'दीवार में आले ' :- हृदय की भावनाओं, गहरी सोच और संवेदनशीलता की अति
सुन्दर प्रस्तुति
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दिनांक ०३ अक्टूबर वर्ष २०१४, एक कवि सम्मेलन में एक कवि हृदय के मालिक श्री रामकिशोर
उपाध्याय जी के सर्वप्रथम सुखद सानिध्य को
अनुभव किया I तब से आज तक उनको मैंने एक संकल्प सम्पन्न , संवेदनशील कवि और अपने अनुभवों की प्रेरक काव्य अभिव्यकता के रूप में ही जाना है। उनके प्रथम काव्यसंग्रह '' ड्राइंग रूम के कोने'
के प्रकाशन उपरांत मैंने अपना अभिमत देते हुए कहा था कि कवि श्रेष्ठ रामकिशोर उपाध्याय
जी अपने कविताओं के माध्यम से पाठकों के मन के हर कोने को बड़ी ही सहजता और सलरता से
छू लेतें हैं। यही बात यदि में उनके दुसरे काव्यसंग्रह ' दीवार में आले ' के विषय में
कहूँ तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस काव्यसंग्रह
की हर कविता भी कवि के हृदय की भावनाओं, गहरी
सोच और संवेंदनशीलता की अति सुन्दर प्रस्तुति है. हर प्रकार की भावनाओं की अभिव्यक्ति
को सटीक एवम सार्थक ढंग से भिन्न भिन्न प्रतीकों के सहारे शब्दों में पिरो कर, श्री
रामकिशोर उपाध्याय जी ने अपने इस नवीन काव्यसंग्रह
में अपनी कल्पना की उड़ान को यथार्थ की डोर से पकडे धरातल पर अंगद की पाँव समान विविध शब्द चित्रण की माध्यम से एक इंद्रधनुषी आकार
प्रधान किया है I ' दीवार में आले ' वास्तव में आलों के निकली रचनाएं हैं जो चिंतन
एवं भाव प्रधान होने के साथ साथ कंही कंही
एक मनोरंजन का पुट लिए हुए भी हैं। हर कविता मानो हम से कुछ कह रही हो। काव्य रुपी एक कहानी
सी ,जिसमे चिंतन है , मनन है ,प्रवाह है , सरोकार है और एक गहन कथ्य की सहज और सरल
काव्य अभिव्यक्ति है।
पेड़ की तूने हर शाख काट डाली
नदिया तूने बाँध डाली
पवन को अब तू टोकता है
धरा को गहरे तक खोदता है।...........
और सोच कर बता कब थमेगा यह दौर।
यह पंक्तियाँ कवि की चिंता को दर्शाता
है। उस चिंता को जो पूरे संसार के लिए एक ज्वलंत समस्या बन गयी है। पर्यावरण की हो
रही दुर्दशा पर 'मैं प्रकृति हूँ ' यह कविता वास्तव में मन को झकझोर देती है।
अफ़सोस है कि मैं बकरी नहीं हूँ
इस मुल्क की प्रजा हूँ
अब देखना है कि यह बाड़ा
मुझे कब तक रोक कर रखता है
आखिर वह सुबह कभी तो आएगी।
जी ज़रा गौर से इन पंक्तियों को पढ़ें
तो एक शब्द शिल्पी से हम जैसे पाठक रूबरू होते हैं। एक बकरी को प्रतीक मान कर बेचारी
निरीह जनता उस सुबह की तलाश में है जो उसे शायद सभी समस्याओं से छुटकारा दिला सके।
कवि की आशावादी प्रकृति इसी और इंगित करती
है।
कवि की अंतर्दृष्टि से देखा जाए तो
उनके वैचारिकता और उनकी व्यावहारिकता , दोनों का बोध उनकी कविताओं में हो जाता है।
कवि ने अपनी रचनाओं को अत्यंत ही प्रभावी
ढ़ंग से समकालीन घटनाओं के संदर्भ में, स्थापित
विसंगतियों को, समाजिक परिवेश में में ही रख कर अपनी काव्य शक्ति के माध्यम
से संयोजित कर कंही तीक्ष्ण कटाक्ष तो कभी कंही सीधा प्रहार किया है। रचनाएं चाहे छोटी
हो या बड़ी , कवि के अपने विचार, ज्ञान, व्यवहारिक अंतर्दृष्टि और व्यक्तिगत अनुभवों
के साथ प्रतिबिंबित और विस्तारित होती हैं। जहाँ ' एक फटा पैबंद ' कवि के अंदर छिपा
क्रोध और विरोध से अवगत कराता है वहीं ' इंकलाब आएगा में ' कवि व्यवस्था से निराश भी
है तो कहीं प्रश्न पूछते हैं ' ईश्वर तू कहीं है भी '
अब जा संभल
हिम्मत है तो कुछ कर
वर्ना पतली गली से आज ही निकल
कौन जाने ?
अगली घड़ी का हश्र।
कवि की 'कौन जाने ' कविता में एक दार्शनिकता
का बोध होता है।
कवि जज़्बातों का प्रेमी भी है और उनसे
जुडी अनुभूतिओं का पुजारी भी। जहाँ तक किसी विषय पर काव्य रचना का सवाल है कवि का रूप
बहुआयामी है। वह अपनी अनुभूतियों को सुदृढ़ मुक्तछंद काव्य शिल्प में जिया है। कामना,
मधुशाला , लिख दो बस प्यार , छोटी से चाहत , आज तुम मिले आदि रचनाएँ बहुत ही खूबसूरत
अंदाज़ में दीवार के आलों में मानो सजा कर रखी हों। बस आलों से निकाल कर पढ़ने की देर है।
मैंने फेसबुक पर, कवि सम्मेलनों में, काव्य गोष्ठियों
में श्री रामकिशोर उपाध्याय जी को गीत, गीतिका , छंद इत्यादि भी लिखते और पाठ करते
देखा है। उनकी इन विधाओं में रचित रचनाएँ भी उच्च स्तर की रहती हैं पर प्रस्तुत काव्यसंग्रह
ना जाने क्यों इनसे अछूता रह गया है। इसका थोड़ा सा मलाल ज़रूर है।
एक मूर्धन्य कवि से जो ईमानदारी बरतने
की आशा की जाती है उसमे श्री रामकिशोर उपाध्याय जी खरे उतरते हैं। हर कविता समकालीन /तत्कालीन वातावरण का भरपूर निर्वाह करती
हैं। हर विषय एक जीवंत विषय लगता है। अभिव्यक्ति स्पष्ट और सटीक है। पाठको को अपने
साथ ले कर चलते हैं और एक उत्साहित काव्य अनुयायी
होने के नाते मैं उनको 'दीवार में आले ' काव्य
संग्रह के लिए उनको हार्दिक बधाई देता हूँ। आशा करता हूँ कि निकट भविष्य में उनकी बहुआयामी काव्य प्रतिभा (काव्य की अन्य विधाओं
में रचित रचनाएँ) का स्वाद भी चखने को मिलेगा।
त्रिभवन कौल
स्वतंत्र लेखक –कवि
03-10-2017
काव्यसंगह :- दीवार में आले
रचनाकार :- रामकिशोर उपाध्याय
प्रकाशक :- गीतिका प्रकाशन , बिजनौर
(उ प्र )
मूल्य :- २०० रूपये
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