Thursday, 21 November 2013

हॉस्पिटल !

हॉस्पिटल !


बेपन्हा कष्टों और दुखों को देखा है मैंने
हस्पतालों में आसरा लेते हुए
लाचारी की भी हिम्मत देखी है मैंने
निराशाओं से टक्कर लेते हुए
आंसन नहीं रोगियों की मनोबल को समझना
जिन्दगी को भी देखा है मैंने
मौत के चंगुल से निकलते हुए.

एक नई दुनिया है यह , अपने में हर दर्द समेटे हुए
आशा निराशा में हर कोई त्रिशंकु बने हुए
जो जीत जाये यहाँबस वह मुस्कुरा देता है
जो I गया ,वह मौत को दुआ देता है.
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सर्वाधिकार सुरक्षित/मन  की तरंग/2012/त्रिभवन कौल

7 comments:

  1. Comments via Kavitalok/FB
    Om Neerav Nov 21
    .लाचारी की भी हिम्मत देखी है मैंने
    निराशाओं से टक्कर लेते हुए
    आंसन नहीं रोगियों की मनोबल को समझना
    जिन्दगी को भी देखा है मैंने
    मौत के चंगुल से निकलते हुए......... जीवन मृत्यु के संघर्ष को इतनी निकटता से या तो डॉक्टर देख सकता या फिर कवि ! ..... लेकिन उसकी सकारात्मक अभिव्यक्ति कोई आप जैसा धनि कवी ही कर सकता है ! आपकी लेखनी का अभिनन्दन

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  2. Via Kavitalok/FB

    संदीप कुमार पटेल Nov 21
    बहुत सुन्दर रचना बधाई हो आदरणीय

    Vikas Nema Nov 21
    बहुत बढ़िया कहा है,त्रिभवन जी.

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  3. Comments via Kavitalok/FB

    Yamuna Prasad Dubey Pankaj Nov 21
    bahut shandaar rachna,badhai




    Rajesh Kumari Nov 21
    जी इसी को जीवन चक्र कहे हैं --जो जीत जाये यहाँ , बस वह मुस्कुरा देता है
    जो हIर गया ,वह मौत को दुआ देता है.
    ----बहुत गहन मार्मिक पंक्तियाँ किन्तु यही सच है ,बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर


    Gautam Jain Nov 21
    v.nice
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  4. Stark realities of our lives expressed powerfully and beautifully.

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  5. Via fb/Muktak Lok as on 03/04 May 2016
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    Nirmla Kapila
    त्रिभवन कौल जी सुन्दर रचना
    पतझड़ बसंतो का सिलसिला है ज़िंदगी कभी इनायतें तो कभी गिला है जिंदगी।
    आपकी रचना को समर्पित मेरी कविता की दो पंक्तिया।
    June 3 at 1:15pm
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    Chhaya Shukla
    वाह्ह्हह्ह
    June 3 at 1:25pm
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  6. Via fb/Muktak Lok as on 03/04 May 2016
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    Lata Yadav
    आदरणीय
    Tribhawan Kaul ji
    नमस्कार
    'कितनी आसानी से हँसकर कह दिया और चल दिये,
    दर्द की दुनिया में जी कर देख लेते एक दिन,
    रोज जीते रोज मर कर जिन्दगी की गोद में,
    मौत से लड़ कर कभी थक जाएंगे हम एक दिन

    हार्दिक शुभकामनाएँ आपको वीर जी
    June 3 at 1:29pm
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    Ramaniwas Tiwari
    बहुत सुंदर वाहहहह
    June 3 at 2:51pm
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  7. Via fb/Muktak Lok as on 03/04 May 2016
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    Om Narayan Saxena
    अनुपम
    June 3 at 3:13pm
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    Shyamal Sinha
    बहुत सुन्दर सृजन
    June 3 at 5:24pm
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    Yashodhara Singh
    बहुत सुंदर सृजन आदरणीय
    June 3 at 5:48pm
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    Kanti Shukla
    अति सुंदर
    June 3 at 5:53pm
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    हेमन्त कुमार कीर्ण
    अत्यन्त मार्मिक चित्रण।
    June 3 at 7:34pm
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    Veena Nigam
    अत्यंत सुन्दर सृजन
    June 4 at 2:56am
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    Musafir Vyas
    बहुत सुदंर आगाज सर
    June 4 at 8:08am
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    Snehprabha Khare
    बहुत ही मार्मिक
    June 4 at 8:55am
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    Devkinandan Saini
    वाह्ह्ह्ह्ह्ह्
    खूबसूरत सृजन
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