Sunday 8 October 2017

धर्म परिवर्तन!




धर्म परिवर्तन!
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गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली वह बस्ती अल्पसंख्यों की थी। स्थानीय विधायक गुलाम रसूल ने जान बूझ कर मुल्ला मौलवियों के साथ मिल कर आबादी के जीवन स्तर के उत्थान करने की कोशिश कभी नहीं की क्यूंकि उसको पता था यदि ज्ञान का प्रकाश इस आबादी पर पड़ गया तो  वोट बैंक तो गया ही गया, उसका रुआब का ताम जाम भी जाएगा । उसकी नज़र हमेशा दुसरे मजहबों के बाशिंदों को अपने मजहब में परिवर्तित कराने की होती जिसके लिए उसको सरहद पार से काफी पैसा भी मिलता था। मकसद एक था , जितना ज्यादा अज्ञान ,अनपढ़ , ज़ाहिल , नादान वोट बैंक होगा उतने ही उसके समुदाय के विधायक विधान सभा में होंगे और एक दिन ऐसा आएगा जब विधान सभाओं  में उनका बहुमत  हो जाएगा। विधानसभाओं पर कब्ज़ा यानी कि हिंदुस्तान पर कब्ज़ा।  मौलाना करीमबक्श भी इसी चाल का एक मोहरा था।
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सुबह के अंधेरे उजाले में मौलाना करीमबक्श मस्जिद की चारदीवारी से बाहर निकला और लम्बे लम्बे डग भर कर गांव के ओर जाने वाली पगडंडी को नापता हुआ गांव के पश्चिमी छोर पर जा पहुंचा जहाँ से हिन्दुओं की बस्ती आरम्भ हो जाती थी । उसके मन उल्लास से ओत प्रोत था। एक हिन्दू का धर्म परिवर्तन कराने के लिए उसे १० हज़ार रूपये मिलने वाले थे दूर बैठे सरहद पार उसके आकाओं से स्थानीय विधायक द्वारा I

पगडंडी समाप्त हो चुकी थी। मंदिर सामने था जो हिन्दुओं की बस्ती का एक सूचक था। मौलाना करीमबक्श की बांछे खिल गयी। उसने मंदिर के बाहर बैठे एक मैले कुचले वस्त्र पहने एक अधेड़ व्यक्ति को देखा। आस पास किसी को भी ना पा कर मौलाना नाक भौं सिकोड़ता उस व्यक्ति के पास पहुंचा। किसी को अपने पास पा कर उस अधेड़ के हाथ, मांगने के अंदाज़ में फैल गए। 
"क्यों बे हिन्दू हो क्या ?" मौलाना ने पूछा।  अधेड़ ने अपना चेहरा आकाश की ओर कर दिया।
"धर्म परिवर्तन कर। मुसलमान बन जा। सब कुछ प्राप्त होगा। रोटी , कपडा , मकान , पैसा , ऐशो आराम , चार -चार बीबीयाँ " मौलाना ने उसके कान में कहा।
अधेड़ उसको अपने बहुत करीब पा कर सुकुड़ गया। मौलाना बोलता गया।
"क्या दिया है तुम्हारे धर्म ने तुमको। तुम्हारे देवी -देवताओं ने।  गरीबी , लाचारी , भुखमरी।"
अधेड़ की ओर से कोई उत्तर ना पा कर वह झुंझला गया।
अधेड़ ने कुछ नहीं कहा। फटी आँखों से वह उसको देखता रहा और अपने हाथ फिर मौलाना के सामने फैला दिए। तभी गाँव का चौधरी रामधन उनकी ओर आता दिखाई दिया। 
"अरे, मौलाना ! सुबह सुबह ! यहाँ पर। "चौधरी ने पूछा। 
"सलाम, चौधरी। इधर से निकल रहा था। इस गरीब को देखा तो सोचा इसके लिए अल्लाह से दुआ कर लूँ।
'यह! यह तो नूरबख्श है। तुम्हारी ही बिरादरी का है।  गूंगा -बहरा है।  रहने, खाने को लाले पड़े थे सो मैंने मंदिर के बाहर जगह दे दी। खाना भंडारे से खाता है।  जब तक इसके सगे सम्बन्धी का अता-पता नहीं मिल जाता तब तक तुम इसको अपनी मस्जिद में पनाह दे दो।  नमाज़िओं की सेवा भी करेगा और इसको भी दो वक़्त का खाना मिल जाएगा।" चौधरी ने मौलाना से कहा।
पर मौलवी सुन कर भी कुछ नहीं सुन रहा था। उसने उस अधेड़ का हाथ झटक दिया। ' तौबा  तौबा।  खुदा की मार तुझ पर।  मेरा वक़्त ज़ाया कर दिया।  पहले मालूम होता तो ........." अपनी बात पूरी किये बिना ही मौलाना करीमबक्श अपनी बस्ती की ओर निकल पड़ा।  चौधरी रामधन की समझ में कुछ नहीं आया।  उसने उस अधेड़ नूरबख्श को उठाया और अपनी बस्ती की और ले चला।
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल
595 words
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7 comments:

