मुझे जब भी तेरी आरजू रही है
यादों के झरोंखों से निकाल
हवा में फैला देता हूँ
फिर से उन्हें समेटने के लिए,
..................सांसों के ज़रिये .
Mujhe jab bhi teri aarzoo rahi hai
Yaadon ke jharokhon se nikaal
Hava mein faila deta hoon
Phir se unhe sametne ke liye,
.................... sanson ke zariye.
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सर्वाधिकार सुरक्षित/ त्रिभवन
कौल.
Enter your comm नई कविता के विम्ब का सुन्दर प्रयोग .
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति, आपकी सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद :)
DeleteShivani Sharma ओह्ह्ह्! ! बेहद खूबसूरत....
ReplyDeleteJanuary 25 at 12:37pm
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Om Prakash Shukla वाह ,,, सर वाह
January 25 at 2:05pm
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संगीता सिंह 'भावना' बहुत खूब
January 25 at 2:25pm
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Ashok Ashq वाह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह बेहद उम्दा क्या कहने
January 25 at 2:29pm
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via Yuva Utkarsh Sahityk Manch
Prince Mandawra वाह्ह्ह्ह शानदार
ReplyDeleteJanuary 25 at 3:01pm
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Poet M Hussainabadi Mujahid वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्
सुन्दर
January 25 at 3:10pm
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Indira Sharma अद्भुत
January 25 at 4:41pm
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Mona Singh वाह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह अतीव सुंदर रचना
January 25 at 5:13pm
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Sushma Singh आदरणीय अति सुंदर
January 25 at 5:15pm
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via Yuva Utkarsh Sahityk Manch
Shipra Shilpi वाह्ह्ह्ह्ह्ह् बहुत सुन्दर सर कम शब्दों में भावों का अविरल प्रवाह् ,अनुपम सृजन वाह्ह्ह्ह् हार्दिक बधाई
ReplyDeleteJanuary 25 at 8:07pm •
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वसुधा कनुप्रिया
वसुधा कनुप्रिया वाह, बहुत ख़ूबसूरत ख़याल, आदरणीय कौल सा'ब
January 25 at 7:41pm
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Chanchala Inchulkar Soni वाह्ह्ह् बहुत खूबसूरत
January 25 at 10:14pm
Ramkishore Upadhyay वाह '
January 25 at 10:57pm
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via Yuva Utkarsh Sahityk Manch