दूसरों की बहनो पर नज़र डाले
खुलेआम नोचते हैं
ज़िस्म के हर उस भाग को
जो उनके मोतिया बिंधी चक्षुओं को
कसाई की दूकान पर लटके
बकरी के मांस सा लगता है
आह ! यह कैसी मानसिकता है ?
हराम के इन पिल्लों को
पिल्ला भी नहीं कह सकते
पिल्लों की तोहीन होती है
इनकी अपनी माँ बहन बेटी बहु भी
नज़रों में इनकी शायद माशूक होती है
संस्कारों की दुहाई क्या दें
कर्म इनकी बलि चढ़ाते हैं
समाज में फैले कोड हैं यह
लचर व्यवस्था को ठेंगा दिखाते हैं
देश इनके रहते रसातल सा लगता है।
आह ! यह कैसी मानसिकता है ?
क्यों नहीं संगसार करते ?
पुरुषत्व को तार तार करते ?
इन वहशियों को छोड़ना क्यों ?
क्यों नहीं शर्मसार करते ?
नपुंसकों का देश
अब मुझको लगने लगता है
आह ! यह कैसी मानसिकता है ?
आह ! यह कैसी मानसिकता है ?
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सर्वाधिकार सुरक्षित / त्रिभवन कौल
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Shwetabh Pathak ओह्ह । बिलकुल बहुत ही मार्मिक और सही शब्दों में धिक्कारा है आपने इन्हें ।
ReplyDeleteबहुत ही ज्वलंत कविता है ये ।
January 5 at 3:49pm
---------------------via fb/tl
Ashi Poetess
ReplyDeletewhat a power packed slap on sick minded people... brilliant work Tribhawan Kaul sir
January 5 at 4:16pm
----------------------via fb/tl
Rashmi Jain
ReplyDeleteबेहद मार्मिक, सटीक और सार्थक कविता
January 5 at 5:04pm
-----------------------via fb/tl
ReplyDeleteSuresh Pal Verma Jasala
वाहहहह आदरणीय उचित धिक्कार,, सही फटकार,, वहशियों पर आक्रोश तो होना ही चाहिए,, और उचित दंड भी मिलना चाहिए
January 5 at 6:52pm
----------------------via fb/tl
Shailesh Gupta
ReplyDeleteधिक्कार है ऐसी.... अमानवीय मानसिकता को..... और.... प्रसाशनिक नपुंसकता को.... !!.... बहुत सटीक.... शब्दों में आपने धिक्कारा है.... !!.... साधुवाद... !
January 5 at 9:14pm
---------------------via fb/tl
Hari Lakhera
ReplyDeleteएकदम सही ।
January 6 at 6:32am
--------------------via fb/tl
वसुधा कनुप्रिया
ReplyDeleteविकारों के मरीज़....
सही कहा आपने । ये धिक्कार ही के लायक हैं । दुख की बात यह है कि वीडियो प्रूफ होने के बाद इन्हें कड़ी सज़ा नहीं दी जाती
January 6 at 10:08am
---------------------via fb/tl
A S Khan Ali
ReplyDeleteNisandeh Bhavpoorn Abhivyakti!
January 6 at 12:51pm
---------------------via fb/tl
Azaya Kumar
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर बधाई हो! आदरणीय
January 6 at 8:45pm
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Poet M Hussainabadi Mujahid
Wahhhhhh Sundar jnaab
Smaaj me phaile,,,,,kodhhhhhhhhh
Umda
January 6 at 8:56pm
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मुसाफ़िर व्यास
ये गाँधी की आजादी है साहिब ------------ जिसका आपने सही सही चित्रण किया है
------------------------via fb/Muktak Lok
Trimbak Kale
ReplyDeleteऐसे हरामीको नपुंसक बनाके छोडो,
यही एक इनकी दी हुई सजामें जोडो,
तभी ऐसे दुराचारीओंको सबक मिलेगी,
आगे कभी किसीकी हिम्मत ना होगी,
January 6 at 10:36pm
------------------------via fb/Max Meet-social
मुरारि पचलंगिया
ReplyDeleteबहुत खूब
January 6 at 8:46pm
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Azaya Kumar
बहुत सुंदर वाह्ह्हह्ह
January 6 at 8:56pm
----------------------via fb/Purple Pen
Neelofar Neelu
ReplyDeleteउफ़्फ़.....!!! बेहद हृदयविदारक घटना की बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति आदरणीय कौल साहब।
सचमुच ऐसी मानसिकता वाले इंसान पुरुष नहीं भेड़ियों से भी बदतर हैं। इन्हें पत्थरों से मार मार कर ख़त्म कर देना ही उचित है। धिक्कार है हमारी नपुंसक कानून व्यवस्था पर जो ऐसे लोगों को सरेआम घूमने की छूट देती है। इस से तो शायद कुछ मुस्लिम देशों की न्याय व्यवस्था बेहतर है जहाँ भले ही तानाशाही का माहौल हो, किन्तु अपराध तो नगण्य हैं चूँकि कड़े दण्ड और शीघ्रतिशीघ्र न्याय होने का आतंक इतना है कि अपराधी भी अपराध करने से डरता है।
काश हमारे देश में भी ऐसी ही कोई व्यवस्था हो जाए तो कितनी खुशहाली आ जाए जब हमारी बहन बेटियां या बहुएं निर्भय हो कर विचरण कर सकें। उन्हें भी किसी स्त्री मात्र के स्थान पर इंसान समझा जाए।
January 7 at 8:25am
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Tribhawan Kaul
कितना सही कहा है। ऐसे अपराधों का दंड विधान मुस्लिम देशों के समान हो तो शायद ऐसे विकृत मानसिकता रखने वालों की समाप्ति हो जाए। पर मानव अधिकार वाले पहले सुप्रीम कोर्ट पहुंचगें। :)
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Neelofar Neelu
जी यही तो ख़ामी है हमारे कानून की जो बनिस्बत कुसूरवार को सज़ा देने के, सालों उसकी हिफाज़त तक करता है भले ही वो कोई दहशतगर्द क्यों न हो? इसे देखकर खून खौल उठता है।
----------------------via fb/Purple Pen