  1. All comments via fb/फलक (फेसबुक लघु कथाएं).
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    Pooja Agnihotry 10:37pm Oct 8
    देखो जिसे मुसलमान बनने पर सब मुहैया करा रहे थे,मुसलमान होने पर कुछ नही
    यही दोगला पन ,समाज की बेड़ियाँ बना हुआ हूँ।
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    सौरभ नरसिंह खरे 11:07pm Oct 8
    आपने बिलकुल सत्य कहा दीदी
    यही हो रहा है देश में
    और दुनिया में
    दूर के ढोल सभी को
    सुहाने लगते हैं
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    Gopal Vinodi 10:37pm Oct 8
    यह काल्पनिक कथा है।
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    सौरभ नरसिंह खरे 11:13pm Oct 8
    अरे भाई चाहे जो भी हो
    कथा तो दमदार है
    बस यही बहुत है
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    Joshi Anurag 8:10am Oct 9
    गोपाल जी कथा है तो सामाजिक स्तिथियों को ध्यान में रख कहानीकार कथा का ताना बाना बुनते हैं
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    सौरभ नरसिंह खरे 11:08pm Oct 8
    बहुत ही उम्दा रचना सर जी
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    Neeraj Jain 10:37pm Oct 8
    बहुत खूब
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    Raajkumar Kandu 12:05am Oct 9
    सुंदर लेखन !
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    CA Prashant Gupta 10:44pm Oct 8
    सही कहा। धर्म बदल लो तो सब मिलेगा पर उसी धर्म के हो तो नहीं।
    जाल तो उन्ही पर फेंका जायेगा जो आजाद हैं जो पहले से ही पिंजरे मे हैं उन पर क्यों टाइम ख़राब करना
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    Bhupinder Khurana 11:08pm Oct 8
    कटु व्यंग है और सत्य है
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    Mahendra Kumar 11:12pm Oct 8
    बहुत सुंदर रचना एवं हकीकत भी

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  2. All comments via fb/युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (न्यास)
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    DrAtiraj Singh
    समाज,धर्म और मानवता मात्र दिखावा करने के लिए नहीं हैंI मानवता एक अनुभूति है जिसका उद्गम आत्मा की आंतरिक गहराई है.........वह समाज व धर्म का ढोंग नहीं है .........हृदय को स्पर्श करता हुआ .......अद्भुत......अविस्मरणीय......
    October 8 at 1:03pm
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    ओम प्रकाश शुक्ल
    बहुत सुन्दर तरीके से आपने इस व्यवस्था की पोल खोली है।
    सादर अभिनन्दन आदरणीय।
    October 8 at 1:50pm
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    Kviytri Pramila Pandey
    बहुत सुन्दर चित्रण मानव को मजहब ही भ्रम मे ढकेलता है फिर भी मानव धर्म सबसे बड़ा है
    October 8 at 5:05pm
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    अंशु विनोद गुप्ता
    सब जगह यही गोरख धंधा है ।अपनों से परहेज़ , दूसरों के द्वार पर नज़र डाल सवाब कमाने की आदत । बहुत सुंदर ह्रदय को स्पर्शित करती ।
    October 8 at 5:47pm
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    Raj Kishor Pandey
    सुंदर अविस्मरणीय कृति
    October 8 at 9:46pm
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  3. Deo Narain Sharma
    गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली वह बस्ती अल्पसंख्यों की थी। स्थानीय विधायक गुलाम रसूल ने जान बूझ कर मुल्ला मौलवियों के साथ मिल कर आबादी के जीवन स्तर के उत्थान करने की कोशिश कभी नहीं की क्यूंकि उसको पता था यदि ज्ञान का प्रकाश इस आबादी पर पड़ गया तो वोट बैंक तो गया ही गया,

    "उसके मन उल्लास से ओत प्रोत था। एक हिन्दू का धर्म परिवर्तन कराने के लिए उसे १० हज़ार रूपये मिलने वाले थे दूर बैठे सरहद पार उसके आकाओं से स्थानीय विधायक द्वारा I"

    पगडंडी समाप्त हो चुकी थी। मंदिर सामने था जो हिन्दुओं की बस्ती का एक सूचक था।

    "धर्म परिवर्तन कर। मुसलमान बन जा। सब कुछ प्राप्त होगा। रोटी , कपडा , मकान , पैसा , ऐशो आराम , चार -चार बीबीयाँ "

    व्यक्ति की स्वार्थपरता कितना घृणित कर्तव्य करने के लिए प्रयत्नशील है यही नहीं .शतरंज की विसात विक्षी है खिलाडी अपनी सम्पूर्ण शक्ति से ऐसी चाल चलने की गोटें विछाने.में संलग्न है कि प्रतिद्वन्दी मात ही खा जाय।राजनीतिक सत्ता आपाधापी व्यक्ति को कितना नीचे गिरा देती है सोचनीय है।
    व्यक्ति दलगत राजनीति में आवद्ध है।
    वाहहह सुन्दर सटीक राजनीतिक समस्या का चित्रण प्रशंसनीय.है।

    मौलाना बोलता गया।
    "क्या दिया है तुम्हारे धर्म ने तुमको। तुम्हारे देवी -देवताओं ने। गरीबी , लाचारी , भुखमरी।
    अरे, मौलाना ! सुबह सुबह !
    'यह! यह तो नूरबख्श है। तुम्हारी ही बिरादरी का है।

    "उसने उस अधेड़ नूरबख्श को उठाया और अपनी बस्ती की और ले चला।"
    October 8 at 10:17pm
    +++++++++++++++++++++++++via fb/युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (न्यास)

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  4. via /fb/फलक (फेसबुक लघु कथाएं).
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    Punam Mehta 11:13pm Oct 8
    विषयठीक है .कल्पना की उडान.

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  5. via fb/Poets, Artists Unplugged.
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    Satbir Chadha 6:09am Oct 10
    Lovely

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  6. via fb/Purple Pen.
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    Surenderpal Vaidya 5:53am Oct 10
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण लघुकथा।

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  7. via fb/फलक (फेसबुक लघु कथाएं)
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    शिखा श्रीवास्तव 7:54am Oct 9
    बहुत खूब

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